मानव धर्म के नाम पर जाति-सम्प्रदाय बन जाने के कारण धरती पर बढ़ने लगी है धर्म के प्रति ग्लानी…

कर्मभूमि पर विश्व मानव परिवार के बीच नफरतें पैदा होने का सबसे मुख्य कारण है, कर्मभूमि पर मानव धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्म ग्रन्थ, संत, जाति-सम्प्रदाय का बन जाना।

अपने विश्व मानव परिवार के बीच धार्मिक भेदभाव को मिटाने के लिए, मानव जगत को अनेक प्रकार के धार्मिक स्थलों व धर्म ग्रंथों से, ईश्वर व अवतारवाद जैसी धारणाओं से मुक्त करवाने के लिए, मानव को मानव धर्म रूपी कर्तव्य का पाठ पढ़ने के लिए, मानव को कर्म करने का ज्ञान देने के लिए, कर्मभूमि पर 31 दिसम्बर 2016 को धार्मिक स्थल धर्म ग्रन्थ जाति-सम्प्रदाय रहित सम्पूर्ण विश्व मानव परिवार के लिए नवीन विश्व धर्म कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना हो चुकी है| सम्पूर्ण मानव जगत को कल्कि ज्ञान सागर में बताये अनुसार मानव धर्म का पालन करना होगा|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार कर्मभूमि पर सभी मनुष्य रूपी जीवात्माओं का प्रकृति के पंचतत्वों से बने मानव तन के भीतर अवतरण समान रूप से होता है| कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगी प्रकृति का दिया समान रूप से खाते-पिते है, कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगी एक ही वायुमंडल में श्वांस लेते है| जब प्रकृति और परमात्मा ने मानव को बनाने में कोई भेदभाव नहीं किया तो मानव द्वारा आपस में भेद भाव करना कैसे सार्थक हो सकता है? कर्मयोगी का सत्यस्वरूप नश्वर भौतिक शरीर नहीं विराट आत्मस्वरूप ही कर्मयोगी का सत्यस्वरुप है|

कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगियों को सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनना होगा, जाति-सम्प्रदाय के आपसी भेदभाव मिटाकर, विश्व मानव परिवार के लोगों के बीच नफरतें मिटानी होगी| वरना धरती पर पाप का बोझ बढ़ने से महाविनाश में मानव जाति का नामों निशान मिट सकता है। यह मानव जगत के हाथो में है, मानव चाहे तो नफरतों को मिटा दे और चाहे खुद को। ईश्वर इंसान को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है, किसी भी इंसान से निर्धारित कर्म नहीं करवा सकता। जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धान्त है। सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनों कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओं|

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