अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार अरबों वर्ष पहले जब कहीं कुछ भी नहीं था, तब भी एक निराकर दिव्य महाशक्ति सूक्ष्म रूप में सूक्ष्म ब्रह्माण्ड में विधमान थी, जिसे कल्कि ज्ञान सागर में परमब्रह्म माना गया है| उस निराकार दिव्य महाशक्ति की इच्छा-शक्ति एको अहम् बहुस्याम से विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर अनेक प्रकार के अणु-परमाणु, गृह-नक्षत्र व द्रव्य के साथ ही निराकार निर्गुण दिव्य महाशक्ति का सगुण अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का प्राकट्य हुआ, जिसे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार प्रभु से प्रकट हुई महा-माया माना गया, उसे कल्कि ज्ञान सागर में सगुण परब्रह्म माना गया है|
सगुण परब्रह्म की इच्छा-शक्ति से सुन्दर सृष्टि का सृजन हुआ और सृष्टि के विस्तार के लिए सगुण परब्रह्म ने सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओं का रूप धारण कर स्वयं कर्ता, भरता, हरता बना हुआ है| ज्ञात रहे मानव सगुण परमात्मा परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, जिसे सगुण परमात्मा परब्रह्म ने अपना स्वरूप प्रदान किया है| एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक निर्गुण परमब्रह्म ही परम सत्य है उसके जैसा दूसरा न कोई था, न कोई है, नहीं कभी कोई होगा| सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मा उसी निर्गुण परमब्रह्म के सगुण स्वरूप परब्रह्म के परिवर्तनशील व मायावी नश्वर रूप है| निर्गुण परमब्रह्म कण-कण में नहीं जन-जन में आत्मस्वरुपता में विधमान है, वो मानव को मानव के भीतर मिलेगा बाहर नहीं | निर्गुण परमब्रह्म का सम्पूर्ण मानव जगत के नाम सन्देश……..
नहीं आसमान में है निवास मेरा, और नहीं कभी जमीन पर उतरता हूँ |
रूह बनकर मैं रहता हूँ तुम्हारें भीतर, तुम्हारे हृदय में है निवास मेरा |
कर्मभूमि पर जिस कर्मयोगी ने स्वयं के भीतर निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप आत्मा व सगुण परब्रह्म स्वरूप जीवात्मा के भेद को जाना, उस कर्मयोगी का कर्मभूमि पर मानव जीवन सार्थक हो गया| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगियों के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है| कर्मयोगी के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है, जो कर्मयोगी को कर्मभूमि पर स्वर्ग-सुख प्रदान करवाते है और सम्पूर्ण मानव जगत के सत्कर्म कर्मभूमि को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना देते है| अतः सबकी सेवा, सबसे प्यार, जिओ और दूसरो को भी जीने में सहयोग करो| हम सब एक है सबका स्वामी एक, हम सभी एक परम माता-पिता परमात्मा की संतान है, एक धरती के वासी है, एक वायुमंडल में श्वास लेते है, एक प्रकृति का दिया खाते-पीते है….
एक धरती एक धर्म, एक सभी का परम पिता परमात्मा |
भिन्न भिन्न है जीवात्मस्वरूप में हम, एक हम सबकी आत्मा |
कर्मभूमि पर ईश्वर व स्वयं के सत्यस्वरूप को जानों सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओं| जय अहिंसा—ॐ विश्व शांति —सत्यमेव जयते |