सदियों पहले मानव जगत के पूर्वजो ने अज्ञानतावश कर दी सबसे बड़ी भूल उस भूल की सजा आज का सम्पूर्ण मानव जगत भुगत रहा है|

सदियों पहले मानव जगत ने अज्ञानतावश कर दी सबसे बड़ी भूल सृष्टि के रचियता अपने परम माता-पिता को परमात्मा और हृदयस्त आत्मज्ञान देने वाले अपने परम गुरुवर को अल्लाह ईश्वर प्रभु परमेश्वर बना दिया इसी भूल की सजा आज का सम्पूर्ण मानव जगत भुगत रहा है|

आध्यात्मिक ज्ञान और विज्ञान के अनुसार अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार अरबो वर्ष पहले जब कुछ भी नहीं था तब भी सूक्ष्म ब्रह्मांड में सूक्ष्म निराकार अर्द्धनारीश्वर स्वरूप परम आत्मा विधमान थी, जिसे विज्ञान ने उर्जा माना वेदों में उसे ब्रह्म माना गया| एक बार ब्रह्म स्वरूप निर्गुण आत्मा के मन में इच्छा शक्ति जागृत होती है एको अहम बहुस्याम अर्थात मैं एक से अनेक बन जाऊं, इसी के साथ विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर ब्रह्मांड में अनेक प्रकार के ग्रह, नक्षत्र, द्रव्य, तत्वों के साथ ही सूरज, चाँद, सितारों का प्राकट्य हो जाता है| इसी के साथ निष्कलंक निराकार परम सत्य परमब्रह्म का ही सत-असत रूपी अर्धनारीश्वर स्वरूप परब्रह्म के रूप में सगुण जीवात्मा का प्राकट्य हो जाता है| 

सगुण परब्रह्म सृष्टि के विस्तार के लिए अपनी इच्छा शक्ति से अपने अर्धनारीश्वर स्वरूप को नर और नारी के रूप में भिन्न-भिन्न प्रकट करते है, जिन्हें आध्यात्मिक ज्ञानानुसार शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदम-ईव भी कहते है| ज्ञात रहे हम सभी मनुष्य सत-असत रूपी सगुण परब्रह्म की संतान है परब्रह्म हम मनुष्यों के भौतिक शरीर के स्वामी है परब्रह्म ही हम मनुष्यों के परम माता-पिता परमात्मा है| जिन्होंने सुन्दर सृष्टि की रचना करते हुए हम मनुष्यों को कर्मभूमि पर स्वर्ग सुख भोगने के लिए एवं असत का त्यागकर अकर्मी  बनकर अपना आत्मकल्याण करने के लिए उन्होंने हमें अपने ही स्वरूप में प्रकृति के पंचतत्वो से बना भौतिक शरीर प्रदान किया है |

सुन्दर सृष्टि के रचियता सगुण परब्रह्म सृष्टि के विस्तार के लिए स्वयं ही अनेक प्रकार के जीव-जीवात्मा, देवी-देवता व मनुष्य के रूप में प्रकट होकर सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं के जन्मदाता, पालनहार बने हुए है| अतः सम्पूर्ण सृष्टि में सगुण परब्रह्म स्वयं ही कर्ता, भरता, हरता बने हुए है| सगुण परब्रह्म हम सभी मनुष्यों के लिए परम माता पिता परमात्मा स्वरूप है किन्तु हम मनुष्य अज्ञानतावश देवी-देवता स्वरूप अपने परम माता-पिता सगुण परब्रह्म को ही निर्गुण ईश्वर मानकर उनके नाम पर अनेक प्रकार के देवी-देवताओ के धार्मिक स्थल बनाकर पूजा पाठ करने लगे है | क्या ऐसा कभी हो सकता है हमें अपने माता-पिता से कुछ पाना है तो हम अपने माता-पिता के सामने बैठ कर अगरबत्ती दीपक जलाकर उनकी आरती उतारे उनका गुण गान करे की हे माता-पिता मुझे चौकलेट दे दो या मुझे खाना दे दो, ज्ञात रहे हम भुलकर भी कभी ऐसा नहीं करते| हम अपने माता-पिता से जो भी मांगते है अधिकार के साथ मांगते है तो फिर हम अपने जन्मदाता, पालनहार परम माता-पिता परमात्मा परब्रह्म के लिए ऐसा क्यों करते है ?

इसी प्रकार हम सभी मनुष्यों की निर्गुण आत्मा के स्वामी परम ज्ञानेश्वर निर्गुण परमब्रह्म हमारे परम गुरुवर है वो हम मनुष्यों के हृदय में ज्ञान स्वरूप विधमान रहते है, वो हम मनुष्यों को सिर्फ कर्म करने का ज्ञान प्रदान करा सकते है किन्तु हम मनुष्यों से निर्धारित कर्म नहीं करा सकते| क्योंकि अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार हम मनुष्यों का जीवन कर्म प्रधान है | हम मनुष्य आज के विकास  के युग में भी अपने आत्मस्वरूप निराकार परम ज्ञानेश्वर अपने परम गुरुवर एक ही निर्गुण परमब्रह्म को अल्लाह, ईश्वर, प्रभु , परमेश्वर, खुदा, गॉड, वाहेगुरु, याहवेह, सद्गुरु, सतगुरु जैसे अनेक नाम देकर उसके नाम पर जाति, पंत, संप्रदाय, बनाकर आपस में लड़ रहे है, जिसके कारण धरती पर धर्म के प्रति ग्लानी बढ़ने लगी है|

ज्ञात रहे हम सभी मनुष्य सगुण जीवात्मस्वरूप के रूप में सगुण परब्रह्म की संतान है और निर्गुण आत्मस्वरूपता में हम निष्कलंक निराकार परमब्रह्म स्वरूप है| निराकार से साकार और साकार में विकार उत्पन्न होने से हम मनुष्य रुपी जीवात्माओं के लिए कर्मभूमि का सृजन हुआ है| ज्ञात रहे हम मनुष्यों का जन्म कर्मभूमि पर विकार रहित, विदेही भाव में विराट आत्मस्वरुपता में निष्काम कर्मयोगी अकर्मी बनकर अपना आत्मकल्याण करने के लिए हुआ है भौतिक शरीर का बनकर भोगो मे लिप्त होने के लिए नहीं| जिसने आत्मा-जीवात्मा के भेद को जाना, जिसने ईश्वर के निर्गुण-सगुण के भेद को जाना उसने सब कुछ जान लिया | अतः आज के विकास के युग में मानव को कर्म करने के ज्ञान की जरुरत है, हम सभी मनुष्यों को सत्यवादी बनने  के लिए असत्य का त्याग करना होगा, मानव जन्म से नहीं निष्काम कर्म से महान बनता है| ज्ञात रहे सम्पूर्ण मानव जगत के सत्कर्म निष्काम कर्म ही धरती को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना सकते है| जय अहिंसा , ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते |

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