एक धरती एक धर्म एक सबका परमात्मा हम सब एक है सबका स्वामी एक…

कर्मभूमि पर मानव का जन्म ईश्वर से प्रकट हुई महामाया की मोहमाया में कैद होने के लिए नही, बल्कि कर्मभूमि पर महामाया को पराजित कर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर आत्मकल्याण करने के लिए हुआ है, ईश्वर व धर्म के नाम पर जाति-सम्प्रदाय बनाकर आपस में लड़ने के लिए नही| ईश्वर ने प्रेम के लिए दुनिया बनाई है नफरत और हिंसा करने के लिए नहीं| अतः सृष्टि के जीव-मात्र को अपने समान समझते हुए, अपने ह्रदय में  सबकी सेवा सबसे प्यार की भावना रखते हुए, सत्कर्म व सेवा रूपी मानव धर्म का पालन करते हुए, आत्मज्ञानी बनकर स्वयं के विराट आत्मस्वरुप को जानकर अपना आत्मकल्याण करने के लिए हुआ है|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मा एक ही सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है| अतः मानव को कर्मभूमि पर विराट आत्मस्वरूप बनने के लिए सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं को सगुण परब्रह्म स्वरूप मानकर उनके प्रति प्रेम भाव रखते हुए यथाशक्ति उनकी सेवा करना चाहिए| सृष्टि के विस्तार के लिए एक ही सगुण परब्रह्म ने अनेक रूप धारण किये हुए है, जिसने अनेक में एक को देख लिया, जिसने कर्मभूमि पर दिव्य शक्ति की महामाया को जान लिया, उसका आत्मकल्याण होकर उसका मानव जीवन सार्थक हो गया| 

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार कर्मभूमि पर अवतरित होने वाले मानव के तीन स्वरूप, तीन चरित्र है| मानव का नश्वर भोतिक शरीर कर्मयोगी मनुष्य रूपी जीवात्मा और परम गुरुवर परमब्रह्म स्वरूप अकर्मी आत्मा के लिए एक रथ के समान है| कर्मयोगी मनुष्य रूपी जीवात्मा भोतिक शरीर स्वरूप रथ पर सवार होकर कर्मभूमि पर कर्म करता है, अकर्मी निष्कलंक पवित्र आत्मा कर्मयोगी मनुष्य रूपी जीवात्मा के रथ का सारथी बनकर मनुष्य रूपी जीवात्मा को कर्म करने का ज्ञान देती है| मानव को कर्मभूमि पर नश्वर तन के प्रति मोह को त्यागकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण करना होता है| कर्मभूमि पर आत्मज्ञानी बनकर स्वयं के निष्कलंक अकर्मी विराट स्वरूप को जानो, अपना अमूल्य मानव जीवन सार्थक बनाओ|

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