कर्मभूमि पर ईश्वर मानव के भीतर निर्गुण व सगुण दोनों स्वरुप में विद्यमान रहता है…

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार अरबो वर्ष पहले जब कहीं भी कुछ भी नहीं था, तब भी एक दिव्य महाशक्ति सूक्ष्म स्वरूप में सूक्ष्म ब्रह्मांड में विधमान थी, विज्ञान ने उस दिव्य महाशक्ति को उर्जा माना, वेदों में उसे ब्रह्म माना गया| इसी दिव्य महाशक्ति ब्रह्म की इच्छाशक्ति से विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर उसी परम सत्य निर्गुण दिव्य महाशक्ति ब्रह्म का सत-असत सगुण स्वरूप का प्राकटय हुआ जिसे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार परब्रह्म माना गया| ईश्वर एक है उसके दो स्वरूप दो चरित्र है, सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार ईश्वर के निर्गुण व सगुण स्वरूप के बीच अनोखा रहस्यमय खेल चल रहा है| इस खेल में एक दिव्य महाशक्ति ब्रह्म के अलावा दूसरा कोई नहीं है, जो दिव्य महाशक्ति निर्गुण स्वरूप में एक है, वही सगुण स्वरूप में एक होकर भी अनेक रूप धारण किये हुए है| एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति निर्गुण ईश्वर आत्मस्वरुपता में व सगुण ईश्वर जीवात्मस्वरूपता में मानव-मात्र के भीतर विधमान रहते है| कर्मभूमि एक रंगमंच है, जिस पर मानव निर्गुण ईश्वर व सगुण ईश्वर के बीच पासा बना हुआ है|

कर्मभूमि पर मानव अपने सगुण स्वरूप को त्यागकर निर्गुण ईश्वर में लीन हो सकता है, इसके लिए देवी-देवताओं को भी देवलोक से कर्मभूमि पर जन्म लेना पड़ता है| वैसे देवी-देवता व मानव का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है, क्योकि सभी देवी-देवता मानव व सृष्टि के सभी जीव एक ही परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है| जिसने अपने भीतर आत्मा व जीवात्मा के भेद को जाना, उसका कर्मभूमि पर मानव जीवन सार्थक हो गया|

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