सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है, सेवा परमोधर्म ही सुखी जीवन का आधार है…

धर्म शब्द का मतलब है मानव का कर्तव्य और कर्मभूमि पर मानव-मात्र का कर्तव्य है, सबकी सेवा सबसे प्यार किसी से किसी भी प्रकार का भेदभाव करना महापाप है| मानव जीवन कर्म प्रधान है, जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है, ईश्वर मानव को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है किसी भी इन्सान से निर्धारित कर्म नही करवा सकता| मानव कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नही| मानव के सत्कर्म ही मानव के सुखी जीवन का आधार स्तम्भ है, मानव द्वारा किये गये निष्काम कर्म मानव को कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति प्रदान करा देते है| सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|

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