कर्मभूमि पर महाविनाश को मानव जगत के सत्कर्म ही रोक सकते है ईश्वर या कोई दैविक शक्ति नहीं| सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है| कर्मभूमि पर मानव-मात्र को ईश्वर से ज्यादा स्वयं को जानने की जरुरत है, जब मानव स्वयं को जान लेगा तो ईश्वर उसे अपने भीतर स्वतः ही मिल जायेगा|
कर्मभूमि पर मानव को अपना मानव जीवन सार्थक बनाने के लिए, मायावी नश्वर देह प्रेम को त्यागकर, विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनना होगा, तभी सृष्टि के स्वामी हमारे परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म की सुन्दर सृष्टि सृजन का सपना साकार हो सकता है|
कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोग सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनकर अपनी कर्मभूमि को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना सकते है| कर्मभूमि पर मानव कलयुग को सतयुग में परिणित कर, सतयुगी दुनिया का सृजन कर अन्तरिक्ष में धरती जैसी अनेक दुनिया बसाकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक दुनिया से दूसरी दुनिया में भ्रमण कर सकता है| सम्पूर्ण मानव जगत के लोग सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी बन सकते है|