पूजा करना है तो अविनाशी परब्रह्म के प्रतिक शिवलिंग की करो कर्मयोगियों के नश्वर तन की नहीं…

ईश्वर एक है इस बात को सम्पूर्ण मानव जगत के लोग समान रूप से जानते मानते है किन्तु एक ही ईश्वर के दो स्वरूप दो चरित्र है इस बात को कोई बिरला ही जान पाता है| ईश्वर निर्गुण स्वरूप में अनादी अजर-अमर, अविनाशी, गुण-दोष, जन्म-मरण रहित है, उसके जैसा न कोई था, न कोई है, नहीं कभी कोई होगा, किन्तु वही निर्गुण ईश्वर सगुण स्वरूप में एक होकर भी अनेक मायावी रूप धारण किये हुए है, उसका सत्यस्वरूप अर्धनारीश्वर है, वो अपने सत्यस्वरूप में किसी को नजर नहीं आता|

एक सगुण परब्रह्म ने ही सृष्टि के विस्तार के लिए स्वयं को प्रकृति व पुरुष के रूप में स्थापित कर स्वयं ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती सहित अनेक देवी-देवता, नर-नारी व सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओ के मायावी रूप में स्वयं को स्थापित किया हुआ है| सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मा एक परब्रह्म के ही अनेक मायावी रूप है, जबकि वो स्वयं अर्धनारीश्वर स्वरूप है|

सगुण परब्रह्म अपने सत्य स्वरूप में कभी किसी को नजर नहीं आता उसके निराकार स्वरूप का प्रतिक शिवलिंग है, वो देवत्व शक्ति सगुण स्वरूप में साकार होकर भी कभी किसी को मायावी सृष्टि की मायावी दृष्टि से नजर नहीं आता, सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओ के रूप में स्वयं करता, भरता, हरता है| सृष्टि में अनेक प्रकार के देवी-देवता, मानव व अन्य किसी भी जीव-जीवात्मा का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है| अतः पूजा करना है तो राम-कृष्ण जैसे कर्मयोगी के नश्वर तन की नहीं बल्कि उस अविनाशी सगुण परब्रह्म के अर्धनारीश्वर स्वरूप के प्रतिक शिवलिंग की करो, जिसकी पूजा राम-कृष्ण व सभी कर्मयोगी साधक किया करते थे| धर्म के नाम पर रुढ़िवादी परम्पराओ को छोड़ो आत्मज्ञानी बनकर, कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ| 

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