अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव जीवन कर्म प्रधान है, मानव स्वयं ही स्वयं का भाग्य विधाता है| मानव को जीवन में दुःख-सुख ईश्वर नहीं उसके अपने कर्म देते है, ईश्वर तो मानव को सिर्फ कर्म करने का ज्ञान दे सकता है, किसी भी इंसान से निर्धारित कर्म नहीं करवा सकता| मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है| मनुष्य रूपी जीवात्मा कर्मयोगी बनकर कर्म करने के लिए देवलोक से कर्मभूमि पर प्रकृति के पंचतत्वों से बने मानव तन को धारण करके कर्मभूमि पर अवतरित होता है|
मानव के भीतर विद्यमान सगुण परमात्मा परब्रह्म स्वरूप मनुष्यरूपी जीवात्मा विराट आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप है| मायावी सृष्टि में कर्मभूमि पर अवतरित होने के बाद मनुष्यरूपी जीवात्मा को सृष्टि की महामाया अपने अधिन कर लेती है, जिसके कारण मनुष्यरूपी जीवात्मा अपने विराट आत्मस्वरूप को भूलकर अज्ञानतावश अपने मायावी नश्वर तन को अपना सत्यस्वरूप मानकर जीवनभर नश्वर तन के लिए कर्म करता रहता है| जिसके कारण मनुष्यरूपी जीवात्मा का उसके कर्मो के अनुसार कर्मभूमि पर कर्मफल भोगने के लिए निरंतर आवागमन होता रहता है|
कर्मभूमि पर मानव नश्वर देह भाव को त्यागकर विदेही भाव में मैं से मुक्त होकर विराट आत्मस्वरुपता में निष्काम कर्मयोगी बनकर महामाया को पराजित कर, अपना आत्मकल्याण कर अपने परम धाम सतलोक में बिना कोई कर्म किये शाश्वत सुख पा सकता है| इस क्रिया को कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति कहते है| सतलोक अकर्मी लोक है जहाँ पर पवित्र-आत्मा को बिना कर्म किये शाश्वत सुख मिलता है| आत्मज्ञानी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओं|