जिस तरह आपकी अपनी माँ है ठीक उसी तरह आपकी पत्नी भी आपके बेटे की माँ है, आप जितना प्यार अपनी माँ से करते है उतना ही प्यार अपने बेटे की माँ से, अपनी अर्धांगिनी से, अपनी गृह लक्ष्मी से, अपनी धर्म पत्नी से, अपनी पत्नी परमेश्वरी से भी करे, आपका मानव जीवन सार्थक हो जायेगा|
अपनी गृहलक्ष्मी का सम्मान करने से आपके घर में भरपूर सुख, शांति, वैभव, समृद्धि के साथ आप पर भरपूर ईश्वरीय कृपा बरसेगी| धन दौलत सिर्फ परिश्रम करने से नहीं मानव धर्म का पालन करने से कर्मभूमि पर सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनने से अपनी गृहलक्ष्मी अपनी अर्धांगिनी का सम्मान करने से प्राप्त होते है|
घर के मुखिये द्वारा चल कपट से कमाया गया पैसा घर को नरक तुल्य बना देता है, उसके घर में हमेशा कोई न कोई बीमार रहता है और बात-बात पर परिवार के लोगो के बीच विवाद होता रहता है, जिसके कारण घर में अशांति बनी रहती है| इतना ही नहीं उस घर में कभी लक्ष्मी का वास नही होता, नहीं उस घर-परिवार के लोगो को सुख शांति मिल सकती है| जो इन्सान धन कमाने के लिए अपने हाथ पावों का अपनी बुद्धि का दुरुपयोग करता है, तो ईश्वर उसे कर्मभूमि पर अगले जन्म में मंद बुद्धि वाले अपाहिज इन्सान के रूप में अभाव ग्रस्त परिवार में जन्म देता है|
मानव जीवन कर्म प्रधान है, मानव स्वयं ही स्वयं का भाग्य विधता है, मानव अपने कर्मो द्वारा स्वयं ही अपने भाग्य में दुःख-सुख लिखता है, ईश्वर इन्सान को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है, किसी से निर्धारित कर्म नही करवा सकता, मानव के निष्काम कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है| मानव कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नहीं, जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है मानव कर्मो से बचकर जाएगा कहाँ? कर्मफल भोगने के लिए आना तो इसी कर्मभूमि पर पड़ेगा| अतः कर्मभूमि पर सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनो, दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो, जैसा आप स्वयं के लिए चाहते है| जीवन पथ पर चलते हुए ईमान और ईश्वर को सदैव याद रखो, आपका मानव जीवन सार्थक हो जायेगा|