जो कर्मयोगी अपने भीतर के द्वार खोलकर आत्मज्ञानी बन गया उसका मानव जीवन सार्थक हो गया…

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति भावार्थ- सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है उसे विदित किये बिना इस मायावी सृष्टि से मनुष्य रूपी जीवात्मा के लिए मुक्ति का और कोई उपाय नही है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय खेल में एक ही ब्रह्म ने दो स्वरूप दो चरित्र धारण किये हुए है, जो परमब्रह्म निर्गुण स्वरूप में परम सत्य है, वहीं सगुण परब्रह्म स्वरूप में सत-असत है, जिसने एक होकर भी सृष्टि के विस्तार के लिए अनेक देवी-देवता जीव-जीवात्माओ के रूप धारण किये हुए है| अतः सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक ब्रह्म के अलावा दूसरा कोई नही है|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय खेल में मनुष्य रूपी जीवात्मा को सगुण जीवात्मस्वरूप से पुनः निर्गुण विराट आत्मस्वरूप बनने के लिए कर्मभूमि का सृजन हुआ है| मनुष्यरूपी जीवात्मा को सगुण से निर्गुण बनने के लिए, अपना आत्मकल्याण करने के लिए देवलोक से कर्मभूमि पर प्रकृति के पंचतत्वों से बने मानव तन के भीतर मनुष्य योनि में अवतरित होना पड़ता है|

कर्मभूमि पर मानव-मात्र निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, मनुष्य योनि को देव योनि से भी श्रेष्ठ माना गया है| मानव के मायावी नश्वर भौतिक शरीर के भीतर विशाल ईश्वरीय वैभव विधमान है, इस ईश्वरीय वैभव को कर्मभूमि पर साधारण से साधारण कर्मयोगी साधना व योग के माध्यम से जानकर अपना आत्मकल्याण कर अपना मानव जीवन सार्थक बना सकता है| कर्मभूमि पर जिसने अपने भीतर निर्गुण आत्मस्वरूप सगुण जीवात्मस्वरूप को जाना उसने सब कुछ जान लिया|

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