नर और नारी एक ही सिक्के के दो पहलु है जो जीवात्मस्वरूप में दो है वही आत्मस्वरुपता में एक है…

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार नर और नारी एक ही सिक्के के दो पहलु है, जिन्हें अर्द्धनारीश्वर कह सकते है, दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे है| सुन्दर सृष्टि के रचियता सगुण परब्रह्म का सत्यस्वरूप भी अर्द्धनारीश्वर है, उन्होंने सृष्टि के विस्तार के लिए स्वयं को प्रकृति और पुरुष के रूप में स्थापित किया है|

मानव का सत्यस्वरूप मायावी भौतिक शरीर की मायावी दृष्टि से दिखाई देने वाला उसका मायावी नश्वर भौतिक शरीर नहीं, बल्कि मनुष्य रूपी जीवात्मा के भीतर विधमान विराट आत्मस्वरूप ही मानव का सत्यस्वरूप है| जीवात्मस्वरुपता में नर और नारी एक ही सिक्के के दो पहलु है, किन्तु आत्मस्वरुपता में दोनों एक है, इसलिए नारी को मोक्ष लक्ष्मी भी कहा गया है| कर्मभूमि पर मानव के भौतिक शरीर के भीतर आत्मा व जीवात्मा का एकाकार नहीं हो जाता, मानव अर्द्धनारीश्वर स्वरूप को धारण नहीं कर लेता, तब तक उसका आत्मकल्याण संभव नहीं है| नारी जग जननी सृष्टि की रचियता माता शक्ति का स्वरूप है, उसका सम्मान करे आपका मानव जीवन सार्थक हो जायेगा|

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