तेरा प्रभु तो तुझमे बसा है, अब मत पूजो पाषाण को आत्मज्ञानी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ…

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार निराकार का कोई आकर नहीं होता, अजन्मे अनामी का कोई नाम नहीं होता| जो निराकार है वो कभी साकार प्रकट हो नहीं सकता| ईश्वर एक है उसके दो स्वरूप दो चरित्र है, निर्गुण आत्मस्वरूप में जो एक है वही सगुण जीवात्मास्वरूप में सृष्टि में एक होकर भी अनेक मायावी रूप धारण किये हुए है| ईश्वर अपने दोनों स्वरूप में निर्गुण आत्मस्वरूप व सगुण जीवात्मस्वरूप में सभी मनुष्यों के भीतर समान रूप से विधमान रहता है|

जो प्रभु तेरे भीतर विद्यमान है वो तुझे बाहर कही भी नही मिल सकते| ईश्वर निराकार है वो अपने दोनों स्वरूप में भी निराकार ही रहता है| निर्गुण आत्मस्वरूप में जो ज्ञानदातार है वही सगुण जीवात्मस्वरूप में कर्मयोगी बना हुआ है| अतः ईश्वर व अवतार का प्राकटय मानव तन के भीतर आत्मा व जीवात्मा में होता है| आत्मा व जीवात्मा को हम देख नहीं सकते, अतः कर्मभूमि पर ईश्वर व अवतार का प्राकटय भी निराकार होता है| जिसे अनुभव तो किया जा सकता है, देखा नहीं जा सकता| आत्मज्ञानी बनो मायावी देह भाव से मैं से मुक्त होकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर, अपना आत्मकल्याण करों अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|  

Related Posts

WhatsApp WhatsApp us