सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को सतयुगी दुनिया के सृजन के लिए अपनी धार्मिक सोच को बदलना होगा…

मानव धर्म कभी नहीं कहता कि धर्म के नाम पर सृष्टि के किसी जीव को त्रासदी दी जाये, किसी जीव की हिंसा की जाये| सृष्टि के सभी जीवो को सामान रूप से जीने का अधिकार है| मानव जीवन कर्म प्रधान है, मानव कर्म करने में स्वतंत्र है, कर्म फल पाने में नहीं, जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है, एक न एक दिन उसके साथ वही होगा जो उसने किसी अन्य जीव-जीवात्मा के साथ किया है|

सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है, धर्म के नाम पर तामसिक प्रवृतियों को बढावा देवा मूढ़ बूढी के लोगो का काम है| धर्म सिखाता है सबकी सेवा सबसे प्यार दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा आप स्वयं के लिए दूसरों से चाहते है, सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा| सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओं| 

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