कर्मभूमि पर कर्मयोगी मानव को अपना मानव जीवन सार्थक बनाने के लिए, निष्कलंक निराकार निर्गुण ईश्वर एवं निर्गुण ईश्वर से प्रकट हुई सगुण महामाया को जानने की जरुरत है| कर्मभूमि पर कर्मयोगी को रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान को जानने की जरुरत है| स्वयं के मायावी नश्वर भौतिक शरीर एवं भौतिक शरीर के भीतर स्वयं के अजर-अमर, अविनाशी, विराट आत्मस्वरूप को जानने की जरुरत है| विदेही भाव में मै से मुक्त होकर विराट आत्मस्वरुपता में अकर्मी निष्काम कर्मयोगी बनकर सृष्टि की महामाया को पराजित कर अपना आत्मकल्याण करने के लिए, 21वी सदी में युगानुसार ईश्वर द्वारा कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से दिए जा रहे ज्ञान को जानने की जरुरत है|
कर्मभूमि पर युग परिवर्तन मानव जगत के कर्मो के अनुसार होते है| धरती पर मानव धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के जाति, धर्म-सम्प्रदाय बन जाने के कारण मानव जगत के लोगों के ह्रदय में एक दूसरे के प्रति नफरतें पैदा होने लगी है| सम्प्रदायवाद के कारण धरती पर धर्म के प्रति ग्लानी बढ़ने लगी है, जिसके कारण धरती पर निरंतर पाप का बोझ बढ़ने लगा है| जब धरती पर पाप का बोझ अत्यधिक बढ़ जाता है, तब महाविनाश होकर मानव जाति का नामो निशान मिट जाता है, इसके बाद प्रकृति और परमात्मा द्वारा सृष्टि का नवीन सृजन होता है| मानव जगत के सत्कर्म ही कर्मभूमि को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना सकते है| सत्कर्मी बनो सुखी रहो|