कर्मभूमि पर मानव जीवन कर्म प्रधान है, मानव के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है| कर्मभूमि पर कोई भी इंसान सत्कर्मी बनकर अपने मंगलमय जीवन का आनंद लेते हुए जीवन की अर्द्धशताब्दी पूर्ण करने के बाद, अपने विराट आत्मस्वरूप को पाने के लिए, मायावी भौतिक शरीर रूपी मै से मुक्त होने के लिए, अपने जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकता है|
सम्पूर्ण सृष्टि में आत्मकल्याण कर पाना सिर्फ कर्मभूमि पर ही संभव है, जो कार्य मानव कर सकता है वो देवलोक में देवी-देवताओ के लिए संभव नहीं है| इसलिए देवी-देवता मनुष्य योनि में जन्म पाने के लिए तरसते है| सम्पूर्ण सृष्टि के सभी देवी-देवता और मानव-मात्र निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव को देवी-देवताओं से भी श्रेष्ठ मान गया है|
मनुष्यरूपी जीवात्मा को मनुष्य योनि में अपना आत्मकल्याण करने के लिए देवलोक से कर्मभूमि पर अमूल्य मानव जीवन मिलता है| कर्मभूमि पर मानव जीवन की एक पल की गारंटी नहीं है, पता नहीं कब उसका नश्वर तन परिवर्तन हो जाये और उसके लिए कुछ ही पल में वो सब कुछ मिट जाये, जिसको पाने के लिए उसने पाप-कर्म किये| जब मानव के तन की एक पल की गारंटी नहीं तो भला मानव कर्मभूमि पर किसी वस्तु, जमीन, धन-दौलत का स्वामी कैसे बन सकता है?
मायावी सृष्टि में जब मानव तन की एक पल की गारंटी नही है, तो मानव को भौतिक दृष्टि से दिखाई देने वाले माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, बेटा-बेटी उसके कैसे हो सकते है? मनुष्य योनि में मानव को कर्मभूमि पर महामाया को पराजित करने के लिए अपने नश्वर भौतिक शरीर रूपी मै और मेरे रूपी संसारी मोहमाया को त्यागकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर निर्गुण परमब्रह्म स्वरुपता को पाना होता है| मै से मुक्त होने वाला मानव ही कर्मभूमि पर जन्म मरण से मुक्ति पाकर सतलोक में बिना कोई कर्म किये शाश्वत सुख पा सकता है| सत्यवादी सत्कर्मी आत्मज्ञानी बनों अपना अमूल्य मानव जीवन सार्थक बनाओं|