मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, ईश्वर मनुष्यरूपी जीवात्मा के भीतर ह्रदय में आत्मस्वरूप विद्यमान रहता है…

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार ईश्वर एक है उसके दो स्वरूप दो चरित्र है निर्गुण व सगुण| जो ईश्वर आत्मस्वरूपता में निर्गुण है वही जीवात्मस्वरुपता में सगुण है| मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, अतः निर्गुण व सगुण, मानव व ईश्वर एक ही सिक्के के दो पहलु है|

कर्मभूमि पर मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, मानव को कर्मभूमि पर अपना आत्मकल्याण करने के लिए अपने भीतर के सगुण जीवात्मस्वरुप को त्यागकर निर्गुण विराट आत्मस्वरूप बनना होता है| मानव को सगुण जीवात्मस्वरुप से निर्गुण आत्मस्वरूप बनाने के लिए निर्गुण ईश्वर मानव के भीतर आत्मस्वरुपता में विधमान रहता है| आप अपने ईश्वर को अपने प्रभु को पाना चाहते हो तो विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनो|

कर्मभूमि पर महामाया का मोहमाया रूपी जाल बिछा हुआ है, इस जाल से निकलने के लिए मानव को विराट आत्मस्वरूप बनना जरूरी है। मानव जब विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर मोहमाया पर विजय प्राप्त कर लेता हैं, तो वो कर्मभूमि पर विचरण करने वाले सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं को अपना स्वरूप मान लेता है। विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी एक न एक दिन कर्मभूमि पर मैं से मुक्त होकर, जन्म मरण से मुक्ति पा लेता हैं|

कर्मभूमि पर अपना आत्मकल्याण करने वाले अकर्मी सतलोक में बिना कोई कर्म किये शाश्वत सुख पाते हैं। कर्मभूमि पर महामाया को पराजित कर मैं से मुक्त होने की क्रिया को ही मुक्ति, मोक्ष व आत्मकल्याण कहते है। जो ईश्वर मानव के भीतर निर्गुण आत्मस्वरूपतासगुण जीवात्मस्वरुपता में विधमान रहता है वो बाहर कहीं नहीं मिल सकता| आत्म ज्ञानी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|

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