21वी सदी में मानव चेतना की जो मिसाल कायम हो रही है उसके अनुसार सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को युगानुसार अपनी धार्मिक सोच को बदलना होगा| कर्मभूमि पर मानव को अपना अमूल्य मानव जीवन सार्थक बनाने के लिए अपने भौतिक शरीर के भीतर विद्यमान ईश्वरीय वैभव को जानना होगा| मानव को अपने भीतर दिव्य महाशक्ति व स्वयं के विराट आत्मस्वरूप को जानना होगा|
आज का युग विकास और विज्ञान का युग है, धर्म और ईश्वर के नाम पर रूढ़िवादी परम्परा व हिंसक प्रवृतियों को त्यागना होगा| मानव-मात्र को स्वयं व ईश्वर के सत्यस्वरूप को जानना होगा| एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किये बिना मानव के लिए इस संसार से मुक्ति का और कोई उपाय नही है, इस बात को सम्पूर्ण मानव जगत के लोग समान रूप से मानते भी है| किन्तु उस दिव्य महाशक्ति का सत्यस्वरूप व स्वयं का विराट आत्मस्वरूप कोई बिरला आत्मज्ञानी ही जान सकता है|
ईश्वर एक है किन्तु उसके दो स्वरूप दो चरित्र है, निर्गुण आत्मस्वरुपता में जो ज्ञान के दातार है वही सगुण जीवात्मस्वरुप में सृष्टि के सभी जीवो का जन्मदाता, पालनहार है| इसलिए ईश्वर के निर्गुण स्वरूप को हम अपना परम गुरुवर मान सकते है व ईश्वर के सगुण स्वरुप को हम परम माता-पिता परमात्मा मान सकते है| मानव को भक्ति मार्ग में ईश्वर के सगुण अर्द्धनारीश्वर स्वरूप के प्रतिक शिवलिंग की पूजा करना चाहिए व निर्गुण स्वरूप की साधना| सृष्टि में एक मानव ही ऐसा प्राणी है जो कर्मभूमि पर सगुण जीवात्म स्वरूप को त्यागकर निर्गुण आत्मस्वरूप बन सकता है| इसी क्रिया को जन्म-मरण से मुक्ति व मोक्ष कहा गया है| एक को जानों एक को मानो, कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|