एक ब्रह्म को विदित किये बिना स्वयं के विराट आत्मस्वरूप को जाने बिना मनुष्य के लिए मुक्ति का ओर कोई उपाय नही है…

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार ईश्वर व स्वयं के सत्यस्वरूप को जाने बिना कर्मभूमि पर कर्मयोगी के लिए इस मायावी संसार से मुक्ति का ओर कोई उपाय नहीं है| कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगियों के भीतर सत-असत के बीच जंग चल रही है, जिसने अपने भीतर कर्मयोगी परब्रह्म स्वरूप अर्जुन रूपी सगुण जीवात्मा और कर्म करने का ज्ञान देने वाला कृष्ण स्वरूप ज्ञान का दाता परम गुरुव निर्गुण परमब्रह्म के बीच चल रहे रहस्यमय खेल को जाना, उसने सब कुछ जान लिया, कर्मभूमि पर उस कर्मयोगी मानव का मानव जीवन सार्थक हो गया|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार निर्गुण ब्रह्म की इच्छा शक्ति एको अहम् बहुस्याम से विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर आत्मस्वरूप निर्गुण ब्रह्म से जीवात्मास्वरूप सगुण परब्रह्म का प्राकट्य हुआ| सगुण से पुनः निर्गुण बनने के लिए सुन्दर सृष्टि का सृजन हुआ, जिसमें अनेक प्रकार के जीवों की उत्पत्ति के बाद कर्मयोगी मानव का जन्म हुआ|

मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, मानव को सगुण से पुनः निर्गुण बनने के लिए कर्मभूमि पर अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरुप निष्काम कर्मयोगी बनना होता है| मायावी सृष्टि के इस रहस्यमय खेल को मानव-मात्र को समझना जरुरी है, तभी मानव जगत के लोगों के बीच धर्म के नाम पर जाति-सम्प्रदायवाद मिटकर हमारी कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन हो सकता है| हमारी कर्मभूमि अविनाशी स्वर्ग बन सकती है|

ज्ञात रहे एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक दिव्य महाशक्ति ब्रह्म के अलावा दूसरा कोई भी नहीं है, जो निर्गुण स्वरूप में अनादी, अजन्मा, अजर-अमर, अविनाशी, जन्म-मरण, गुण-दोष रहित परम सत्य है, वही दूसरी तरफ मायावी सगुण स्वरूप में सत-असत परिवर्तनशील है| निर्गुण ब्रह्म से प्रकट हुई इस महामाया को आध्यात्मिक ज्ञानानुसार सगुण परब्रह्म कहा गया है, जिसने सृष्टि सृजन व विस्तार के लिए एक होकर भी अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओ के रूप धारण किये हुए है| अतः निर्गुण ब्रह्म की तरह ही सगुण परब्रह्म के लिए भी कहा जा सकता है एको परब्रह्म द्वितीयो नास्ति| निर्गुण ब्रह्म स्वयं से प्रकट हुई महामाया द्वारा रचित मायावी भूल-भुलैया के रहस्यमय खेल में स्वयं कर्ता, भरता हरता बना हुआ है| सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म के अलावा व सम्पूर्ण सृष्टि में एक परब्रह्म के अलावा दूसरा कोई भी जीव-जीवात्मा नही है| 

                               निष्कलंक निराकार की इच्छा शक्ति ने,                                  निराकार को भी साकार बना दिया,
                             एक अजन्में परम सत्य परम महाशक्ति को भी,                              निर्गुण से मायावी सगुण बना दिया |
                                  निर्गुण-सगुण के इस रहस्यमय खेल में,                                 
खुद ही खुद से हो गए जुदा,
                                     सगुण से पुनः निर्गुण बनने के लिए,                                     
खुद ने खुद को, खुद का खुदा बना दिया |

स्वयं से स्वयं तक, जिंदगी एक सफर है|
जिंदगी के इस सफर में स्वयं ही स्वयं के हमसफर है|
सृष्टि के इस संसार में कभी खुशी कभी गम|
नहीं कोई हमारा है, और नहीं किसी के हम|

मैं ही अल्लाह मैं ही ईश्वर, मैं ही राम रहीम हूं,
मैं ही ईसा मैं ही मोहम्मद, मैं ही कृष्ण कबीर हूं |
मैं ही हूं बुद्ध मैं ही महावीर, मैं ही सतगुरू गोविन्द हूं,
मैं ही हूं हर दिल की धड़कन, मैं ही सभी में आत्मस्वरूप हूँ |

             नही आसमान में है, घर दरबार मेरा, नही कभी जमी पर, जन्म लेता हूँ|              रूह बनकर रहता हूँ, मानव के ह्रदय में, मानव मात्र का ह्रदय है, निवास मेरा |

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