यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिभर्वति भारत,
अभ्युत्थानाम धर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम,
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम,
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामी युगे यूगे|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार, सम्पूर्ण सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है| देवी-देवताओ को सगुण से निर्गुण बनने के लिए, अपना आत्मकल्याण करने के लिए, मनुष्य योनि में कर्मभूमि पर प्रकृति के पंचतत्वों से बने मनुष्य रूपी तन के भीतर अवतरण होता है| कर्मभूमि पर मानव का जीवन कर्म प्रधान है, ईश्वर कर्मयोगी को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है, किसी भी कर्मयोगी से निर्धारित कर्म नही करवा सकता, मानव कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नहीं, जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है| कर्मभूमि पर मानव विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकता है|
मानव के सत्कर्मो से धरती स्वर्ग बनती है और तामसिक कर्मो के कारण धरती पर पाप का बोझ बढ़कर महाविनाश हो जाता है| महाविनाश के बाद प्रकृति और परमात्मा द्वारा सृष्टि का पुनः नवीन सृजन किया जाता है| जब-जब धरती पर पाप का बोझ बढ़ जाता है, तब महाविनाश से पहले अपने भक्तो की रक्षा करने के लिए, ईश्वर का कर्मभूमि पर किसी न किसी निष्काम कर्मयोगी के ह्रदय में ज्ञानस्वरूप भव्य अवतरण होता है| योगिराज गीता ज्ञान दाता श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, जब-जब धर्म के प्रति ग्लानी बढ़ती है, तब पाप और पापियों का नाश करने के लिए, सज्जन साधू-संतो की रक्षा करने के लिए, मै कर्मभूमि पर किसी निष्काम कर्मयोगी के ह्रदय में अपने स्वरूप को रचता हूँ|
जब से कर्मभूमि का सृजन होकर मानव का जन्म हुआ, तब से मानव जगत के हितार्थ कर्मभूमि पर किसी न किसी रूप में ईश्वरीय अवतरण होता आया है| मानव के सत्कर्म ही कर्मभूमि पर महाविनाश को रोक सकते है, ईश्वर मानव को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है किसी भी इन्सान से निर्धारित कर्म नहीं करवा सकता| मानव की तामसिक प्रवृतियों के कारण धर्म की हानी होकर कर्मभूमि नरक स्वरूप बन जाती है, मानव अपनी कर्मभूमि को चाहे तो अविनाशी स्वर्ग बना सकता है, यह मानव जगत के कर्मो पर आधारित है मानव जो चाहे बनायें, मानव को रहना तो इसी कर्मभूमि पर है|
कर्मभूमि पर इस समय युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय चल रहा है, तेज गति से होने वाले विकास को देखकर हम अनुमान लगा सकते है, ईश्वर की मानव जगत पर विशेष कृपा बरस रही है| आज मानव चेतना की जो मिसाल कायम हो रही है उसको देखते हुए 21वी सदी में मानव जगत के लोगों में सबसे पहले सबसे बड़े जिस बदलाव की जरुरत है वो है मानव की धार्मिक सोच में बदलाव|
अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान द्वारा सम्पूर्ण मानव जगत के हितार्थ कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, नवीन विश्व धर्म कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना हो चुकी है| कल्कि ज्ञान सागर अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान से सम्पूर्ण मानव जगत को अवगत कराकर, कर्मभूमि पर मानव-मात्र के ह्रदय में देवत्व व दिव्यता जागृत कर मानव को ईश्वर व अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त करावा देगा| एक को जानों, एक को मानो सत्कर्मी, निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|