कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए
कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश
आत्मा अजर-अमर, अविनाशी है, जीवात्मा अविनाशी किन्तु परिवर्तनशील है,
फिर आत्मा और जीवात्मा का कर्मभूमि पर जन्म-मरण कैसे हो सकता है?
कहाँ से तुम आए हो, कहाँ तुमको जाना है जी,
पता नहीं कब किस जगह मर जाना है?
अरे जिसने बनाया तुम्हें, उसको तो जाना नहीं,
धर्म कर्म की बातों को, तुमने कहाँ जाना है?
अरे इतना तो मान लेना, यह है प्रभु का कहना,
खाली हाथ आए हो जी, खाली हाथ जाना है|
अरे माटी के पुतले हो तुम तो, माटी में मिल जाना है तो,
बतलाओ जग से क्या? साथ लेकर जाना है?
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किए बिना मनुष्यों के लिए इस संसार से मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| ज्ञात रहे एक ही ब्रह्म के दो स्वरूप दो चरित्र है, क्योकि सर्वप्रथम इसी निर्गुण परमब्रह्म की इच्छा शक्ति से विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर, इसी परम सत्य निर्गुण परमब्रह्म का सत-असत रूपी सगुण जीवात्मस्वरूप का प्राकट्य हुआ इसे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार सगुण परब्रह्म व प्रभु से प्रकट हुई महामाया भी कहते है|
सत-असत सगुण परब्रह्म के निमित्त से सुंदर सृष्टि का सृजन हुआ, सृष्टि के विस्तार के लिए सगुण परब्रह्म एक होकर भी सृष्टि में अनेक प्रकार के देवी-देवता, असंख्य मानव व जीव-जीवात्माओं का रूप धारण किये हुए है| सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं में, देवी-देवताओ से भी श्रेष्ट मानव ही एक ऐसा प्राणी है, जिसे परमात्मा सगुण परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है| क्योंकि कर्मभूमि पर मानव विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर, अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर, सृष्टि की महामाया को पराजित कर निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप बन सकता है, जिसे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार आत्मकल्याण व मुक्ति कहा गया है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मनुष्य रूपी जीवात्मा को कर्मभूमि पर अवतरित होने के लिए प्रकृति के पंचतत्वों से बने नश्वर भौतिक शरीर को धारण करना पड़ता है| यह नश्वर भौतिक शरीर मनुष्य रूपी जीवात्माओं के लिए एक रथ के समान है जिस पर मनुष्य रूपी जीवात्मा सवार होकर अपने जीवनयापन व आत्मकल्याण के लिए कर्मभूमि पर भ्रमण करता है| क्या प्रकृति के पंचतत्वों से बने इस जड़ स्वरूप रथ रूपी वाहन का कभी जन्म-मरण हो सकता है? यह वाहन तो प्रकृति के पंचतत्वों से बनता है और जब मनुष्य रूपी जीवात्मा अपना भौतिक शरीर रूपी वाहन परिवर्तन करता है तो यह पुराना वाहन प्रकृति के पंचतत्वों मे पुनः लिन हो जाता है|
सम्पूर्ण ब्रह्मांड में ज्ञान व उर्जा स्वरूप एक ही परम महाशक्ति है जो विराट आत्मस्वरूपता में सम्पूर्ण ब्रह्मांड में विद्यमान है| ज्ञात रहे एक ही परम महाशक्ति के दो स्वरूप दो चरित्र है निर्गुण व सगुण जिसे हम एक ही सिक्के के दो पहलु कह सकते है| प्रथम स्वरूप में जो परम सत्य, अनादी, अजन्मा, अजर-अमर, अविनाशी, जन्म-मरण, गुण-दोष रहित है, वो ना तो किसी की संतान है और नहीं उसकी कोई संतान है ना उसे किसी ने पैदा किया है और नहीं उसे कोई मिटा सकता है| उसी दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म का दूसरा स्वरूप सगुण परब्रह्म रूपी अविनाशी किन्तु परिवर्तनशील जीवात्मस्वरूप है, जो उनकी इच्छा शक्ति के कारण प्रकट हो गया|
ज्ञात रहे जो बना है उसे मिटना भी है, अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म कर्मभूमि पर कर्मयोगी के भीतर अपने दोनों स्वरूप में विद्यमान रहते है, पहला परम सत्य विराट आत्मस्वरूप है जिसे निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप कह सकते है व दूसरा सत-असत जीवात्मस्वरूप है जिसे सगुण परब्रह्म स्वरूप कह सकते है| ज्ञात रहे मानव-मात्र के भीतर सत-असत के बीच जंग चल रही है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय खेल में कर्मभूमि पर कर्मयोगी को अपने असत सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर परम सत्य विराट आत्मस्वरूप बनना होता है|
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर कर्मयोगी दो परम महाशक्तियों के अधीन है, ये दोनों महाशक्तियाँ एक ही सिक्के के दो पहलू है| प्रथम परम सत्य परम पवित्र आत्मा के स्वामी परमब्रह्म है जो मनुष्य रूपी जीवात्माओं की पवित्र आत्मा को सत-असत से पुनः परम सत्य बनाकर कर्मभूमि से मुक्ति प्रदान कराते है और दूसरी महाशक्ति सत-असत रूपी जीवात्मा के स्वामी परब्रह्म है जो कर्मभूमि पर सत्कर्मी कर्मयोगी को स्वर्ग सुख प्रदान कराते है| तामसिक प्रवृति के लोगों को जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल के अटल सिद्धांतानुसार कर्मभूमि पर ही उन्हें अपने कर्मो का कर्मफल मिलता रहता है|
कर्मभूमि पर सभी मनुष्य रूपी जीवात्माओं के स्वामी हमारे जन्मदातार, पालनहार परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म है व पवित्र आत्माओं के स्वामी निर्गुण परमब्रह्म है| सत-असत परब्रह्म रूपी जीवात्मा के भीतर परम सत्य परमब्रह्म आत्मस्वरूपता में विधमान रहते है, आत्मा व जीवात्मा एक ही सिक्के के दो पहलु है| ज्ञात रहे अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार परब्रह्म स्वरूप सत-असत रूपी मनुष्यरूपी जीवात्मा को पुनः परम पवित्र आत्मा बनाने के लिए ही कर्मभूमि का सृजन हुआ है, इसलिए मनुष्यरूपी जीवात्मा का आत्मकल्याण के लिए कर्मभूमि पर अवतरण होता है|
ज्ञात रहे प्रकृति मनुष्य रूपी जीवात्मा को कर्मभूमि पर भ्रमण करने के लिए प्रकृति के पंचतत्वों से बना भौतिक शरीर प्रदान करती है किन्तु मनुष्य रूपी जीवात्मा सृष्टि की मोह -माया में कैद होकर अपना सत्य स्वरूप भूल जाता है और कर्म बंधन के कारण मनुष्य रूपी जीवात्माओं का कर्मभूमि पर बार बार आवागमन होता रहता है, इसी आवागमन को मनुष्य रूपी जीवात्मा का अवतरण और तन परिवर्तन कह सकते है| जब निराकार जीवात्मा और आत्मा का मरण होता ही नहीं तो अज्ञानतावश रोना धोना क्यों? जबकि मनुष्य रूपी जीवात्मा के लिए कर्मभूमि पर सब कुछ नश्वर है परिवर्तनशील है|
कर्मभूमि पर मनुष्यरूपी जीवात्मा का मानव रूपी तन ही नश्वर है तो भला मानव को मानव रूपी भौतिक शरीर के दृष्टि से दिखाई देने वाला उसका कैसे हो सकता है| मनुष्य रूपी जीवात्मा जब कर्मभूमि पर अवतरित होता है तो कर्मभूमि पर भ्रमण करने के लिए प्रकृति उसे भौतिक शरीर रूपी वाहन प्रदान करती है और जब वाहन पुराना हो जाता है या उसमे खराबी आ जाती है तो प्रकृति पुराना वाहन लेकर फिर नया वाहन दे देती है इसे कहते है परिवर्तन अतः मनुष्य रूपी जीवात्मा का अवतरण और तन परिवर्तन दोनों अपने आप में महोत्सव के समान है|
सम्पूर्ण ब्रह्मांड में ना तो कोई ईश्वर है और नही धरती पर ईश्वर का कोई अवतार होता है जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड की परम महाशक्ति है वो निराकार, अनादी, अनामी, अजर-अमर, अविनाशी, जन्म-मरण, गुण-दोष रहित है उसे ना तो किसी ने देखा है नहीं उसे कोई देख सकता है नहीं उसे किसी ने उसे बनाया है और नहीं उसे कोई मिटा सकता है| ब्रह्मांड में जो भी कुछ दिखाई दे रहा है वो सब कुछ उसकी दिव्य महाशक्ति से प्रकट हुआ है और उसी में समा सकता है| उसी निराकार, अनामी दिव्य महाशक्ति को मानव जगत के लोगों ने अपनी-अपनी भाषा और आस्था के अनुसार अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड, वाहेगुरु, सतगुरु, कबीर जैसे अनेक नाम दे दिये है|
ज्ञात रहे सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है निराकार दिव्य परम महाशक्ति मनुष्य रूपी जीवात्मा के भीतर निर्गुण व सगुण दोनों स्वरूप में विधमान रहती है, वो मानव को मानव के भीतर मिल सकती है बाहर नहीं| मनुष्य रूपी जीवात्मा स्वयं सगुण परमात्मा परब्रह्म स्वरूप है और आत्मस्वरूपता में परमब्रह्म के समान है| ज्ञात रहे मनुष्य रूपी जीवात्मा ही सर्वेश्वर है कर्मभूमि पर मानव रूपी भौतिक शरीर तीनों लोको का संगम स्थल है| मनुष्य भौतिक शरीर के रूप में पृथ्वीलोक का वासी है, मनुष्य रूपी जीवात्मा देवलोक का वासी है और मनुष्य की परम पवित्र आत्मा अकर्मी सतलोक का वासी है जिसे मोक्ष और सूक्ष्म लोक भी कहते है|
मनुष्य सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है फिर भी सभी मनुष्य अज्ञानतावश स्वयं के भीतर हृदयस्त ज्ञान स्वरूप विधमान सम्पूर्ण ब्रह्मांड की परम दिव्य महाशक्ति अपने परम गुरुवर परमब्रह्म को बाहर धार्मिक स्थलो में ढूंढ रहे है और जिसे कभी किसी ने देखा ही नहीं उसके नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल धर्म ग्रंथ जाति, पंत, संप्रदाय बनाकर आपस मे लड़ रहे है| मूढ़ बुद्धि के लोग है जो सत्कर्म और सेवा रूपी अपने मानव धर्म को भूलाकर स्वयं का जीवन नरक तुल्य बनाने पर तुले है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मनुष्य रूपी जीवात्माओं के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है परब्रह्म स्वरूप मनुष्य रूपी जीवात्माओं को परब्रह्म सत्कर्म के बदले स्वर्ग सुख प्रदान कराते है और परमब्रह्म निष्काम कर्म सेवा धर्म के बदले मनुष्य रूपी जीवात्मा को विराट आत्मस्वरूपता प्रदान कराते है जिससे मनुष्य रूपी जीवात्मा कर्मभूमि पर अकर्मी बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकता है|
ज्ञात रहे एक ही सगुण परब्रह्म द्वारा सुंदर सृष्टि का सृजन होकर सृष्टि में अनेक प्रकार के देवी-देवता, मानव व सृष्टि मके सभी जीव-जीवात्माओं की उत्पत्ति हुई है, अतः सृष्टि के सभी प्राणी एक ही सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है, जिनका सृष्टि में अलग से कोई अस्तित्व नही है क्योकि सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं के रूप में एक सगुण परब्रह्म ही कर्ता-भरता-हरता बने हुए है| कर्मभूमि पर कोई भी मनुष्य रूपी जीवात्मा राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक, बोद्ध, महावीर, कृष्ण, कबीर की तरह आत्मज्ञानी बनकर धरती पर धर्म की प्रभावना कर सकता है|
गीता ज्ञानदाता योगिराज श्रीकृष्ण ने गीता में बार-बार कहा है अनेक प्रकार के देवी-देवताओ की पूजा करना और कराना मूढ़ बुद्धि के लोगो की देन है| युगानुसार कलयुग को सतयुग मे परिणित करने के लिए सम्पूर्ण मानव जगत को धर्म और ईश्वर के नाम पर रूढ़िवादियों को त्यागकर सत्य को स्वीकार करना होगा| ज्ञात रहे सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव एक ही परब्रह्म के अनेक नश्वर व परिवर्तनशील मायावी रूप है| दृष्टि ही सृष्टि है सब मायावी नजरों का धोखा है अतः सभी मनुष्यों को सुंदर सृष्टि के रचियता अपने परम माता-पिता परमात्मा अपने जन्मदाता, पालनहार सगुण परब्रह्म को नमन करते हुए, सम्पूर्ण ब्रह्मांड़ के स्वामी परमब्रह्म की साधना करना चाहिए| कर्मभूमि पर जिसने आत्मा व जीवात्मा के, निर्गुण व सगुण के भेद को जाना उसने सब कुछ जान लिया, कर्मभूमि पर उसका मानव जीवन सार्थक हो गया| जय अहिंसा , ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते|