|| कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश ||
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सम्पूर्ण सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मा सगुण परमात्मा परब्रह्म के मायावी रूप है, जिसमें मानव सगुण परमात्मा परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है | मानव को सगुण परमात्मा परब्रह्म की संतान कहा जा सकता है निर्गुण परमब्रह्म की नहीं | ज्ञात रहे दिव्य महाशक्ति निर्गुण परमब्रह्म अनादी, अजन्मा, निष्कलंक, निराकार है वो न तो किसी की संतान है और नहीं उनकी कोई संतान है | उसके जैसा न कोई था, न कोई है, नहीं होगा |
दोस्तों हम और हमारी संस्था अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान मानव जगत के सभी धर्म, पंत, संत, संप्रदाय का हृदय से सम्मान करते है, हम सम्पूर्ण मानव जगत की ईश्वरीय आस्था, धार्मिक मान्यताओं और आध्यात्मिक भावनाओं का भी सम्मान करते है | हम सम्पूर्ण मानव जगत को अपनी अंतःप्रेरणा से ईश्वरीय संदेशानुसार ही सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का सदमार्ग बताने जा रहे है | कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश में बताई गई किसी भी आध्यात्मिक बात पर मानव जगत के किसी भी इंसान के दिल को ठेस पहुँचती है तो हम उसके लिए करबद्ध क्षमा प्रार्थी है | कल्कि साधक कैलाश मोहन
दोस्तों हमारी धरती को बनकर आज अरबों वर्ष बीत चुके है और धरती पर मानव का जन्म होकर भी लाखों वर्ष बीत चुके है, किन्तु आज भी हम वर्ष 2024 की गणना कर रहे है क्योंकि आध्यात्मिक ज्ञान और सत्य के अभाव में आज तक धरती पर पाप के कारण महाविनाश ही होते आए है | वर्तमान में एक बार फिर धर्म के प्रति ग्लानि बढ़कर महाविनाश की संभावनाएं नजर आने लगी है कारण धर्म और ईश्वर के नाम पर अज्ञानतावश अनेक प्रकार के जाति-संप्रदाय, धार्मिक स्थल व धर्मग्रंथ बन जाने के कारण धरती पर धर्म के प्रति ग्लानि बढ़ने लगी है | धरती पर महाविनाश के लिए काल अपना विकराल रूप धारण किए खड़ा है पता नहीं कब एक बार फिर महाविनाश होकर सम्पूर्ण मानव जगत काल का ग्रास बन जाए|
युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए धरती को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बनाने के लिए, धरती पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए भारत की पावन भूमि पर कल्कि ज्ञान सागर के रूप में ईश्वरीय अवतरण हो चुका है| ज्ञात रहे ईश्वर मानव को कर्म करने का ज्ञान प्रदान करा सकता है मानव से निर्धारित कर्म नहीं करा सकता | मानव के सत्कर्म ही धरती को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना सकते है| मानव जगत के सत्कर्म ही कलयुग का नाशकर सतयुगी दुनिया का सृजन कर सकते है ईश्वर नहीं | अतः अब जरूरत है सम्पूर्ण मानव जगत अपने परम गुरुवर परमब्रह्म द्वारा बताए गए सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म के मार्ग पर चलकर अपनी धरती को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बनाए और अपनी धरती पर पुनः सतयुगी दुनिया का सृजन करे |
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार जब अरबों वर्ष पहले कुछ भी नहीं था तब भी अनादि, अजर-अमर, अविनाशी, एक निष्कलंक, निराकार, दिव्य महाशक्ति विधमान थी, जिसे कल्कि ज्ञान सागर में निर्गुण परमब्रह्म माना गया है| ज्ञात रहे निर्गुण परमब्रह्म ने अपनी और से कुछ भी नहीं किया है, बल्कि उनके मन की इच्छा शक्ति के कारण ही विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर, ब्रह्मांड में निर्गुण परमब्रह्म का सगुण स्वरूप का अर्द्धनारीश्वर के रूप में प्राकट्य हुआ, जिसे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार सगुण परब्रह्म माना गया | ज्ञात रहे निराकार से साकार और साकार में विकार उत्तपन्न हो जाने के कारण सृष्टि का विस्तार हुआ है इसी के साथ सृष्टि में देवलोक और पृथ्वीलोक का सृजन होता है, इसी सृजन के साथ ही सृष्टि में अनेक प्रकार के जीवात्माओं के साथ ही सगुण परमात्मा परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव का जन्म हुआ |
कहाँ से तुम आए हो ? कहाँ तुम को जाना हे जी,
पता नहीं कब किस जगह मर जाना है ?
अरे जिसने बनाया तुम्हें उसको तो जाना नहीं,
धर्म कर्म की बातों को तुमने कहाँ जाना है ?
इतना तो मान लेना, यह हे प्रभु का कहना,
खाली हाथ आए हो जी, खाली हाथ जाना है|
अरे माटी के पुतले हो तुम तो, माटी में मिल जाना है तो ,
बतलाओ जग से क्या साथ लेकर जाना है |
ज्ञात रहे एक ही परमब्रह्म के दो स्वरूप, दो चरित्र है निर्गुण व सगुण, जो निर्गुण विराट आत्मस्वरुपता में परमसत्य, अनादी अजन्मा, अजर-अमर, अविनाशी है, वही सगुण जीवात्मस्वरूप में सत-असत, अविनाशी होकर भी परिवर्तनशील है | दिव्य महाशक्ति सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव के भीतर निर्गुण आत्मस्वरूप व सगुण जीवात्मस्वरूप में विद्यमान रहती है | कर्मभूमि पर मानव को विदेही भावमें विराट आत्मस्वरुपता में निष्काम कर्मयोगी बनकर अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर निर्गुण आत्मस्वरूप बनना होता है, मै से मुक्त हो जाने की क्रिया को ही कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति और मोक्ष कहा गया है |
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार दृष्टि ही सृष्टि है कर्मभूमि पर मानव को जो भी दिखाई दे रहा है वो मानव के लिए नजरों का धोखा है, सृष्टि मोह माया का रहस्यमय खेल है, इसी खेल में महा-माया से पार लगकर मनुष्य रूपी जीवात्मा को अपने सत्य स्वरूप आत्म स्वरूप को पाना होता है, अपने बाहरी भौतिक स्वरूप के भीतर अपने विराट आत्मस्वरूप को जान लेना और भौतिक शरीर के मोह को त्याग कर आत्मस्वरूप अकर्मी बन जाना भौतिक शरीर रूपी मैं मुक्त हो जाना ही कर्मभूमि पर जनम-मरण से मुक्ती और मोक्ष कहलाता है| कर्मभूमि पर जिस कर्मयोगी ने अपने ही भीतर निर्गुण आत्मा व सगुण जीवात्मा के भेद को जाना उसने सब कुछ जान लिया|
कर्मभूमि पर मनुष्य रूपी जीवात्मा को अपने सत्यस्वरूप को जानने के लिए ईश्वरीय ज्ञान की आत्मज्ञान की जरूरत होती है यह ज्ञान मनुष्यों को अपने ही भीतर हृदयस्त परम गुरुवर परम ब्रह्म से ही मिल सकता है | ज्ञात रहे संसार जीने के लिए कर्म करने के लिए संसारी गुरुओं से ज्ञान ग्रहण किया जा सकता है उस ज्ञान से सत्कर्मी बनकर कर्मभूमि पर स्वर्ग सुख भोगा जा सकता है किन्तु अकर्मी बनकर आत्मकल्याण करने के लिए योग द्वारा स्वयं के भीतर की आत्मा को जानना जरुरी होता है स्वयं की आत्मा में विधमान परम गुरुवर परमब्रह्म से ज्ञान ग्रहण करना होता है, तभी इस नश्वर संसार से मुक्ति संभव है|
ज्ञात रहे सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है उसे विदित किए बिना इस संसार से मनुष्यों के लिए मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| किन्तु यह भी ज्ञात रहे कर्मभूमि पर हम सभी मनुष्य अपने परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म की संतान है, सगुण परब्रह्म ही हम मनुष्य रूपी जीवात्माओं के जन्मदाता-पालनहार है, जिन्हें आध्यात्मिक ज्ञानानुसार शक्ति-शिव, हव्वा-आदम, ईव -आदम भी कहते है| अतः ज्ञान मार्ग में निर्गुण परम ब्रह्म की साधना, इबादत, आराधना करने से पहले कर्मयोगी को भक्ति मार्ग में अपने परम माता पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म को नमन करना चाहिए, वरना मनुष्य द्वारा निर्गुण परम ब्रह्म के लिए की गई इबादत आराधना निष्फल हो जाती है |
सम्पूर्ण मानव जगत के लिए यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि उनके जीवन को सार्थक सुखद बनाने के लिए एक नहीं दो परम महाशक्तियां है और दोनों परम महाशक्तियां एक ही सिक्के के दो पहलू है, एक निर्गुण, निष्कलंक, निराकार है और दूसरी सगुण साकार होकर भी मानव के लिए निराकार है और दोनों महाशक्तियां मानव के लिए परम हितेषी है| प्रथम निर्गुण परमब्रह्म है जो मानव की पवित्र आत्मा के स्वामी है जो आत्मा को कर्मभूमि से मुक्ति प्रदान कराते है और दूसरी महाशक्ति सगुण परब्रह्म है जो मनुष्यरूपी जीवात्मा के स्वामी है, जो मनुष्य रूपी जीवात्मा को सत्कर्म के बदले कर्मभूमि पर और देवलोक में स्वर्ग सुख प्रदान कराते है और साथ ही तामसिक कर्म करने वाले मनुष्यरूपी जीवात्माओं को उनके तामसिक कर्मो के अनुसार कर्मभूमि पर और देवलोक में त्रासदियां भी प्रदान कराते है|
वर्तमान में कर्मभूमि पर मानव जगत के लोगों ने अजन्में अनामी निराकार परमब्रह्म को मानव जगत के लोगों ने अपने-अपने धर्म-संप्रदाय और भाषा के अनुसार अनेक नाम दे दिये है, किन्तु वो अनेक नामो वाला होकर भी एक है | ज्ञात रहे विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ ही निर्गुण परमब्रह्म का ही सगुण स्वरूप अर्द्धनारीश्वर स्वरूप प्रकट हुआ है, अतः निर्गुण परमब्रह्म और सगुण परब्रह्म एक ही सिक्के के दो पहलू है निराकार का कोई प्रतीक नहीं है उसे ॐ माना गया है सगुण परब्रह्म का प्रतीक शिव-लिंग माना गया है| जब सगुण परब्रह्म द्वारा सृष्टि का विस्तार होता है तो वो अपनी इच्छा शक्ति से स्वयं को प्रकृति और पुरुष के रूप में प्रकट करते है अतः स्त्री और पुरुष भी एक ही सिक्के के दो पहलू है| अनेक प्रकार के देवी-देवता और मानव एक ही सगुण परब्रह्म के ही अनेक है रूप है| इसी को सृष्टि की महा-माया कहा गया है एक ऐसी महा-माया जिसमें खुद ही खुद से प्यार करना, खुद ही खुद से नफरत करना, खुद ही खुद में भेद करना और खुद ही खुद से लड़ना, यही तो सृष्टि की दृष्टि का गहरा राज है जिसे सृष्टि की महा-माया कहते है |
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्य को जानने के लिए आप कुछ पल के लिए अपनी आंखे बंद कर लो क्या आप हाथ लगाकर बता सकते है कि ये हिंदु और ये मुसलमान है, ये सिख और ये ईसाई है, ये मेरा दुश्मन है ये मेरा भाई है, या ये मेरे माता-पिता है, ये मेरी पत्नी और ये मेरा पति है, ये मेरा बेटा और ये मेरी बेटी है | इस मायावी संसार में सारा खेल नजरो का धोखा है, सच तो ये है तू ही तू है हर जगह तेरे सिवा दूसरा कोई हे ही नहीं | तू ही आत्मा से जीवात्मा बना है और तू ही जीवात्मा बनकर अपने आत्मस्वरूप को अपने आपको भूल गया है और इसी भूल भुलैया के इस खेल में तू इतना गिर चुका है है की तू ही अपने आपको अल्लाह ईश्वर के नाम पर खुद ही खुद की पूजा करने लगा है तू ही अल्लाह ईश्वर के नाम पर अपने आप से डरने लगा है तू ही इस भवसागर में अपने आपको ढूँढने लगा है |
कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगियों को उनका सत्यस्वरूप बता कर सभी के ह्रदय में दिव्यता जागृत कर सभी को विराट आत्मस्वरुपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप बना देगा | इतना ही नहीं 21वी सदी में अविनाशी सतयुग दुनिया का सृजन होगा और अंतरिक्ष में धरती जैसी अनेक दुनियाँ बसेगी धरती के इंसान अब देश विदेश की नहीं एक दुनिया से दूसरी दुनिया में भ्रमण करेंगे किन्तु इस से पहले इंसान को इसके काबिल बनना होगा| सम्पूर्ण मानव जगत को धर्म और ईश्वर के नाम पर सारी रूढ़िवादी परम्पराओं को त्यागना होगा, जाति-संप्रदायवाद को जड़ से मिटाना होगा, सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म को अनेक प्रकार के धर्म ग्रंथ और धार्मिक स्थलो से मुक्त करवाना होगा| कर्मभूमि पर मानव-मात्र को सत्कर्मी बनना होगा| सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के लिए ईश्वर का सन्देश ——–
भूल जाओ भगवान को, अब मत पूजो इंसान को ,
तेरा प्रभु तो तुझ में बसा है, अब मत पूजो पाषाण को
बंद कर दो मंदिरो के दरवाजे और नमाज भी पढ़ना छोड़ दो
अगर अब भी मेरी नहीं मानते, तो मुझ को ही मानना छोड़ दो |
ज्ञात रहे देवलोक के सभी देवी-देवता और कर्मभूमि पर सभी नर-नारी एक ही सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है| अतः कर्मभूमि पर विचरण करने वाले मनुष्यों को आपसी भेद-भाव नहीं करना चाहिए| सबकी सेवा सबसे प्यार की भावना ही मानव धर्म है मनुष्यों को छोटे से भी छोटे जीवात्मा के प्रति अपने मन में दया प्रेम और सेवा के भाव रखना चाहिए| कर्मभूमि पर हमें नजरों से जो भी कुछ दिखाई दे रहा है सब महा-माया का खेल है जरा एक पल के लिए आप अपनी आंखे बंद कर के देखो फिर क्या तेरा है क्या मेरा है ? धरा का धरा पर धरा ही रह जाएगा क्या साथ लाया था तू क्या साथ लेकर जाएगा ? कर्मो का है लेखा जोखा अकर्मी बनकर ही तू इस भवसागर से पार पाएगा | जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते |