21वी सदी को युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय कहा जा सकता है, क्योंकि कर्मभूमि पर पिछले तीन हजार वर्षो में जितने विकास नहीं हुए, उससे कई गुना ज्यादा और बेहतरीन विकास मात्र 30 वर्ष में होते देखे गये|
कर्मभूमि पर तीव्र गति से होते विकास व मानव चेतना की जो मिसाल कायम हो रही है, उसे देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि 21वी सदी में युग परिवर्तन के लिए मानव जगत पर ईश्वर की विशेष कृपा बरस रही है| आज मानव चेतना की जो मिसाल कायम हो रही है, उसे देखते हुए कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए कर्मभूमि पर सतयुगी दुनियां का सृजन करने के लिए सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को युगानुसार अपनी धार्मिक सोच को बदलना होगा|
सदियों से मानव जगत के लोग अपने पूर्वजो की परम्परानुसार ईश्वर को सम्पूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी, सम्पूर्ण सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओ का जन्मदाता, पालनहार मानकर उस निराकार दिव्य-महाशक्ति की पूजा, अर्चना करते आये है| जिसे कभी किसी ने देखा नहीं, उस दिव्य-महाशक्ति को मानव जगत के लोग अपने-अपने धर्म सम्प्रदायनुसार किसी न किसी रूप में मानते जरुर है और उससे डरते भी है| किन्तु आज तक किसी ने ईश्वर व स्वयं के सत्यस्वरूप को, आत्मा व जीवात्मा के भेद को, निर्गुण व सगुण के भेद को, मायावी सृष्टि व सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान को जानने का प्रयास नहीं किया|
वास्तव में उस दिव्य-महाशक्ति का सत्यस्वरूप क्या है? ईश्वर है भी या नहीं, अगर है तो वो सामने क्यों नहीं आता? क्या दुनिया ईश्वर ने बनाई है या स्वतः ही बन गई है? मानव का अपना सत्यस्वरूप क्या है? इन सभी रहस्यमय सवालों का जवाब जानने के लिए मानव को कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से अद्भुत रस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान को जानना होगा|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार ईश्वर एक है उसके दो स्वरूप दो चरित्र है, ईश्वर मानव-मात्र के भीतर निर्गुण व सगुण दोनों स्वरूप में विधमान रहता है| ईश्वर निर्गुण आत्मस्वरुपता में परम सत्य है, वही सगुण जीवात्मस्वरूप में सत-असत है, जो कर्मभूमि पर मनुष्य रूपी जीवात्मा के रूप में कर्मयोगी बना हुआ है|
एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति निर्गुण स्वरूप में जो परम सत्य है, वही सगुण सत-असत स्वरूप में एक होकर भी अनेक मायावी रूप धारण किये हुए है| ईश्वर को जानना चाहते हो, ईश्वर को पाना चाहते हो, ईश्वर स्वरूप बनना चाहते हो, तो मानव को स्वयं के भीतर विद्यमान विशाल ईश्वरीय वैभव को जाना होगा, स्वयं के भीतर निर्गुण आत्मा व सगुण जीवात्मा के भेद को समझना होगा, स्वयं के परम सत्य विराट आत्मस्वरूप को जानना होगा|
जिसने अपने बाहरी मायावी स्वरूप भौतिक शरीर को, अपने भीतर के कर्मयोगी मनुष्यरूपी जीवात्मा को और मनुष्य रूपी सगुण जीवात्मा के भीतर अपने विराट आत्मस्वरूप को जान लिया, कर्मभूमि पर उस कर्मयोगी का मानव जीवन सार्थक हो गया| कर्मभूमि पर मानव को मायावी महामाया को पराजित कर भौतिक शरीर के मोह व सत-असत जीवात्मस्वरूप को त्यागकर, विदेही भाव में विराट आत्मस्वरुप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण करना होता है| आत्मज्ञानी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|