सोचो जरा आप कौन है? इस कर्मभूमि पर कहाँ से क्यों आए हो? यहाँ से आपको कहाँ जाना है?….

कहाँ से तुम आए हो, कहाँ तुमको जाना है जी,
पता नहीं, कब किस जगह मर जाना है?
अरे जिसने बनाया तुम्हें, उसको तो जाना नहीं,
धर्म कर्म की बातों को, तुमने कहाँ जाना है?
अरे इतना तो मान लेना, यह है प्रभु का कहना,
खाली हाथ आए हो जी, खाली हाथ जाना है|
अरे माटी के पुतले हो तुम तो, माटी में मिल जाना है, 
तो बतलाओ जग से क्या साथ लेकर जाना है?

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सम्पूर्ण सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, क्योंकि सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मा एक ही सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी नश्वर रूप है| मनुष्य योनि को देव योनि से भी श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि कर्मभूमि पर मानव अपने सगुण मायावी जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विराट आत्मस्वरुपता में निर्गुण प्रभु परमब्रह्म स्वरूप बन सकता है| इसलिए देवी-देवता भी कर्मभूमि पर मनुष्य योनि में जन्म लेने के लिए तरसते है|

मानव जीवन को अमूल्य माना गया है, किन्तु रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान के अभाव में मानव अपने अमूल्य मानव जीवन को निर्थक बना देता है व जीवन भर अपने मायावी नश्वर तन के लिए कर्म करता रहता है| नश्वर तन के लिए कर्म करने वाले कर्मयोगी का कर्मभूमि पर निरंतर आवागन होता रहता है| सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के लिए कल्कि ज्ञान सागर मानव धर्म का वो आधार स्तम्भ है, जो कर्मभूमि पर मानव-मात्र का जीवन सार्थक बना सकता है| कल्कि ज्ञान सागर के ज्ञानानुसार सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनो अपना अमूल्य मानव जीवन सार्थक बनाओ|   

Related Posts

WhatsApp WhatsApp us