
मानव के लिए कर्मभूमि पर सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है, धर्म की सत्य परिभाषा है मानव का नैतिक कर्तव्य है उसके कारण कर्मभूमि पर किसी भी जीव-जीवात्मा को कष्ट न पहुंचे, सत्कर्मी बनकर स्वयं का जीवनयापन करते हुए सृष्टि के अन्य जीवो को यथाशक्ति जीने में सहायता करे| कर्म-काण्ड का मतलब धार्मिक अनुष्ठान करना नही, धार्मिक कर्म करने से है किन्तु ब्राह्मणों ने कर्म काण्ड को धार्मिक अनुष्ठान में बदल दिया, जिसमें जीवों की सेवा तो होती नही धन की बर्बादी जरुर होती है| धार्मिक अनुष्ठान में खर्च किये जाने वाला पैसा असहाय जीवो की सेवा में लगाया जा सकता है| जीवो की सेवा के अलावा और कोई परिभाषा नही है| भगवान महावीर ने कहा है सबकी सेवा सबसे प्यार जिओ और जीने दो|
WhatsApp us 










