कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश|
भक्त नहीं मैं तुम सबको भगवान बनाने आया हूँ|
युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए ईश्वर ने कर्मभूमि पर मुझ जैसे गृहस्थ जीवन वाले एक साधारण इंसान को निमित्त बनाया है| मैं आपकी तरह एक संसारी इंसान हूँ मैं कोई संत-महात्मा, महंत-महापुरुष या ईश्वर का अवतार नहीं हूँ, नही इस संसार में मेरा कोई धर्मगुरु है और नहीं मैंने किसी धर्म-संप्रदाय के धर्मग्रंथ से ज्ञान अर्जित किया है| मैं कल्कि साधक कैलाश मोहन अपने हृदयस्त परम गुरुवर परमब्रह्म के संदेशानुसार स्वयं की अंतःप्रेरणा से सम्पूर्ण मानव जगत के बीच सभी मनुष्य रूपी जीवात्माओं का परम हितेषी बनकर कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के ह्रदय में देवत्त्व व दिव्यता जागृत कर धर्म और ईश्वर के नाम पर जाति, पंत, संत, संप्रदाय, अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल और धर्मग्रंथो से मुक्त कराने आया हूँ| मैं मानव मात्र को विराट आत्मस्वरूप बनाकर, मायावी भौतिक शरीर से मुक्त कराने आया हूँ, भक्त नहीं मैं तुम सबको भगवान बनाने आया हूँ| सम्पूर्ण मानव जगत के नाम ईश्वरीय संदेश-
भूलकर भगवान को, तुम मत पूजो नश्वर इंसान को,
तेरा प्रभु तो तुझ में बसा है, अब मत पूजो पाषाण को|
बंद कर दो मंदिरो के दरवाजे और नमाज भी पढ़ना छोड़ दो,
अगर अब भी मेरी नहीं मानते हो, तो मुझको मानना छोड़ दो|
सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक निर्गुण परमब्रह्म ही परमसत्य है, जो निष्कलंक, निराकार, अनादी अजर-अमर, अविनाशी, परम सत्य है| सृष्टि के सभी देवी-देवता और मनुष्य एक ही सगुण परब्रह्म रूपी जीवात्मा के वंशज है और आत्मस्वरूपता में निराकार परमब्रह्म के अंशज है| दृष्टि ही सृष्टि है कर्मभूमि पर जिसने अपने परब्रह्म रूपी साकार स्वरूप में स्वयं के भौतिक शरीर मे जीवात्मा के भीतर परमब्रह्म स्वरूप अपने विराट आत्मस्वरूप को जाना उसने सब कुछ जान लिया| ज्ञात रहे निराकार परमब्रह्म ने दुनिया बनाई नहीं उनकी इच्छा के कारण बन गई है|
निराकार की इच्छा शक्ति ने,
निराकार को भी साकार बना दिया|
एक परम सत्य परम महाशक्ति को भी,
सत से सत-असत बना दिया|
सत-असत के इस रहस्यमय खेल में,
खुद ही खुद से हो गए जुदा|
सत-असत से पुनः परम सत्य बनने के लिए,
खुद ने खुद को, खुद का खुदा बना दिया|
हे मानव जगत के लोगों ऊपर की इन चार लाइनों में सम्पूर्ण ब्रह्मांड और अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन का रहस्यमय वो गहरा ज्ञान छुपा हुआ है, जो कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को उनका सत्य स्वरूप याद दिलाकर मानव-मात्र को ईश्वर और अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त करा देगा| कल्कि ज्ञान सागर कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगियों को विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बना देगा|
ज्ञात रहे अजन्में, निष्कलंक, निराकार निर्गुण परमब्रह्म ने दुनिया बनाई नहीं, बल्कि उनकी इच्छा शक्ति के कारण बन गई| जब अरबों वर्ष पहले कहीं भी कुछ भी नहीं था, तब भी सूक्ष्म ब्रह्मांड एक निराकार परम महाशक्ति विराट आत्मस्वरूपता में विधमान थी, जिसे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार वेदो में ब्रह्म कहा गया विज्ञान ने उर्जा माना और कल्कि ज्ञान सागर में इसी ज्ञान और शक्तिस्वरूप विराट आत्मा को परम गुरुवर परमब्रह्म माना गया है| उसी अजन्में, निष्कलंक, निराकार दिव्य महाशक्ति को मानव जगत के लोग अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड, वाहेगुरु, सतगुरु, सदगुरु के नाम से पूकारते है|
विज्ञान एवं आध्यात्मिक ज्ञानानुसार जब कहीं कुछ भी नहीं था, तब भी एक दिव्य महाशक्ति सूक्ष्म ब्रह्मांड में विराट आत्मस्वरुपता में विद्यमान थी| एक बार परमब्रह्म के मन में इच्छा जागृत हो जाती है, एको अहम बहुस्याम यानि मैं एक से अनेक हो जाऊँ और अपने आपको अनेक रूप में देख सकु, परमब्रह्म की इसी इच्छा शक्ति के कारण विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर ब्रह्मांड में अनेक प्रकार के ग्रह, नक्षत्र, अणु, परमाणु, द्रव्य, सूरज, चाँद, सितारो के साथ ही परम सत्य विराट आत्मस्वरूप निर्गुण परमब्रह्म का ही सत-असत अर्द्धनारीश्वर स्वरूप सगुण जीवात्मा का प्राकट्य हो जाता है, जिसे कल्कि ज्ञान सागर में आध्यात्मिक ज्ञानानुसार सगुण परब्रह्म माना गया है|
ज्ञात रहे अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार निर्गुण परमब्रह्म व सगुण परब्रह्म एक ही सिक्के के दो पहलु है| सगुण परब्रह्म को ही मानव जगत के लोग शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदम-ईव के नाम से पुकारते है| देवलोक के सभी देवी-देवता और कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगी मानव देवादी देव महादेव परब्रह्म के ही अनेक मायावी रूप है| अतः मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, मानव परमात्मा स्वरूप नहीं, परमात्मा परब्रह्म का ही सगुण मायावी रूप है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सुन्दर सृष्टि के रचियता अर्द्धनारीश्वर स्वरूप एक ही परब्रह्म ने सृष्टि के विस्तार के लिए सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओ का मायावी रूप धारण किये हुए है| जिस प्रकार सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है, उसी प्रकार सम्पूर्ण सृष्टि में भी एक सगुण परब्रह्म ही परम सत्य है, जिसे हम सम्पूर्ण मानव जगत के लोगो के परम माता-पिता परमात्मा कह सकते है|
ज्ञात रहे अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार, सृष्टि के विस्तार के लिए सगुण परब्रह्म ही अपनी इच्छा शक्ति से अर्द्धनारीश्वर स्वरूप से स्त्री और पुरुष का भिन्न-भिन्न रूप धारण करते है| अतः सम्पूर्ण सृष्टि के सभी देवी-देवता व कर्मभूमि पर सभी मनुष्य देवादि देव महादेव अविनाशी सगुण परब्रह्म के नश्वर परिवर्तनशील मायावी रूप है| योगिराज श्रीकृष्ण ने गीता में बार-बार कहा है कि अनेक प्रकार के देवी-देवताओं की पूजा करना और कराना मूढ़ बुद्धि के लोगो की देन है, सृष्टि में देवी-देवता व मानव का अलग से कोई अस्तित्व नही है| कर्मभूमि पर सभी मनुष्यों को अपने जन्मदातार, पालनहार, परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म को नमन करते हुए एक ही परम सत्य निर्गुण परमब्रह्म की साधना करना चाहिए| एक जानों एक को मानों अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार जब कही भी कुछ भी नही था, तब निर्गुण परमब्रह्म की इच्छा होती है एको अहम बहुस्याम इसी इच्छा शक्ति से सत-असत रूपी मायावी सगुण परब्रह्म का प्राकट्य हुआ| सृष्टि के विस्तार के लिए एक ही सगुण परब्रह्म ने सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओ के रूप धारण किये हुए है| अतः कर्मभूमि पर कोई भी कर्मयोगी अपने सगुण परब्रह्म स्वरूप जीवात्मस्वरूप को त्यागकर, विराट आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप बन सकता है| जिस प्रकार कर्मभूमि पर बहने वाली नदिया सागर में मिल जाने के बाद अपना नाम, अपना अस्तित्व खो देती है और नदी से सागर बन जाती है| ठीक इसी प्रकार मनुष्य भी विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप बनकर अपने भौतिक शरीर का अस्तित्व खो देता है और उसका विराट स्वरूप अनेक में एक को ही देखता है वो निष्काम कर्मयोगी परमब्रह्म स्वरूप बन जाता है|
ईसाई धर्म के संस्थापक जीजस ने जब अपने विराट आत्मस्वरूप को जान लिया तो कहा मैं ईश्वर की संतान हूँ तुम सभी मेरे पास आओ तुम भी ईश्वर की संतान कहलाओगे| इसी प्रकार पैगंबर मोहम्मद हजरत ने कहा था वो ईश्वर के संदेश वाहक है मनुष्यों तुम पत्थरों के बुतो को पूजना बंद करो जिंदा इन्सानो की सेवा करो, मैं तुम्हें मानव धर्म का सत्य मार्ग बताने आया हूँ| इसी प्रकार श्रीकृष्ण ने भी कहा था हे पार्थ मैं ही ईश्वर हूँ मैंने अपने सत्य स्वरूप को जान लिया है और तुम भी मेरी तरह स्वयं के सत्यस्वरूप को जान सकते हो| इसी प्रकार भगवान महावीर, बुद्ध, गुरुनानक, कबीर ने भी मानव जगत को एक ही निराकार ईश्वर की साधना करने का संदेश दिया| सभी धर्म गुरुओ के संदेशानुसार मानव के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है|
अरबों वर्ष पहले परमब्रह्म की इच्छा शक्ति ने निर्गुण परमब्रह्म को सत-असत रूपी अर्द्धनारीश्वर स्वरूप सगुण परब्रह्म बना दिया और सगुण परब्रह्म की इच्छा शक्ति ने अपने ही अर्द्धनारीश्वर स्वरूप को प्रकृति और पुरुष बना दिया| यही से अद्भुत रहस्यमय सृष्टि का सृजन होकर सृष्टि के विस्तार के साथ ही सृष्टि में एक से बने दो के बीच भेद पैदा हो जाता है| इस भेद को मिटाने के लिए दो से पुनः एक बन जाने के लिए, सत-असत, आत्मा-जीवात्मा, नेकी-बदी, नर-नारी, सूक्ष्म शरीर-भौतिक शरीर के बीच सृष्टि के अद्भुत रहस्यमय खेल की शुरुआत हो जाती है| सत-असत के बीच जंग सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के भीतर चल रही है| असत्य का त्याग कर सत्यवादी बनो, अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|
सर्वप्रथम निर्गुण निराकार परमब्रह्म अपनी इच्छा शक्ति के कारण निर्गुण निराकार से सगुण साकार बन गए| साकार स्वरूप में विकार उत्पन्न हो जाने से सृष्टि का विस्तार हुआ और सृष्टि के विस्तार में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओं के साथ-साथ देवलोक में अनेक प्रकार के देवी-देवता व पृथ्वीलोक पर अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओं के बीच सगुण परमात्मा परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति, सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव का कर्मयोगी के रूप में अवतरण हुआ| इस प्रकार सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव सगुण परब्रह्म के मायावी रूप है, देवी-देवता व मानव का सृष्टि में अलग से कोई अस्तित्व नही है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार निर्गुण परमब्रह्म सभी देवी-देवता व मानव की निराकार आत्माओं के स्वामी बनकर परब्रह्म स्वरूप सभी देवी-देवताओं एवं सभी मनुष्यों के हृदय में आत्मस्वरूपता में ज्ञान और शक्ति स्वरूप विधमान रहते है| अतः सम्पूर्ण सृष्टि के सभी देवी-देवता और सभी मनुष्य आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म के अंशज व जीवात्मस्वरूप में सगुण परब्रह्म के वंशज है| ज्ञात रहे मनुष्य रूपी जीवात्मा का आत्मस्वरूप ही उसका परम सत्यस्वरूप है| कर्मभूमि पर सभी मानव जीवन कर्म प्रधान है अतः कर्मभूमि पर कोई भी मनुष्य सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का पालन करते हुए अपने जीवन में स्वर्ग सुख का आनंद लेते हुए विराट आत्मस्वरूपता में निष्काम कर्मयोगी मतलब अकर्मी बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकता है|
आज का मानव अज्ञानतावश जिस निराकार परम महाशक्ति परमब्रह्म को भगवान, अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड मानकर उसे बाहर ढूंढ रहा है वो कोई ओर नहीं बल्कि मानव स्वयं ही विराट आत्मस्वरूपता में परमब्रह्म स्वरूप है| आज का मानव कालदोष के कारण अपने स्वयं के विराट आत्मस्वरूप को, सत्यस्वरूप को भूलकर स्वयं ही स्वयं की तलाश कर रहा है| यही तो है अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन का अद्भुत रहस्य, इस रहस्यमय ज्ञान को अरबों वर्षो में मानव समझ नहीं पाया, इसलिए सगुण परमात्मा परब्रह्म का सुन्दर सृष्टि का सपना आज तक साकार नही हो पाया|
ज्ञात रहे एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है, उस दिव्य महाशक्ति को मानव ने अपनी भाषा के अनुसार अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड, वाहेगुरु, सद्गुरु जैसे अनेक नाम दे दिए है ये नाम मनुष्यों के दिमाग की ऊपज है| जो निराकार है उसका नाम कैसे हो सकता है? जो मानव के भीतर विधमान है भला वो बाहर कैसे मिल सकता है? इस छुपा छुपी के खेल में खुदा खुद ही खुद से हो गए जुदा जिसने आत्मा व जीवात्मा के भेद को जाना उसने सब कुछ जान लिया, उस कर्मयोगी का कर्मभूमि पर मानव जीवन सार्थक हो गया|
सम्पूर्ण ब्रह्मांड की परम महाशक्ति निर्गुण परमब्रह्म सृष्टि के सभी देवी-देवताओं व मानव के भीतर आत्मस्वरूपता में ज्ञान व शक्ति स्वरूप हृदयस्त विद्यमान रहते है| मानव आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप व जीवात्मस्वरुपता में सगुण परब्रह्म स्वरूप है, इसलिए मानव को परमात्मा स्वरूप माना जाता है| कल्कि ज्ञान सागर के अनुसार मानव परमात्मा स्वरूप नहीं परमात्मा का ही रूप है| कालदोष के कारण आज का मानव अपने सत्यस्वरूप को भूलकर अपने आपको भौतिक शरीर मानकर, अपने भौतिक शरीर के लिए ही कर्म करने लगा है|
आध्यात्मिक ज्ञान व विज्ञान के अनुसार जब कुछ भी नहीं था तब भी सूक्ष्म ब्रह्मांड में ज्ञान एवं शक्ति स्वरूप एक निराकार परम महाशक्ति विराट आत्मस्वरूपता में विधमान थी| इसी परम महाशक्ति को विज्ञान ने उर्जा माना व वेदों में ब्रह्म के नाम से जाना गया, जिसे मानव जगत आज अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड, कबीर, सद्गुरु, सतगुरु, वाहेगुरु जैसे अनेक नामो से जानता-मानता है| उसी निराकार परम महाशक्ति निर्गुण परमब्रह्म से विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर सगुण परब्रह्म का प्राकट्य हुआ, जिसे प्रभु से प्रकट हुई महामाया भी कहते है| इसी परब्रह्म को मानव जगत के लोग शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदम-ईव के नाम से भी जानते है| सगुण परब्रह्म के द्वारा ही सुन्दर सृष्टि का सृजन हुआ और सृष्टि में अनेक प्रकार के देवी-देवताओ, जीव-जीवात्माओ के साथ ही कर्मभूमि पर सगुण परमात्मा परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव का जन्म हुआ| इसलिए मानव को परमात्मा स्वरूप कहा जाता है|
ज्ञात रहे एक निर्गुण परमब्रह्म से प्रकट हुए सगुण परब्रह्म ने सृष्टि के विस्तार के लिए सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओ का रूप धारण किये हुए है| जो दिव्य महाशक्ति निर्गुण स्वरूप में एक है, वही सगुण स्वरूप में अनेक है| अतः खुद से खुद का भेद भाव कैसा? खुद ही खुद से प्यार करते हो और खुद ही खुद से नफरत भी करते हो और खुद ही खुद से लड़ते भी हो| यही तो है अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन की रहस्यमय महामाया जिसका रहस्यमय खेल दिव्य महाशक्ति के निर्गुण व सगुण स्वरूप के बीच चल रहा है, इस रहस्यमय खेल में दृष्टि ही सृष्टि है और सृष्टि है महामाया, यह महामाया मानव को मायावी दृष्टि देकर मोहमाया में फ़साने का कार्य करती है|
सृष्टि की दृष्टि रूपी इस मायावी खेल में कर्मभूमि पर कौन अपना और कौन पराया है कौन किसका पति है कौन किसकी पत्नी है, जबकि परब्रह्म स्वरूप हर मनुष्य का सत्यस्वरूप ही अर्द्धनारीश्वर है एक ही परब्रह्म रूपी जीवात्मा के अनेक रूप बन गए है इसी को कहते है अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन की रहस्यमय महामाया का रहस्यमय माया जाल जिसमें कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगी सृष्टि की मायावी दृष्टि मे कैद हो जाते है| कर्मभूमि पर जिस कर्मयोगी ने भौतिक दृष्टि रूपी महामाया को पराजित कर भौतिक शरीर रूपी मैं से मुक्त होकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बन गया कर्मभूमि पर उसका मानव जीवन सार्थक हो गया| मैं कल्कि साधक कैलाश मोहन कर्मभूमि पर मानव-मात्र को महामाया के कैद से मुक्त कराने आया हूँ| भक्त नही मैं तुम सबको भगवान बनाने आया हूँ| कर्मभूमि पर भौतिक शरीर रूपी मैं से मुक्त हो जाने की क्रिया को मुक्ति कहते है|
ज्ञात रहे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार देवलोक से कर्मभूमि व देव योनि से मनुष्य योनि को श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि मानव कर्मभूमि पर अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर निर्गुण विराट आत्मस्वरूप बन सकता है, जिसे सत-असत से पुनः परम सत्य बन जाना, साकार से पुनः निराकार बन जाना भी कहते है| देवलोक में देवी-देवताओ के लिए ऐसा कर पाना संभव नही है, इसीलिए देवी-देवता भी कर्मभूमि पर जन्म लेने के लिए तरसते है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार पता नहीं सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओ को कितनी योनियों में भटकने के बाद, कितनी त्रासदियाँ सहने के बाद, सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ मनुष्य योनि में जन्म मिलता है| अतः कर्मभूमि पर हमारे विश्व मानव परिवार के लोगों को कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से अपने विराट आत्मस्वरूप को, अपने सत्यस्वरूप को जानकर अपने विश्व मानव परिवार के बीच आपसी भेद-भाव मिटाकर अपना मानव जीवन सार्थक बनाना चाहिए| ज्ञात रहे हम सब एक है, सबका स्वामी एक, जिसने दिव्य महाशक्ति के निर्गुण व सगुण स्वरूप को जाना, जिसने स्वयं के भीतर सगुण जीवात्मा व निर्गुण आत्मा के भेद को जाना उसने सब कुछ जान लिया, उसका मानव जीवन सार्थक हो गया| मानव परमात्मा स्वरूप नही परमात्मा का ही रूप हो| सम्पूर्ण सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है|
अल्लाह, ईश्वर कहते हो मुझको और कहते हो प्रभु, परमात्मा|
तुम में मुझ में बस फर्क है इतना, तुम शरीर हो मेरा मैं हूँ तुम्हारी आत्मा||
सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किए बिना मनुष्यों के लिए इस संसार से मुक्त्ति का और कोई उपाय नहीं है| ज्ञात रहे एक ही परमब्रह्म के दो स्वरूप दो चरित्र है, जो निर्गुण स्वरूप में एक है वही सगुण स्वरूप में सृष्टि के विस्तार के लिए अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओ के रूप धारण किये हुए है| जो निर्गुण स्वरूप में कर्म करने का ज्ञान देने वाला है, वही सगुण स्वरूप में कर्मभूमि पर कर्म करने वाला कर्मयोगी बना हुआ है, अतः दिव्य महाशक्ति के निर्गुण व सगुण को हम एक ही सिक्के के दो पहलू कह सकते है|
ज्ञात रहे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की जो दिव्य महाशक्ति है उसका प्रथम स्वरूप निर्गुण, निष्कलंक निराकार है, वो अनादी, अजन्मा, अजर-अमर, अविनाशी, परम सत्य है, वो न तो किसी की संतान है और नहीं उनकी कोई संतान है, उसे न तो किसी ने बनाया है और नहीं कोई मिटा सकता है| उसी परम सत्य दिव्य महाशक्ति निर्गुण परमब्रह्म का दूसरा नश्वर व परिवर्तनशील स्वरूप सत-असत सगुण परब्रह्म स्वरूप है| वो दिव्य महाशक्ति कर्मभूमि पर मानव-मात्र के भीतर अपने दोनों स्वरूप निर्गुण आत्मा व सगुण जीवात्मा के रूप में विद्यमान है| सत-असत का युद्ध मानव-मात्र के भीतर चल रहा है, मानव को कर्मभूमि पर सत-असत सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण करना चाहिए| नश्वर संसार में नश्वरता से मुक्ति पाने के लिए, विराट आत्मस्वरूप परम सत्यवादी बनने के लिए असत्य का त्याग करना होगा, इसी क्रिया को आध्यात्मिक ज्ञानानुसार मोक्ष और मुक्ति का मार्ग कहा गया है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार कर्मभूमि पर मानव-मात्र सगुण परब्रह्म स्वरूप मनुष्यरूपी जीवात्मस्वरूप में सत-असत धारी है, मानव परम सत्य निर्गुण व सत-असत सगुण इन दो महाशक्तियों के बीच कर्मयोगी बना हुआ है| मानव आत्मस्वरूपता में सत्य का प्रतीक है क्योंकि मनुष्य की आत्मा परम सत्य, अजर-अमर, अविनाशी है, ज्ञात रहे सत्य पर धूल जम सकती है, किन्तु सत्य कभी मिट नहीं सकता| मनुष्य का सगुण साकार भौतिक शरीर असत्य है और असत्य को एक न एक दिन मिटना ही पड़ता है क्योंकि असत्य अस्थाई है नश्वर है अतः एक ना एक दिन मनुष्य को आत्मस्वरूप बनकर अपना आत्मकल्याण करना ही है| तभी कर्मभूमि पर जन्म मरण से मुक्ति मिल सकती है|
इस मायावी सृष्टि में, इस मायावी दुनिया में, कर्मभूमि पर किसी भी कर्मयोगी को ईश्वर को पूजने, ईश्वर को मानने, ईश्वर को जानने से ज्यादा स्वयं के सत्य स्वरूप को, स्वयं के विराट आत्मस्वरूप को जानने की जरुरत है| जिसने स्वयं के भीतर ईश्वर के निर्गुण आत्मस्वरूप व सगुण जीवात्मस्वरूप को जाना उसने सब कुछ जान लिया, कर्मभूमि पर उसका मानव जीवन सार्थक हो गया| अतः मनुष्यों को कर्मभूमि पर सत-असत सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में विराट निर्गुण आत्मस्वरूपता में निष्काम कर्मयोगी बनकर अपने भीतर सृष्टि की महामाया व असत को पराजित कर अपना आत्मकल्याण करना चाहिए| विराट आत्मस्वरूपता ही सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव का सत्यस्वरूप है, जिसे निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप कह सकते है| कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से कर्मभूमि पर मानव-मात्र कल-कल करती नदियों की तरह बहते हुए, एक दिन सागर में मिलकर स्वयं सागर बन सकता है, इसी क्रिया को मोक्ष और मुक्ति कहा गया है|
आध्यात्मिक ज्ञान और विज्ञान के अनुसार धरती को बनकर आज अरबो वर्ष बीत चुके है, हमारा वर्तमान कलेंडर आज भी 2023 वर्ष की गणना कर रहा है और मानव जगत के तामसिक कर्मो से धरती पर पाप का बोझ बढ़ जाने के कारण फिर से महाविनाश की तैयारी नजर आ रही है| क्योंकि धरती को बनकर भले अरबो वर्ष बीत गए किन्तु अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन का रहस्यमय ज्ञान आज तक कोई जान न पाया, नही सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी परमब्रह्म का सत्यस्वरूप आज तक कोई जान पाया| नहीं कोई कर्मयोगी स्वयं के सत्यस्वरूप को, स्वयं के भीतर ईश्वरीय वैभव को जान पाया| सभी ने एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति मानते हुए एक ब्रह्म को ही परम सत्य, अल्लाह, ईश्वर, खुदा, गॉड मान लिया किन्तु कोई यह क्यों नही जान पाया कि एक ही ब्रह्म के दो स्वरूप दो चरित्र है, निर्गुण व सगुण और दोनों स्वरूप एक ही सिक्के के दो पहलु है|
जो दिव्य महाशक्ति निर्गुण स्वरूप में अनादी, अजन्मा, अजर-अमर, अविनाशी, निष्कलंक, निराकार, परम सत्य है, वही मायावी सगुण स्वरूप में सत-असत है, अविनाशी होकर भी परिवर्तनशील है| एक परम सत्य परमब्रह्म की इच्छा सकती से ही उनका सत-असत जीवात्मस्वरूप का प्राकट्य हुआ मतलब आत्मा से जीवात्मा का प्राकट्य हुआ| सनातन धर्म में इसे प्रभु से प्रकट हुई महामाया भी कहते है|
निर्गुण दिव्य महाशक्ति के कारण मायावी सत-असत सगुण जीवात्मस्वरूप का प्राकट्य हुआ, ये किसी ने नहीं जाना| जो परम सत्य है वही तो सत-असत है, जो निर्गुण स्वरूप में विराट आत्मस्वरूप है, वही तो मायावी सगुण जीवात्मस्वरूप में सत-असत जीवात्मा है| एक ही दिव्य महाशक्ति के दो स्वरूप दो चरित्र है, निर्गुण व सगुण| सगुण स्वरूप में दिव्य महाशक्ति स्वयं हरता, कर्ता, भरता बना हुआ है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान को मानव जगत के लोगों ने जान लिया होता तो कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगियों का मानव जीवन सार्थक हो जाता, हमारी कर्मभूमि स्वर्ग बन जाती किसी को मर कर स्वर्ग नही जाना पड़ता| सम्पूर्ण मानव जगत के लोग कर्मभूमि पर निष्काम कर्मयोगी बन जाते और मोक्ष भी धरती पर उतर आता|
कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जागत के लोगों ने अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान को अब तक जान लिया होता, प्रभु से प्रकट हुई महामाया को जान लिया होता, कर्मभूमि पर समस्त कर्मयोगियों ने अपने स्वयं के भीतर सत-असत के बीच चल रही जंग को जान लिया होता, तो आज का मानव अल्लाह, ईश्वर की इबादत नहीं करता| कर्मयोगियों ने अपने भीतर विद्यमान दिव्य महाशक्ति को, अपने स्वयं की आत्मशक्ति को, अपने स्वयं के विराट आत्मस्वरूप को, अपने स्वयं के सत्यस्वरूप को जान लिया होता तो आज हमारी कर्मभूमि अविनाशी स्वर्ग बन गयी होती| आज का मानव पूरे ब्रह्मांड को स्वर्ग और मोक्ष बनाकर, पूरे ब्रह्मांड का नायक बनकर, सुंदर सृष्टि में भ्रमण करते हुए प्राकृतिक एवं मानव निर्मित पर्यटन का आनंद ले रहा होता|
जब से सृष्टि का सृजन हुआ है तब से अब तक मानव जगत की अज्ञानतावश कर्मभूमि पर पाप के कारण बार-बार महाविनाश नहीं होते आये है| हमारी कर्मभूमि को बनकर अरबों वर्ष बीत गये, कर्मभूमि पर मानव का जन्म होकर भी लाखों वर्ष बीत गये, किन्तु हमारा वर्तमान कलेंडर आज भी मात्र 2023 वर्ष की गणना कर रहा है| सम्पूर्ण मानव जगत के लोग अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान को जानकर, विदेही भाव में विराट आत्मस्वरुपता में निष्काम कर्मयोगी बन गए होते तो आज हमारा वर्तमान कलेंडर 2023 नहीं बल्कि अरबो वर्षो की गणना कर रहा होता|
ज्ञात रहे मै कल्कि साधक कैलाश मोहन ईश्वरीय संदेशानुसार अपनी अंतरप्रेरणा से कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से कर्मभूमि पर मानव को महामानव इंसान को ईश्वर स्वरूप बनाने आया हूँ| मैं सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को उनका सत्यस्वरूप बताकर धर्म और ईश्वर के नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्म ग्रंथ, जाति, पंत, संत, संप्रदाय से मुक्त कराने आया हूँ| कर्मभूमि पर मैं सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को ईश्वर व अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त कराने आया हूँ, मैं तुम्हें भक्त नहीं भगवान बनाने आया हूँ|
हमारी संस्था अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान सम्पूर्ण मानव जगत के सभी धर्म, पंत, संत, संप्रदाय का हृदय से सम्मान करती है| हम सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों की धार्मिक आस्था का सम्मान करते है| हम ईश्वरीय संदेशानुसार सम्पूर्ण मानव जगत के बीच अपनी अंतःप्रेरणा से सत्कर्म और सेवा रूपी कल्कि ज्ञान सागर मानव धर्म की प्रभावना करने जा रहे है| हमारा मकसद किसी भी धर्म, पंत, संत, जाति-संप्रदाय की निंदा करना या किसी इंसान की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाना नहीं है, बल्कि सदियो पहले धर्म और ईश्वर के नाम पर धर्म के ठेकेदारो द्वारा थोपी गई मन-मानी रूढ़िवादी मान्यताओं की बेड़ियों से सम्पूर्ण मानव जगत को मुक्त कराना है|
कल्कि ज्ञान सागर कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को सत्कर्मी बनाकर धरती पर धर्म के प्रति बढ़ती ग्लानि को मिटाकर सतयुगी दुनिया का सृजन करने जा रहा है| सम्पूर्ण मानव जगत के सत्कर्म ही अपनी धरती को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना सकते है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर जो बच्चे आज जन्म ले रहे है, आने वाले 30 साल बाद वो दुनिया की नई पीढ़ी होगी| अतः कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से युवा पीढ़ी के नाम ईश्वरीय संदेश…..
नहीं आसमान में है, घर बार मेरा,
और नहीं कभी जमीन पर, जन्म लेता हूँ|
रूह बनकर रहता हूँ, तुम्हारे भीतर हृदय में,
कर्मयोगी का हृदय है कर्मभूमि पर निवास मेरा|
कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से हम सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार बताने जा रहे है सम्पूर्ण ब्रह्मांड की दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म के दो स्वरूप दो चरित्र है निर्गुण व सगुण| जो निर्गुण स्वरूप में परम सत्य है वही सगुण स्वरूप में सत-असत है, सम्पूर्ण सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण परमब्रह्म का सगुण स्वरूप है| अतः कर्मभूमि पर सभी मनुष्य परम सत्य आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप व सत-असत जीवात्मस्वरुपता में सगुण परब्रह्म स्वरूप है, क्योंकि परमब्रह्म आत्मस्वरूपता में और परब्रह्म जीवात्मस्वरूप में सभी मनुष्यों के भौतिक शरीर के भीतर निराकार स्वरूप में विधमान रहते है| कर्मभूमि पर कर्मयोगियों को सत-असत जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप बनना होता है, इसी क्रिया को कर्मभूमि पर मुक्ति और मोक्ष कहा गया है|
ज्ञात रहे मानव के भीतर ईश्वर निर्गुण आत्मस्वरूप व सगुण जीवात्मस्वरूप में विद्यमान रहता है आत्मा व जीवात्मा दोनों निराकार है| इस नश्वर संसार में सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव एक ही परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है, जिनका सृष्टि में अलग से कोई अस्तित्व नही है, तो भला इंसान का नश्वर शरीर भगवान कैसे बन सकता है? मनुष्य रूपी जीवात्मा को कर्मभूमि पर महामाया को पराजित कर, अपने जीवात्मस्वरूप को त्यागकर, अपना आत्मकल्याण करना होता है| कर्मभूमि पर अपने नश्वर व मायावी जीवात्मस्वरूप को त्यागकर पुनः अपने परम सत्य विराट आत्मस्वरूप को पाना ही सृष्टि का अद्भुत रहस्यमय खेल है|
नश्वर संसार में मानव नश्वरता को त्यागकर विराट आत्मस्वरूप बनकर निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप बन सकता है| मानव के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है तो फिर ईश्वर और मानव धर्म के नाम पर धार्मिक स्थलो में नश्वरता की पूजा करना कैसे सार्थक हो सकता है? ज्ञात रहे मानव का नश्वर शरीर कभी भगवान नहीं बन सकता, क्योंकि निराकार ईश्वर का कर्मभूमि पर जन्म-मरण नहीं मानव के भीतर आत्मा में प्राकट्य होता है, इस क्रिया को परकाय प्रवेश भी कहते है मूढ़ बुद्धि के लोग है जो कर्मयोगी के नश्वर भौतिक शरीर को भगवान मानकर उनकी मूर्तियाँ बनाकर नश्वरता की पूजा करते है|
जब कर्मभूमि पर मनुष्यों के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है, अतः मानव को जिंदा जीव-जीवात्माओ की सेवा करना चाहिए बेजान पत्थरो की नहीं| कर्मभूमि पर मनुष्यों का जीवन कर्म प्रधान है सभी मनुष्यों को ईश्वर से ज्यादा कर्म करने के ज्ञान की जरूरत है अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर का गुण-गान करने की नहीं, क्योंकि उस निराकार दिव्य महाशक्ति के लिए मानव के सत्कर्म ही उसकी सच्ची पूजा है| जिसने अपने भीतर अपने परमब्रह्म स्वरूप विराट आत्मस्वरूप को जाना उसने सब कुछ जान लिया| जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते|