||कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश||
निराकार परमब्रह्म कभी साकार प्रकट नहीं होता, वो अनादी, अजन्मा, अजर-अमर, अविनाशी, गुण-दोष रहित है, कर्मभूमि पर उस निष्कलंक, निराकार, दिव्य महाशक्ति का युगानुसार किसी निष्काम कर्मयोगी के हृदय में ज्ञान स्वरूप भव्य अवतरण होता है और वो अवतरण वर्तमान में पूर्ण प्रमाण के साथ भारत की पावन भूमि पर कल्कि ज्ञान सागर के रूप में हो चुका है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार निराकार परम गुरुवर परमब्रह्म ज्ञान और आत्मशक्ति स्वरूप है वो अनादी, अजर-अमर, अविनाशी, अजन्मा, गुण-दोष रहित है जिसे मानव जगत के लोग अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड, वाहेगुरु, याहवेह के साथ-साथ और भी कई नामो से जानते मानते पुकारते है| ज्ञात रहे निष्कलंक निराकार परम दिव्य महाशक्ति मानव मात्र के परम गुरुवर है जो मनुष्यों के हृदय में ज्ञान स्वरूप विधमान रहते है| मानव अपने भीतर विद्यमान दिव्य महाशक्ति को योग द्वारा जानकर उस दिव्य महाशक्ति से कर्म करने का ज्ञान ग्रहण कर सकते है| ज्ञात रहे निराकार परम महाशक्ति ज्ञान और आत्मशक्ति स्वरूप है, वो परम ज्ञानेश्वर है वो सिर्फ ज्ञान और आत्मशक्ति के दातार है वो मनुष्यों के हृदय में ज्ञान और आत्मशक्ति स्वरूप विधमान रहते हुये मनुष्यों को सिर्फ कर्म करने का ज्ञान और आत्मशक्ति प्रदान करा सकते है इसके अलावा वो मनुष्यों को एक रति भर भी कुछ नहीं दे सकते बाकी सब कुछ मानव को अपने कर्मो से पाना होता है| ज्ञात रहे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की एक ही निष्कलंक निराकार अनामी परम दिव्य महाशक्ति को कर्मभूमि पर मानव जगत के लोगों ने अपने-अपने धर्म संप्रदाय के अनुसार अनेक नाम दे दिये है| सत्य तो यह है कि वो निराकार है इसलिए अनामी भी है फिर भला निराकार का कोई नाम कैसे हो सकता है? वर्तमान में निराकार परमब्रह्म धरती पर कल्कि ज्ञान सागर के रूप मे अवतरित हो चूके है| मैं अपने हृदयस्त परम गुरुवर की आज्ञानुसार अपनी अंतः प्रेरणा से सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को निराकार का सत्यस्वरूप बताने आया हूँ मानव-मात्र को उसका सत्यस्वरूप बताकर ईश्वर और अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त करने आया हूँ….
दर से उसकी आया हूँ मैं , उसी के दर पर जाऊंगा|
ना कुछ साथ लाया हूँ , ना कुछ लेकर जाऊंगा |
धर्म अहिंसा विश्व धर्म हो, सब एक माने परमात्मा |
एक ही नाम रहे निराकार का, वो नाम तुम्हें दे जाऊंगा |
दोस्तो मैं खाली हाथ आया हूँ, खाली हाथ चला जाऊंगा|
ज्ञात रहे मूढ़ बुद्धि के लोग ही कह सकते है मुझे सब कुछ मेरा भगवान या मेरा अल्लाह ईश्वर दे रहा है अगर अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड, वाहेगुरु, याहवेह मनुष्यों को सब कुछ दे रहा होता तो फिर वो सबको एक समान ही देता किसी को कम किसी को ज्यादा नहीं फिर तो कोई गरीब अमीर भी नहीं होता कोई दुखी या अभावग्रस्त भी नहीं होता| ज्ञात रहे मानव जीवन कर्म प्रधान है ईश्वर मानव को सिर्फ कर्म करने का ज्ञान प्रदान करा सकता है किसी से निर्धारित कर्म नही करवा सकता| निराकार ईश्वर कभी साकार प्रकट नहीं होता धरती पर उनका किसी निष्काम कर्मयोगी मनुष्य के हृदय में ज्ञान स्वरूप भव्य अवतरण होता है| किन्तु आज तक अरबों वर्षो में बड़े से बड़े ऋषि मुनि और वेदो के ज्ञाता भी निराकार परम दिव्य महाशक्ति के सत्य स्वरूप को और अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान को नहीं समझ पाया, इसीलिए धरती पर मानव जगत की अज्ञानतावश आज तक महाविनाश ही होते आए है| ज्ञात रहे हमारी धरती को बनकर आज अरबों वर्ष बीत चुके है किन्तु हमारा वर्तमान कलेंडर आज भी 2023 वर्ष की गणना कर रहा है और मानव जगत की अज्ञानतावश कर्मभूमि पर एक बार फिर से धर्म के प्रति ग्लानी होने से पाप का बोझ बढ़ने लगा है, जिसके कारण कर्मभूमि पर कभी भी महाविनाश होकर मानव का नामों निशान मिट सकता है|
आज के विकास के युग में मानव एक तरफ तो चाँद और मंगल गृह पर बसने की तैयारी कर रहा है और दूसरी तरफ धरती पर बारूद के ढेर बिछाकर खुद को मिट्टी में मिलाने की तैयारी कर रहा है| कुछ विकसित और विकासशील देश अपने निजी स्वार्थ के लिए सम्पूर्ण मानव जगत का नामो निशान मिटा सकते है| ज्ञात रहे विकसित और विकासशील देश कितने भी ताकतवर हथियार बना ले वो प्रकृति और परमात्मा से नही लड़ सकता, नहीं स्वयं को प्रकृति और परमात्मा की मार से बचा सकता है| मानव ने कभी ये सोचा है की धरती पर विकास मे हजारो वर्ष लग जाते है और महाविनाश के लिए कुछ ही पल काफी है| अगर धरती थोड़ी सी कंपन कर गई और मानव जगत पर प्राकृतिक आपदा आ गई तो क्या वो अपने हथियारो का उपयोग कर पाएंगे? क्या वो अपने आपको बचा पाएंगे? जब खुद ही बैमौत मर जाएंगे मिट्टी में मिल जाएंगे, तब उनका अपना कौनसा देश होगा? उनका अपना कौनसा धर्म संप्रदाय होगा? सब कुछ धरा का धरा पर धरा ही रह जाएगा|
कर्मभूमि पर मानव जगत की नादानी से महाविनाश होने के बाद जब हजारो वर्ष बाद यही सभी मनुष्य रूपी जीवात्मा लौटकर वापस कर्मभूमि पर जन्म लेगे तब खुद ही पुरातत्व की खोज करेंगे और खुद ही खुद की पहचान एक मानव कंकाल के रूप में करेंगे| कर्मभूमि को स्वर्ग बनाकर जाओ या नरक बनाकर लौटकर तो वापस इसी कर्मभूमि पर आना है अपने कर्मो से बचकर जाओगे कहाँ? ज्ञात रहे जब लौटकर वापस आओगे तब आने के बाद राजा से रंक बन जाओगे| हजारो वर्ष तक फिर से अभाव ग्रस्त जीवन जीना पड़ेगा| कर्मभूमि पर अपने किए की सजा पाने के बाद ही वापस हजारो वर्ष बाद आज की दुनिया तक पहुँच पाओगे| जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धान्त है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर सब कुछ परिवर्तनशील है जब हमारे नश्वर भौतिक शरीर की एक पल की गारंटी नहीं है, तो भला इस नश्वर संसार में हमें नश्वर तन की भौतिक दृष्टि से दिखने वाला सृष्टि में हमारा अपना क्या हो सकता है? अतः सम्पूर्ण मानव जगत को सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का पालन करते हुये, कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बनाने के लिए सतयुगी दुनिया का सृजन कर अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण करना चाहिए| जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते|