सम्पूर्ण ब्रह्मांड की दिव्य महाशक्ति का कर्मभूमि पर निष्कलंक निराकार ”कल्कि ज्ञान सागर” स्वरूप भव्य अवतरण…

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिभर्वति भारत,
अभ्युत्थानाम धर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम,
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम,
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामी युगे युगे|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार कर्मभूमि पर मानव जगत के लोगों के हृदय में जब-जब धर्म के प्रति ग्लानि अत्यधिक बढ़ जाती है और कर्मभूमि पर धर्म की हानी होने लगती है, तब-तब सज्जन साधु संतो एवं सत्कर्मी मनुष्यों की रक्षार्थ सम्पूर्ण ब्रह्मांड की दिव्य महाशक्ति का कर्मभूमि पर निष्कलंक निराकार ज्ञान स्वरूप भव्य अवतरण होता है| इस क्रिया में सर्वप्रथम कर्मभूमि पर युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए सुन्दर सृष्टि के रचियता परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म का किसी निष्काम कर्मयोगी सगुण जीवात्मा के भीतर अवतार स्वरूप प्राकट्य होता है, इसके बाद उस निष्काम कर्मयोगी सगुण जीवात्मा की निर्गुण आत्मा के भीतर सम्पूर्ण ब्रह्मांड की निष्कलंक निराकार दिव्य महाशक्ति निर्गुण परमब्रह्म का ज्ञान व आत्मशक्ति स्वरूप भव्य अवतरण होता है जिसे कर्मभूमि पर ईश्वरीय अवतरण कह सकते है| इस प्रकार कर्मभूमि पर अवतार व ईश्वर का प्राकट्य निष्काम कर्मयोगी के तन के भीतर जीवात्मा व आत्मा के भीतर होता है, तो भला किसी निष्काम कर्मयोगी का नश्वर तन भगवान कैसे बन सकता है? ज्ञात रहे निष्काम कर्मयोगी का जीवात्मास्वरूप कर्मयोगी अर्जुन के समान होता है और उसका आत्मस्वरूप कर्मयोगी को कर्म करने का ज्ञान देने वाला परम गुरुवर परमब्रह्म आत्मस्वरूपता में कृष्ण के समान होता है| निष्काम कर्मयोगी का तन एक रथ के समान है, जिस पर सवार होकर दिव्य महाशक्ति द्वारा उस निष्काम कर्मयोगी के माध्यम से कर्मभूमि पर पुनः सतयुगी धर्म की स्थापना और प्रभावना कराई जाती है|

आज कालदोष के कारण सम्पूर्ण मानव जगत के लोग सम्पूर्ण ब्रह्मांड की एक ही निराकार दिव्य परम महाशक्ति परमब्रह्म को अज्ञानतावश अनेक रूप में मानते हुए अनेक नाम से पुकारने लगे है| जिस निराकार दिव्य महाशक्ति का कर्मभूमि पर कभी जन्म-मरण नहीं होता, जिस निष्कलंक निराकार दिव्य परम महाशक्ति को आज तक कभी किसी ने देखा नहीं उसी के नाम पर दुनिया के लोग जाति, पंत, संत, संप्रदाय, अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल धर्म ग्रंथ बनाकर आपस में लड़ रहे है| जबकि मानव धर्म के लिए सिर्फ दो शब्द का ज्ञान है सत्कर्म और सेवा| मानव के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है, मानव के सत्कर्म मानव को कर्मभूमि पर स्वर्ग सुख प्रदान कराते है, ठीक इसी प्रकार कर्मभूमि पर कोई कर्मयोगी निष्काम कर्मयोगी बनकर मानव जगत के लोगों की सृष्टि के सभी जीवो की सेवा करता है ऐसे निष्काम कर्मयोगी के लिए मोक्ष के द्वार स्वतः ही खुल जाते है| कर्मभूमि पर मानव के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं  है, किन्तु आज सम्पूर्ण मानव जगत के लोग अपने मानव धर्म की परिभाषा को भुलाकर धर्म के नाम पर जाति संप्रदाय बनाकर आपस में लड़ रहे है, जिसके कारण कर्मभूमि पर धर्म के प्रति ग्लानी निरंतर बढने लगी है|

आध्यात्मिक ज्ञान और विज्ञान के अनुसार हमारी धरती को बनकर आज अरबों वर्ष बीत चूके है, किन्तु हमारा वर्तमान कलेंडर आज भी  2023 वर्ष की गणना कर रहा है और कर्मभूमि पर मनुष्यों में तामसिक प्रवर्तियाँ बढ़ जाने के कारण धरती पर फिर से महाविनाश की तैयारी नज़र आने लगी है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर पाप का बोझ मिटाकर महाविनाश को रोकने के लिए, धरती पर सम्पूर्ण मानव जगत को ईश्वर और अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त कराने के लिए, सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी निष्कलंक निराकार दिव्य परम महाशक्ति का सत्य स्वरूप बताकर, सम्पूर्ण मानव जगत के बीच धार्मिक भेदभाव मिटाने के लिए, सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म को विश्व धर्म बनाने के लिए, भारत की पावन भूमि पर वीरों की भूमि राजस्थान प्रांत के आध्यात्मिक वागड़ अंचल में लोड़ी काशी के नाम से विश्व विख्यात धर्म नगरी बांसवाड़ा शहर में निष्कलंक निराकार दिव्य परम महाशक्ति का कल्कि ज्ञान सागर के रूप में भव्य अवतरण होकर सर्वधर्म समाज के बीच जाति, पंत, संत, संप्रदाय, धार्मिक स्थल और धर्म ग्रंथ रहीत सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना हो चूकी है| सम्पूर्ण मानव जगत के नाम ईश्वरीय संदेश ईश्वर और धर्म दोनों मनुष्यों के भीतर हृदयस्त विधमान है वो बाहर कही नहीं मिल सकते|

 नहीं आसमान में है, घर बार मेरा,
और नहीं कभी, जमीन पर उतरता हूँ |
रूह बनकर रहता हूँ, सभी जीवात्माओं के भीतर,
कर्मभूमि पर हर इंसान के हृदय में  है, निवास मेरा|

आज हमारी धरती पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगो के बीच धर्म और ईश्वर के नाम पर जो आपसी विवाद चल रहे है इसकी वजह है अज्ञानता, और वो अज्ञानता है ईश्वरीय ज्ञान देने वाले इंसान को अपने धर्म गुरुओं को अवतार, तीर्थंकर, पैगाम्बर मानकर धर्म के नाम पर जाति, पंत, संप्रदाय बना देना| ज्ञात रहे ज्ञान देने वाला गुरुवर गुरुओ का भी गुरु परम गुरुवर सिर्फ एक ही है वो है निर्गुण परमब्रह्म जिसने युगानुसार कभी राम-कृष्ण-महावीर नाम के भौतिक तन के माध्यम से तो कभी ईसा, मोहम्मद, कबीर, गुरुनानक के भौतिक तन के माध्यम से, मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान दिया है| अतः ज्ञात रहे राम, ईसा, मोहम्मद, महावीर, कृष्ण, कबीर, गुरुनानक कर्मभूमि पर निष्काम कर्मयोगी के नश्वर भौतिक शरीर के नाम है, जीवात्मा-आत्मा या अवतार-ईश्वर के नहीं| अवतार, पैगाम्बर, तीर्थंकर मनुष्य का नश्वर शरीर नहीं बल्कि मनुष्य के भौतिक शरीर के भीतर परब्रह्म स्वरूप मनुष्य रूपी जीवात्मा होता है और वो जीवात्मा सत-असत रूपी निराकार परब्रह्म स्वयं ही होता है, उसी सत-असत निराकार परब्रह्म रूपी जीवात्मा के भीतर परम सत्य निराकार निर्गुण परमब्रह्म का ज्ञान व आत्मशक्ति स्वरूप भव्य अवतरण होता है| ज्ञात रहे निराकार सगुण परब्रह्म रूपी सगुण जीवात्मा और निर्गुण परमब्रह्म रूपी परम सत्य निर्गुण आत्मा दोनों मानव के भीतर विधमान है, दोनों अजर-अमर, अविनाशी है दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है किन्तु एक परम सत्य है दूसरा सत-असत है| कर्मभूमि पर जैसे कोई नदी सागर में मिल जाती है तो वो नदी स्वयं सागर स्वरूप बन जाती है, उस नदी का अपना नाम व अस्तित्व मिट जाता है किसी निष्काम कर्मयोगी के भीतर सगुण जीवात्मा व निर्गुण आत्मा एकाकार हो जाते है, तो वो निष्काम कर्मयोगी निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप बन जाता है, उसके बाद उस निष्काम कर्मयोगी का कर्मभूमि पर जन्म-मरण मिट जाता है| इसी क्रिया को मोक्ष प्राप्ति कहते है| 

ज्ञात रहे सगुण परब्रह्म स्वरूप मनुष्यरूपी जीवात्माओं के लिए कर्मभूमि पर प्रकृति के पंचतत्वों से बना मानव रूपी भौतिक शरीर मनुष्य रूपी जीवात्माओं के लिए एक रथ के समान है| इस रथ के माध्यम से मनुष्यरूपी जीवात्मा अपने सत्यस्वरूप को पाने के लिए कर्मभूमि पर अवतरित होता है| कर्मभूमि पर अवतरित होने वाले मनुष्यरूपी जीवात्मा को उसका विराट सत्यस्वरूप बताने के लिए उस जीवात्मा के भीतर निर्गुण परमब्रह्म आत्मस्वरूपता में विद्यमान रहते है| कर्मभूमि पर जिस कर्मयोगी ने आत्मा व जीवात्मा के भेद को जाना उस कर्मयोगी का कर्मभूमि पर मानव जीवन सार्थक हो गया| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर सगुण मनुष्यरूपी जीवात्मा के भीतर विद्यमान निर्गुण आत्मा सदैव कर्म करने का ज्ञान देती रहती है| जिस कर्मयोगी ने अपने जीवात्मस्वरूप की लगाम अपनी निर्गुण आत्मा के हाथो में दे दी कर्मभूमि पर वो निष्काम कर्मयोगी सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के लिए परम हितेषी बनकर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों की सेवार्थ निष्काम कर्म करता है वो निष्काम कर्मयोगी अपनी अंतःप्रेरणा से धरती पर सम्पूर्ण मानव जगत को मंगलमय जीवन जीने का और आत्मकल्याण का मार्ग बताता है इस कार्य में मनुष्य तन सिर्फ माध्यम होता है कर्ता नहीं| ज्ञात रहे सम्पूर्ण ब्रह्मांड में कर्ता, हरता और भरता सिर्फ एक ही है जिसे हम परमब्रह्म कह सकते है| जो सगुण मनुष्यरूपी जीवात्मस्वरूप में कर्मयोगी बना हुआ है, वही निर्गुण स्वरूप में सगुण स्वरूप को कर्म करने का ज्ञान देने वाला परम गुरुवर बना हुआ है|

ज्ञात रहे ईश्वर ने युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए आध्यात्मिक संदेश मानव जगत तक पहुंचाने के लिए मुझ जैसे एक गृहस्थ निष्काम कर्मयोगी के नश्वर तन को निमित्त बनाया है| कर्मभूमि पर मैं भी सभी इन्सानो की तरह एक साधारण संसारी इंसान हूँ, सभी इंसानों की तरह मेरा जीवन भी कर्मो के अधीन है, इसलिए कर्मभूमि पर मेरा जन्म मेरे पिछले जन्म के शुभ अशुभ कर्मो के अनुसार हुआ है| इस दर्द भरी दुनियां में संघर्षमय जीवन जीते हुए दर-दर की ठोकरे खाने के बाद, जीवन की अर्द्धशताब्दी में मुझे गृहस्थ जीवन में सफलता हासिल होती है, इसी के साथ अचानक मेरे जीवन में दर्दनाक घटना घटित होती है और जब मैं जिंदगी और मौत के बीच मझदार में होता हूं, इस विकट घडी में जब डॉक्टर भी अपने हाथ खड़े कर दिए तब अचानक मुझ एक संत का आशीर्वाद मिला कि 24 घंटो में आप अपने पेरो पर खड़े होंगे| संत द्वारा दिए गये आशीर्वाद के अनुसार मुझे नया जीवन मिल जाता है, तब मुझे अपने हृदय में सम्पूर्ण ब्रह्मांड की दिव्य परम महाशक्ति निर्गुण परमब्रह्म का अहसास होने लगा| मुझे स्वयं के भीतर से कर्म प्रधान मानव जीवन के बारे में अंतःप्रेरणा मिलने लगी, इसी के साथ मुझे अपने स्वयं के कर्म प्रधान जीवन की अनुभूति हुई और ईश्वर की कृपा से मुझे संसार रूपी दर्द भरे भवसागर से पार लगने के लिए स्वयं के भीतर की अंतःप्रेरणा से कर्म करने का ज्ञान मिलने लगा| ईश्वर से मिले कर्म करने के ज्ञान की प्रभावना सम्पूर्ण मानव जगत के बीच करने के लिए, मैने अपनी अंतः प्रेरणानुसार कर्मभूमि के आध्यात्मिक खंड भारत की पावन भूमि पर 31 दिसंबर 2016 अर्द्धरात्रि को कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना करने के बाद मैं सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को धार्मिक एकता कोमी एकता का सन्देश देने लगा|

मै अपने जीवन संघर्ष के पथ पर नदी की तरह बहते हुए एक दिन सागर में जा मिलता हूं और सागर में मिल जाने के बाद मेरा अपना अस्तित्व समाप्त हो गया और मैं जन कल्याण की भावना ह्रदय में लिए मानव जगत के बीच भागवत कैलाश मोहन के नाम से कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से मानव धर्म की प्रभावना करने लगता हूँ| मोहन हूं मै मोहमाया से तुम्हें बचाने आया हूं धरती के हर इंसान को मै भगवान बनाने आया हूं| ज्ञात रहे मै कोई अवतारी महापुरुष या भगवान नहीं हूं मै सम्पूर्ण मानव जगत को ईश्वर और अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त कराने आया हूं, मुझमें जो दिव्य परम महाशक्ति ज्ञान स्वरुप विधमान है वो कर्मभूमि पर हर कर्मयोगी के ह्रदय के भीतर विधमान है| मैंने उस दिव्य परम महाशक्ति को जान लिया है और मेरी तरह कर्मभूमि पर हर कर्मयोगी अपने भीतर की उस दिव्य महाशक्ति को जान सकता है| आओ आप और हम कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए सत्कर्मी बनकर सतयुगी दुनिया का सृजन कर अपनी कर्मभूमि को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना सकते है| जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति,सत्यमेव जयते |

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