धरती पर मानव के लिए धर्म सिर्फ एक है, ” सनातन धर्म ” जिसका कोई संस्थापक व स्थापना दिवस नही है और नहीं उसका कोई जाति सम्प्रदाय है| युगों-युगों से सत्कर्म और सेवा रूपी सनातन धर्म ही विश्व धर्म रहा है| धर्म का मतलब है कर्मभूमि पर मानव-मात्र का कर्तव्य और मानव-मात्र का कर्तव्य है सबकी सेवा सबसे प्यार, जिओ और जीने दो|
कर्मभूमि पर मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, मायावी सृष्टि में मानव का अलग से कोई अस्तित्व नही है| जब कर्मभूमि पर मानव के नश्वर तन का एक पल का भरोसा नहीं है, तो भला इस कर्मभूमि पर उसका अपना क्या है और उसका अपना कौन हो सकता है? पता नही कब किस पल उसका नश्वर तन परिवर्तन हो जाये और उसका घर-परिवार, धन-दौलत पल भर में छुट जाये| चार दिन की जिन्दगी है, प्रेम से मिलकर रहना सिख लो|
आज के विकास के युग में मानव जगत की अज्ञानतावश धर्म और ईश्वर के नाम पर अनेक प्रकार के जाति-संप्रदाय बन गये है, जिसके कारण कर्मभूमि पर धर्म के प्रति ग्लानी बढ़ने लगी है| कर्मभूमि पर स्थापित किसी भी धर्म-संप्रदाय के धर्म गुरु ने मानव को तामसिक प्रवृति का बनने को नही कहा, किसी को सृष्टि के जीवों को त्रासदी देने को कभी नहीं कहाँ, धर्म के नाम पर जाति संप्रदाय बनाकर आपस में लड़ने-झगड़ने व खून-खराबा करने को भी नही कहा| सभी धर्म गुरुओ ने मानव जगत के लोगो को सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का पालन करने को कहा| ज्ञात रहे मानव के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है|
21वी सदी को हम युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय कह सकते है, कर्मभूमि पर कलयुग को सतयुग में परिणित कर कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन मानव जगत के सत्कर्म ही कर सकते है ईश्वर नहीं| कर्मभूमि पर मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, मानव-मात्र के भीतर विशाल ईश्वरीय वैभव विधमान है, मानव चाहे तो कर्मभूमि पर सगुण परमात्मा स्वरूप को त्यागकर निर्गुण ईश्वर स्वरूप बन सकता है|
मानव जगत चाहे तो निष्काम कर्मयोगी बनकर अन्तरिक्ष में धरती जैसी अनेक नई दुनिया बसा सकता है| मानव जगत आज जो पैसा हथियारों पर खर्च कर रहा है, वही पैसा कर्मभूमि पर विकास कार्य में खर्च किया जा सकता है, असहाय लोगों की सृष्टि के जीवो की सेवा पर खर्च किया जा सकता है| कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोग विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर, अपनी कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन कर सकते है, अपनी धरती माता को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना सकते है|
कर्मभूमि पर धर्म के प्रति बढती ग्लानी को रोकने के लिए, मानव जगत के लोगों को विश्व के सभी धर्मो को मिलाकर एक धर्म बनाना होगा, देखते ही देखते कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन होकर, हमारी धरती माता अविनाशी स्वर्ग बन जाएगी व मोक्ष भी धरती पर उतर आएगा किसी को मरकर स्वर्ग और मोक्ष नहीं जाना पड़ेगा| सत्कर्मी बनकर कर्मभूमि पर स्वर्ग सुख पाओ और अपने मंगलमय जीवन के साथ विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण कर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|