मुझ कल्कि साधक कैलाश मोहन का ह्रदय प्रभु कृपा से बना कल्कि ज्ञान सागर…..

कर्मभूमि पर कर्मयोगी कल्कि साधक कैलाश मोहन के
जीवन दर्पण में कल्कि ज्ञान सागर का प्राकट्य

कर्मभूमि पर मुझ गृहस्थ जीवन वाले एक साधारण कर्मयोगी कल्कि साधक कैलाश मोहन के जीवन की एक ऐसी दर्द भरी दास्तान, जिसमें मुझ कल्कि साधक को जीवन भर दर-दर की ठोकरे खानी पड़ी, इसके बाद मेरे जीवन की अर्द्धशताब्दी में मेरे हृदय में निर्गुण प्रभु परमब्रह्म का कल्कि ज्ञान सागर के रूप में प्राकट्य हुआ| मुझे अपनी अंतःप्रेरणा से ब्रह्म को जानने, आध्यात्म को मानने एवं कर्म करने का ज्ञान मिला, जिससे मुझ कल्कि साधक कैलाश मोहन का कर्मभूमि पर मानव जीवन सार्थक हो गया| प्रभु परमब्रह्म से मिले ज्ञान की प्रभावना मैं कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के बीच करना चाहता हूँ| हमारा मकसद सम्पूर्ण मानव जगत के बीच धार्मिक भेदभाव को मिटाकर कलयुग को सतयुग में परिणित कर, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करना है| हम अपनी कर्मभूमि को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बनाना चाहते है|

जय अहिंसा कल्कि ज्ञान गुण सागर,
ज्ञान की द्वारिका वाग्वरांचल माही सागर|

कर्मभूमि पर कोई भी कर्मयोगी जन्म से नहीं सत्कर्म और निष्काम कर्म से महान बनता है, कर्मभूमि पर पापी से पापी महापापी और अज्ञानी कर्मयोगी भी अपने द्वारा अज्ञानतावश किए गए तामसिक पाप-कर्मो का प्रायश्चित करते हुए, निष्काम कर्मयोगी बनकर योग द्वारा अपने हृदय में विधमान परम गुरुवर निर्गुण परमब्रह्म को जान सकता है| कर्मभूमि पर कोई भी कर्मयोगी अपने हृदयस्त परम गुरुवर परमब्रह्म से कर्म करने का ज्ञान ग्रहण कर राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक, मोहम्म्द, महावीर, कृष्ण, कबीर की तरह अपनी अंतःप्रेरणा से कर्मभूमि पर सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म की प्रभावना करते हुए, सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान प्रदान करते हुए, अपना आत्मकल्याण कर सकता है|

कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जगत के नाम ईश्वरीय संदेश…. मेरे बच्चो तुम अपना एक कदम भर सत्य के मार्ग पर रख दो मैं तुम्हें एक ना एक दिन इस कर्मभूमि से मुक्ति दिलाकर तुम्हें सम्पूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी बना दूंगा एक बार ज्ञान की गंगा बनकर बहना सीख लो मैं तुम्हें भी ज्ञान का सागर बना दूंगा| दोस्तो मैं कैलाश मोहन मानव जगत के बीच सम्पूर्ण मानव जगत का दोस्त बनकर जन-जन तक सत्कर्म और सेवा रूपी नवीन विश्व धर्म कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म का ईश्वरीय संदेश पहुंचाने आया हूँ….

दर से जिसकी आया हूँ मैं ,उसी के दर पर जाऊंगा|
ना कुछ साथ लाया हूँ, और ना कुछ लेकर जाऊंगा|
धर्म अहिंसा विश्व धर्म हो, सब एक माने परमात्मा,
एक ही नाम रहे निराकार का, वो नाम तुम्हें दे जाऊंगा |
दोस्तो मैं खाली हाथ आया हूँ, खाली हाथ चला जाऊंगा|

दोस्तो मैं कल्कि साधक कैलाश मोहन आपकी तरह गृहस्थ जीवन वाला एक साधारण इन्सान हूं, कर्मभूमि पर मेरा जन्म एक गरीब परिवार में हुआ| गरीबी के कारण मेरा बचपन अभावग्रस्त रहा, जिसके कारण मैं अपनी पढाई पूरी नहीं कर पाया| मेरे मन में ईश्वर के प्रति नाराजगी थी, मैं ईश्वर को इसलिए नहीं मानता था कि ईश्वर ने हमें गरीब व दूसरों को अमीर क्यों बनाया? मैं छोटी सी उम्र में नास्तिक बन गया, किन्तु पारिवारिक संस्कारो के कारण मैं आध्यात्मिकता से जुड़ा रहता था| गरीबी के कारण बचपन से मेरा जीवन संघर्षमय रहा| छोटी सी उम्र में परिवार की खुशहाली के लिए मेरे मन में पैसा कमाने की दृढ़इच्छा जागृत हुई| पैसा कमाने के लिए मैं देश के कई प्रांतो, शहरों में काम की तलाश में सड़को पर दर-दर की ठोकरे खाता रहा और जीवन संघर्ष में मेरे जीवन के 32 वर्ष बीत चुके थे| 

अपने वतन में मुझे कही भी सफलता नहीं मिली, आखिर मुझे अपना वतन अपना घर-परिवार छोड़कर सात समंदर पार जाना पड़ा| विदेश में जाकर भी कड़े संघर्ष के बाद बड़ी मुश्किल से मुझे सफलता मिली, किन्तु तब तक मेरे जीवन की अर्द्धशताब्दी पूरी हो चुकी थी| मेरी पूरी जवानी दर-दर की ठोकरे खाने में गुजर जाती है जीवन भर संघर्ष करने के बाद मिली सफलता से मुझे और मेरी पत्नी को तो कुछ नहीं मिला, किन्तु मेरे जीवन संघर्ष से पारिवारिक जीवन की खुशहाली का सपना साकार हो गया| किन्तु मेरे भाग्य में तो अब भी भटकाव की लकीरे मिटी नहीं थी|

जीवन की अर्द्धशताब्दी में सफलता हासिल करने के बाद मेरे पिछले अशुभ कर्मो का उदय हुआ एक दिन अचानक मेरे जीवन में दर्दनाक घटना घटित हुई, मुझे अचानक भयंकर चक्कर आये और मैं सर के बल फर्श पर गिर गया और मेरे मस्तिष्क के अंदरूनी भाग में जबर्दस्त चोट लग जाती है ऐसे में मौत मेरे करीब होती है और मैं अपने जीवन की आखरी श्वांसे गिन रहा होता हूं| ऐसी विकट घड़ी में परिवार के लोग स्थानीय डॉक्टर को बताने के बाद मुझे बांसवाड़ा से अहमदाबाद ले जाते है और वहाँ के एक बहुत बड़े हॉस्पिटल में मुझे भर्ती करा दिया जाता है| कई बड़े-बड़े डॉक्टर मुझे एक साथ देखते है, आपातकालीन कुछ इलाज करने के बाद वो अपने हाथ खड़े कर देते है की ऐसी हालत में इनका इलाज संभव नहीं है और मस्तिष्क का ऑपरेशन करना इनकी जान के लिए जोखिम भरा हो सकता है|

ऐसी त्रासदी भरी विकट घड़ी में मेरे जीवन में अचानक ईश्वरीय चमत्कार हुआ और एक जैन संत आचार्य श्री रयणसागर जी महाराज के आशीर्वाद से मुझे नया जीवन मिला| जीवन की अर्द्ध शताब्दी में ईश्वरीय चमत्कार को देखकर मेरे मन में ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा भाव जागृत हुए और मैं नास्तिक से आस्तिक बन गया| अपने जीवन की अर्द्धशताब्दी के बाद मिले इस नए जीवन के साथ ही मेरे अपने हृदय में दिव्य महाशक्ति का प्राकट्य होता है और मुझे अपनी अंतःप्रेरणा से अपने जीवन में मिली त्रासदियों के बारे में ज्ञान मिलने लगता है कि मुझे मेरे अपने जीवन में अब तक जितनी भी त्रासदियां मिली है वो मेरे अपने ही पूर्व कर्मो का कर्मफल है| अतः मैं स्वयं ही स्वयं का गुनेहगार हूँ क्योंकि मैं स्वयं ही स्वयं का भाग्य विधाता हूँ| मैंने ही अपने कर्मो द्वारा अपना भाग्य लिखा है, पिछले भव में मैंने कैसे-कैसे कर्म किए थे उन कर्मो का अनुमान मुझे मेरे वर्तमान जीवन से मिलने लगा |

मैं अपनी आध्यात्मिक सोच के अनुसार मन ही मन चिंतन करने लगा, मेरे जीवन की विकट घड़ी में जैन संत आचार्य श्री रयण सागर जी महाराज के निमित्त से उनसे बिना मिले, बिना मांगे मुझे ईश्वर का आशीर्वाद क्यों मिला? ये भी मुझे अपनी अतःप्रेरणा से ज्ञात हो चूका था| आचार्य श्री ने मुझे आशीर्वाद देते हुए अहिंसा परमोधर्म के प्रचार-प्रसार करने की आज्ञा प्रदान की| आचार्य श्री की आज्ञानुसार मैं अपना नवीन जीवन मानव सेवा और जन कल्याण के कार्य के लिए व अहिंसा परमोधर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए समर्पित कर देता हूँ| इसी के साथ मैं अपनी अंतःप्रेरणानुसार सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का पालन करने का सन्देश देते हुए, कर्म करने का ज्ञान देने लगता हूँ| मेरे अंतर मन की भावना…..

जन कल्याण की भावना लिए, तुम्हारी शरण में आया हूं,
मैं तुम में समाझाऊँ, तुम मुझ में समाझाओं|
धर्म अहिंसा विश्व धर्म हो, सब एक माने परमात्मा,
कर सके कल्याण अपना, सब मानव जगत की आत्मा|

इसी भावना के साथ मेरे ह्रदय में आजीवन मानव सेवा करने के भाव जागृत हुए और मुझे आध्यात्मिक ज्ञान की प्रभावना करने की निरंतर अंतःप्रेरणा मिलने लगी| मैं अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान की स्थापना कर मानव सेवा के साथ-साथ मानव जगत को सत्कर्म और सेवा रुपी मानव धर्म का सन्देश देने लगा| सत्कर्म और सेवा रुपी मानव धर्म के पथ पर चलते हुए, मुझे अपने ह्रदय में दिव्य महाशक्ति से अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन का रहस्यमय ज्ञान मिलने लगा और उस ज्ञान की प्रभावना सोशल मीडिया के माध्यम से जन-जन के बीच करने लगा| मानव जगत के लोगों को ईश्वर का सत्यस्वरूप और मानव धर्म की सत्य परिभाषा समझाते हुए, सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म को आत्मसात करने का ज्ञान देने लगता हूं|

दोस्तों मै अपने जीवन संघर्ष के पथ पर कर्मयोगी के रूप में नदी की तरह बहते बहते एक दिन ज्ञान रूपी कल्कि ज्ञान सागर में समाहित हो जाता हूँ और सागर में समाहित होने के बाद मेरा अपना संसारी जीवन मिट जाता है, मेरे मन में मेरे अपने भौतिक शरीर का अस्तित्व समाप्त हो जाता है| अतः मैं में से मुक्त हो जाता हूँ, इसके बाद मैं कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय सन्देश जन-जन तक पहुँचाने का कार्य करने लगता हूँ| मैं अपने अंतर मन से, अपने हृदय से विदेही भाव में आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपने प्रभु के सामने अपनी भावना व्यक्त करता हूँ और अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वरीय कार्य के लिए ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देता हूँ…….

न तो मैं नश्वर भौतक शरीर हूँ, और नहीं ये नश्वर शरीर मेरा है|
अब तो आन बसो इस तन में प्रभु, यह आत्मस्वरूप अब तेरा है||

इसी भावना के साथ मैं अपना सर्वस्य प्रभु के चरणों में समर्पित करते हुए, अपने हृदय में जन कल्याण की भावना लिए युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए सम्पूर्ण मानव जगत को ईश्वर और मानव धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्मग्रन्थ व जाति-संप्रदाय से मुक्त कराने के लिए, मानव धर्म के नाम पर अनेक प्रकार की रुढ़ीवादियों को जड़ से मिटने के लिए, कर्मभूमि को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बनाने के लिए, सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों का जीवन मंगलमय बनाने के लिए, मेरी अंतःप्रेरणानुसार भारत की पावन भूमि पर कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना हो चुकी है|

ज्ञात रहे मैं विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर मानव जगत के बीच कल्कि ज्ञान सागर के रूप में प्रकट हुआ हूं| मोहन हूं मै मोहमाया से तुम्हें बचाने आया हूं, ज्ञात रहे स्वयं व ईश्वर के सत्यस्वरूप को जाने बिना, सृष्टि की महामाया को पराजित किये बिना कर्मभूमि पर मानव के लिए मुक्ति का और कोई उपाय नही है| ज्ञात रहे मैं कोई अवतारी महापुरुष या धर्मगुरु नहीं हूं, मैं सम्पूर्ण मानव जगत को ईश्वर और अवतारवाद से मुक्त कराने आया हूं |

मुझ कल्कि साधक के हृदय में जो परम महाशक्ति निर्गुण परमब्रह्म ज्ञानस्वरुप विधमान है वो धरती के हर इंसान के ह्रदय में विधमान है, मैंने उसे जान लिया है और मेरी तरह धरती का हर इंसान उसे जान सकता है| आज के विकास के युग में सम्पूर्ण मानव जगत को धर्म और ईश्वर के नाम पर रूढ़िवादी परम्पराएं, कर्मकांड करने की नहीं कर्म करने के ज्ञान की जरूरत है| सम्पूर्ण मानव जगत को सत्य का साथ देने के लिए असत्य और रूढ़िवादी परम्पराओं का, कर्मकांड का त्याग करना होगा| तभी हम कलयुग को सतयुग में परिणित करते हुए अपनी धरती पर सतयुगी दुनिया का सृजन कर सकते है| अपनी धरती माता को महाविनाश से बचाकर, अविनाशी स्वर्ग बना सकते है|

उपरोक्त लेख के माध्यम से मैंने अपने जीवन के बारे में मानव जगत को संक्षिप्त में बताने का प्रयास किया है, सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान प्रदान कराने के लिए मैंने अपनी पूरी आत्मकथा विस्तार से लिखी है और मैंने अपनी आत्मकथा को नाम दिया है “यही है जिंदगी” आप आने वाले समय में मेरी आत्मकथा इसी वेब साइट पर पढ़ सकेंगे| जिससे आप अपने सत्यस्वरूप को, अपने विराट आत्मस्वरूप को जान सके और कर्म करने का ज्ञान ग्रहण कर अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण कर सके| आपका परम हितेषी  कल्कि साधक कैलाश मोहन जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते |

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