कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जगत के नाम ईश्वरीय संदेश
मानव जगत के विकसित और विकासशील देश कितने भी विनाशकारी हथियार बनाले वो न तो प्रकृति से लड़ सकते हो और नहीं अपने आप को प्रकृति की मार से बचा सकते है, ज्ञात रहे विकास मे हजारो वर्ष लग जाते है और महाविनाश के लिए कुछ ही पल काफी है|
हमारी धरती को बनकर अरबों वर्ष बीत गए है, फिर भी हमारा वर्तमान कलेंडर आज वर्ष 2023 की गणना कर रहा है और कर्मभूमि पर पाप का बोझ बढ़ जाने के कारण एक बार फिर से महाविनाश की संभावनाएं नजर आने लगी है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार कर्मभूमि पर मानव जीवन कर्म प्रधान है और मानव जगत के लोगों के सत्कर्म ही अपनी कर्मभूमि को महाविनाश से बचाकर अविनाश स्वर्ग बना सकते है| वर्तमान समय कर्मभूमि पर कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय चल रहा है| कर्मभूमि पर जितने विकास पिछले तीन हजार वर्षो में नहीं हो सके उतने विकास पिछले मात्र 30 वर्षो में हुए है| आज मानव चेतना की जो मिसाल कायम हो रही है उसको देखते हुए मानव जगत के लोगों को 21वीं सदी में प्रवेश करने के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है, अपनी धार्मिक सोच को बदलना, वरना धरती पर धर्म के प्रति बढती ग्लानी के कारण 21वीं सदी में प्रवेश करने से पहले महाविनाश होकर कर्मभूमि पर मानव का नामों निशान मिट सकता है| ज्ञात रहे धरा का धरा पर धरा ही रह जायेगा हे मानव तु कर्मो से बचकर कहाँ जायेगा?
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड की दिव्य परम महाशक्ति परमब्रह्म एक है इस बात को सम्पूर्ण मानव जगत के सभी धर्म संप्रदाय के लोग समान रूप से जानते मानते है, किन्तु उसी दिव्य परम महाशक्ति परमब्रह्म के दो स्वरूप दो चरित्र है| दिव्य परम महाशक्ति परमब्रह्म का निर्गुण स्वरूप अनादी, अजन्मा, निष्कलंक, निराकार, परमसत्य, गुण-दोष रहित, अजर-अमर, अविनाशी है उसे न तो किसी ने बनाया है और नही उसे कोई मिटा सकता है| वही दिव्य निर्गुण परम महाशक्ति सगुण स्वरूप में सत-असत व परिवर्तनशील है, इसे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार परब्रह्म कहा गया है, प्रभु से प्रकट हुई महामाया भी कहते है| ज्ञात रहे दिव्य शक्ति के सगुण स्वरूप के निमित्त से सुन्दर सृष्टि का सृजन हुआ है| सृष्टि के विस्तार के लिए एक ही परब्रह्म ने सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओ का मायावी रूप धारण किया हुआ है| अतः जिस प्रकार सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही विराट निर्गुण आत्मस्वरूपता में परम सत्य है, उसी प्रकार सम्पूर्ण सृष्टि में भी एक सगुण परब्रह्म ही विराट जीवात्मस्वरुपता में सत-असत है| ज्ञात रहे एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति एक ही ब्रह्म के दो स्वरूप दो चरित्र है इसी दो स्वरूप व दो चरित्र के बीच रहस्यमय सृष्टि का रहस्यमय खेल चल रहा है| कर्मभूमि पर जिसने आत्मा व जीवात्मा के भेद को जाना उसने सब कुछ जान लिया| एक को जानो एक को मानो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोग मायावी जीवात्मस्वरूप में भौतिक दृष्टि से दिखने में भिन्न-भिन्न हो सकते है किन्तु विराट आत्मस्वरूपता में कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगी एक समान है| सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है| कर्मभूमि पर मानव का जन्म अपने सगुण सत-असत जीवात्मस्वरूप को त्यागकर, विराट निर्गुण आत्मस्वरूप बनने के लिए हुआ है| इसी क्रिया को कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति और मोक्ष कहा गया है| कर्मभूमि पर मानव अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान के अभाव में सम्पूर्ण ब्रह्मांड की दिव्य परम महाशक्ति परमब्रह्म के सत्य स्वरूप को व अपने स्वयं के भीतर विद्यमान ईश्वरीय वैभव को मानव अरबों वर्षो में समझ नहीं पाया, अगर समझ गया होता तो आज का मानव जो एक देश से दूसरे देश का भ्रमण कर रहा है वो एक दुनिया से दूसरी दुनिया का भ्रमण कर रहा होता| ज्ञात रहे जब-जब धरती पर नारी और पशुओं पर अत्याचार होता है जब-जब मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिए दूसरे मनुष्यों पर अत्याचार करने लगते है और धरती पर धर्म के प्रति ग्लानि बढ़ जाती है तब धरती पर महाविनाश होता है और पुनः नई सृष्टि का सृजन होता है| मानव जगत के सत्कर्म ही कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन कर सकते है| कर्मभूमि पर सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|