निराकार को निराकार ही रहने दो, जो अजन्मा, अनामी है उसे कोई नाम न दो
ईश्वर और धर्म दोनों मानव के ह्रदय में विद्यमान है, दोनों बाहर कहीं नहीं मिल सकते |
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार निष्कलंक, निराकार, निर्गुण परमब्रह्म से प्रकट हुई महामाया को आध्यात्मिक ज्ञानानुसार सगुण परब्रह्म कहा गया है| सगुण परब्रह्म ने सगुण से पुनः निर्गुण बनने के लिए सुन्दर सृष्टि का सृजन किया और सृष्टि के विस्तार के लिए स्वयं ने सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओं व देवी-देवताओं के साथ ही कर्मभूमि पर कर्मयोगी के रूप में मानव को अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनाया|
कर्मभूमि पर सृष्टि की महामाया को पराजित कर मैं से मुक्त होकर अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर, निर्गुण आत्मस्वरूप बनने के लिए प्रकृति के पंचतत्वों से बना नश्वर भौतिक शरीर प्रदान किया है| मानव को कर्मभूमि पर सत्कर्म के बदले स्वर्ग-सुख और विदेही भाव में विराट आत्मस्वरुप निष्काम कर्मयोगी मतलब अकर्मी बनने वाले को, जन्म-मरण से मुक्ति प्रदान कराने के लिए, सगुण परब्रह्म ने मानव को अपना स्वरूप अपनी जान देकर सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनाया| किन्तु मानव जगत के लोगों ने अज्ञानतावश उस दिव्य महाशक्ति को बेजान पत्थर का रूप देकर गूंगा, बहरा, अंधा बना डाला ? उस दिव्य महाशक्ति ने मानव के हृदय में अपना निवास बनाया, किन्तु मानव ने उस अजन्मे, निष्कलंक, निराकार दिव्य महाशक्ति का भी कर्मभूमि पर घर बना डाला |
न मंदिर में, न मस्जीद में, नहीं गिरजा, गुरुद्वारे में।
न तीर्थो में, न मठो में, नहीं कमल न काबे में।
न पत्थर में, न पानी में, नहीं धरती के कण कण में।
आत्मस्वरूप तुम बन जाओ, देख लो उसको जन जन में।
ज्ञात रहे मानव के लिए कर्मभूमि पर सत्कर्म और सेवा से बडा कोई मानव धर्म नहीं है। सबसे प्यार सबकी सेवा, जिओ और दूसरो को भी जीने में मदद करो | जिसने अपने भीतर ईश्वर के निर्गुण व सगुण मायावी स्वरूप को जाना, आत्मा व जीवात्मा के भेद को जाना उसका मानव जीवन सार्थक हो गया |