युगानुसार होने वाले अवतारों के रूप अनेक हो सकते है किन्तु सभी अवतारो के हृदय में ज्ञानस्वरूप अवतरण सिर्फ एक अजन्मे परमब्रह्म का ही होता है|

   ||कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से निष्कलंक निराकार अजन्में ईश्वर का संदेश| 

कर्मभूमि पर युगानुसार होने वाले अवतार को

अलग-अलग धर्म-संप्रदाय के अनुसार भिन्न-भिन्न रूप में माना जा सकता है,

किन्तु सभी सगुण परब्रह्म स्वरूप अवतारो के हृदय में ज्ञान स्वरूप भव्य अवतरण

सिर्फ एक अजन्में निष्कलंक निराकार निर्गुण परमब्रह्म का ही होता है|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार जब कुछ भी नहीं था तब सर्वप्रथम अजन्में निष्कलंक निराकार निर्गुण परमब्रहा की इच्छा शक्ति से विशाल ब्रह्मांड का सृजन होकर अजन्में, निष्कलंक, निराकार, निर्गुण परमब्रहा ही सगुण जीवात्मस्वरूप का अर्द्धनारीश्वर स्वरूप प्राकट्य हुआ| जिसके निमित्त से विशाल ब्रह्मांड में सुंदर सृष्टि का सृजन हुआ और इसके बाद सगुण परब्रह्म ने ही सृष्टि के विस्तार के लिए सृष्टि में अनेक प्रकार के जीवो, देवी-देवता व मानव का रूप धारण किया हुआ है| सृष्टि में जीवों के जन्मदाता, पालनहार व तन परिवर्तन के लिए सगुण परब्रह्म ने ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश का रूप धारण किया हुआ है| इसी के साथ उन्होंने सृष्टि के संचालन के लिए अनेक प्रकार के देवी-देवताओं का भी का रूप धारण किया हुआ है| देवी-देवताओं के सगुण जीवात्मस्वरूप को पुनः निर्गुण आत्मस्वरूप बनाने के लिए सगुण परब्रह्म द्वारा ही सुंदर सृष्टि में कर्मभूमि का सृजन किया हुआ है| ये सारी क्रियाएं एक अनादी, अजर-अमर, अविनाशी परम महाशक्ति परमब्रहा की इच्छा शक्ति से ही हो गई है उन्होंने की नहीं है| सम्पूर्ण सृष्टि के सभी देवी- देवता और सभी मनुष्य उसी परमब्रह्म का ही सत-असत रूपी साकार सगुण स्वरूप है जिन्हें कर्मभूमि पर आने के बाद अपने परम सत्यस्वरूप को पुनः पाना होता है| इसी क्रिया को मोक्ष मार्ग और जन्म-मरण से मुक्ति कहते है| ज्ञात रहे निर्गुण परमब्रह्म और सगुण परब्रह्म एक ही सिक्के के दो पहलु है| सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है उसे विदित किए बिना इस संसार से मनुष्यों के लिए मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| अतः कर्मभूमि पर मनुष्य रूपी सभी जीवात्माओं को अपने नश्वर भौतिक शरीर के भीतर परमब्रह्म स्वरूप अपने अजर-अमर, अविनाशी सूक्ष्म शरीर को अपने सत्य आत्मस्वरूप को जानना जरूरी है ज्ञात रहे कर्मभूमि पर जिसने अपने विराट आत्मस्वरूप को जाना उसने सब कुछ जान लिया….

कहाँ से तुम आए हो, कहाँ तूमको जाना हे जी,
पता नहीं कब किस जगह मर जाना है|
अरे जिसने बनाया तुम्हें, उसको तो जाना नहीं,
धर्म कर्म की बातों को, तुमने कहाँ जाना है|
इतना तो मान लेना, यह है प्रभु का कहना,
खाली हाथ आए हो जी, खाली हाथ जाना है|
अरे माटी के पुतले हो तुम तो, माटी में मिल जाना है तो,
बतलाओ जग से, क्या साथ लेकर जाना है?

ईश्वर सभी मनुष्यों के भीतर हृदयस्त विधमान रहता है वो बाहर कहीं नहीं मिल सकता| हमारी धरती को बनकर आज अरबों वर्ष बीत चुके है फिर भी हमारा वर्तमान कलेंडर मात्र 2023 वर्ष की गणना कर रहा है और पाप के कारण फिर से हमारी धरती पर कभी भी महाविनाश हो सकता है| आज कालदोष के कारण अज्ञानतावश विकासशील देशो ने अपने स्वार्थ के लिए पूरी धरती पर बारूद के ढेर बिछा दिये है अगर तीसरा विश्व युद्ध  शुरू हो गया तो मनुष्यों का धरती पर से नामो निशान ही मिट जाएगा| ज्ञात रहे मानव जगत का सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म ही धरती को महाविनाश से बचाकर अविनाशी  स्वर्ग बना सकता है|

सदियो पहले हमारे पूर्वजो ने अज्ञानतावश निराकार परम महाशक्ति के सत्यस्वरूप को नहीं जानकर बहुत बड़ी भूल कर दी और अपने पूर्वजो की इसी भूल की सजा सम्पूर्ण मानव जगत आज तक भुगत रहा है| जिसे कभी किसी ने देखा ही नहीं जिसका सत्यस्वरूप आज तक किसी ने जाना ही नहीं उसी के नाम पर कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए एक अजन्मे निष्कलंक निराकार दिव्य परम महाशक्ति को अनेक नाम देकर अनेक प्रकार के धर्म ग्रंथ, धार्मिक स्थल, जाति, पंत, संत, संप्रदाय बनाकर मानव जगत को गुमराह कर दिया| इसीलिए धर्म और ईश्वर के नाम पर अरबो वर्षो से मानव जगत लड़ता आया है जिसके कारण धरती पर बार-बार धर्म के प्रति ग्लानि बढ़कर बार-बार महाविनाश होते आए है| आज के विकास के युग में भी सम्पूर्ण मानव जगत धर्म और ईश्वर के नाम पर आपस मे लड़ रहा है जिसके कारण धरती पर पाप का बोझ बड़ने लगा है और इसी पाप के कारण हमारी धरती पर कभी भी महाविनाश हो सकता है|

ज्ञात रहे हमारे पूर्वजो ने अज्ञानतावश मानव धर्म और ईश्वर के नाम पर अनेक प्रकार के कायदे कानून बनाकर खुद को उस निराकार परम महाशक्ति के अधीन मान लिया जो सम्पूर्ण मानव जगत का परम गुरुवर है, जो सम्पूर्ण मानव जगत का परम हितेशी है, जो सभी का भला ही करने वाला है, वो कभी किसी का बुरा नहीं करता फिर भी सभी मनुष्य उसी से डरे हुये है| कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मानव जगत को उस निराकार परम महाशक्ति का व स्वयं मानव का भी सत्यस्वरूप बताकर सम्पूर्ण मानव जगत को ईश्वर और अवतरवाद की धारणाओ से मुक्त करा देगा और धरती के हर इंसान को विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूपता में निष्काम कर्मयोगी बनाकर उसे स्वयं के भीतर स्वयं के विराट स्वरूप के दर्शन करा देगा| धरती के हर इंसान को अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर स्वरूप बना देगा अतः सम्पूर्ण मानव जगत के लिए ईश्वरीय संदेश है….

मैं ही अल्लाह, मैं ही ईश्वर, मैं ही राम रहीम हूँ,
मैं ही ईसा, मैं ही मोहम्मद, मैं ही कृष्ण कबीर हूँ |
मैं ही हूँ बुद्ध, मैं ही महावीर, मै ही सतगुरु गोविंद हूँ ,
मै ही हूँ हर दिल की धड़कन, मैं ही सभी में आत्मस्वरूप हूँ |

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार निराकार परमब्रह्म से साकार अर्द्धनारीश्वर परब्रह्म प्रकट हुए और सृष्टि के विस्तार के लिए साकार अर्द्धनारीश्वर से वो स्वयं प्रकृति और पुरुष, नर और नारी के रूप में प्रकट हुए और कर्मभूमि पर नर और नारी का जन्म हुआ| हम मनुष्य रूपी जीवात्माओं के लिए आत्मस्वरूप बनकर आत्मकल्याण करने के लिए कर्मभूमि का सृजन हुआ है| हम सभी मनुष्य रूपी जीवात्मा देवलोक से पृथ्वीलोक पर अपने आत्मकल्याण के लिए प्रकृति के पंचतत्वों से बना नश्वर भौतिक शरीर धारण करते है यह नश्वर भौतिक शरीर मनुष्य रूपी जीवात्माओ के लिए एक सवारी के समान है जिस पर मनुष्य रूपी जीवात्मा सवार होकर कर्मभूमि पर भ्रमण करते हुए अपने जीवनयापान के लिए कर्म करते हुए आत्मकल्याण के धर्म के मार्ग पर चलता है| किन्तु मनुष्य रूपी जीवात्मा अज्ञानतावश अपने सूक्ष्म शरीर अपने सत्य विराट आत्मस्वरूप को भूलाकर, अपने नश्वर भौतिक शरीर को ही अपना सत्य स्वरूप मानकर अपने नश्वर भौतिक शरीर के लिए ही कर्म करने लगता है और अपने भीतर हृदयस्त वैभव को पाने से वंचित रह जाता है| इसीलिए इस दुःख-सुख रूपी संसार सागर में गोते खाता रहता है| अतः निराकार परमब्रह्म सम्पूर्ण मानव जगत को अपना निवास स्थान बता रहे है..

नहीं आसमान में है, घर बार मेरा,
और नहीं कभी, जमीन पर उतरता हूँ|
रूह बनकर समा गया, मैं तुम्हारे भीतर,
तु हो जीवात्मस्वरूप मेरा, मैं हूँ आत्मस्वरूप तुम्हारा| 

दोस्तो समय समय पर युगानुसार निराकार परम गुरुवर परमब्रह्म मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान प्रदान कराने के लिए एवं मनुष्य रूपी जीवात्मा के आत्मकल्याण के लिए सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का संदेश देते आए है, साथ ही मनुष्यो को आत्मस्वरूप विदेही अकर्मी बनकर आत्मकल्याण करने का का मार्ग भी बताते आए है | किन्तु ज्ञात रहे निराकार परमब्रह्म  का धरती पर जन्म -मरण नहीं होता वो युगानुसार अवतरित होने के लिए किसी न किसी निष्काम कर्मी मनुष्य तन का सहारा लेते है, इस क्रिया को परकाय प्रवेश भी कहते है| वो दिव्य शक्ति किसी निष्काम कर्मयोगी मानव तन के हृदय में प्राकटय होकर उस मानव रूपी रथ के माध्यम से पाप और पापियों का नाशकर धरती पर पुनः धर्म की स्थापना और प्रभावना के कार्य करवाते है| किन्तु ज्ञात रहे अजन्में निष्कलंक निराकार परमब्रह्म जिस मानव तन का सहारा लेते है वो उसके हृदय में कायम नहीं रहते वो तभी प्रकट होते है जब उन्हें अपना कार्य करना होता है वो कुछ समय उस तन के सहारे अपना कार्य करते है उसके बाद वो मानव अपना निजी जीवन जी सकता है| अतः परमब्रह्म मनुष्य के हृदय में अवतरित होते है तन में नहीं, अतः सगुण अवतार व निर्गुण ईश्वर का कर्मभूमि पर अवतरण मानव के भीतर जीवात्मा व आत्मा के अन्दर होता है| भला मानव का नश्वर शरीर भगवान कैसे बन सकता है?

ज्ञात रहे जब जब धरती पर धर्म की हानी होती है पाप के कारण मनुष्यों का जीवन त्रासदियों से भर जाता है तब तब निराकार परम गुरुवर परमब्रह्म धर्म की पुनः स्थापना और प्रभावना के कार्य सम्पन्न कराते है| अतः अवतार अनेक हो सकते है मगर सभी अवतारो में ज्ञानस्वरूप अवतरण एक परमब्रह्म का ही होता है | परम गुरुवर परम ब्रह्म ने हमेशा मानव जगत को सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का संदेश दिया है| ज्ञात रहे हम मनुष्यों के नियम रोज रोज बदल सकते है मगर प्रकृति परमात्मा और परमब्रह्म के नहीं| मनुष्य अज्ञानतावश अपनी अपनी मर्जी से धर्म और ईश्वर के नाम पर रोज रोज नए नियम बनाकर नए नए धर्म पंत स्थापित कर देते है किन्तु सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है | अतः  ज्ञात रहे हम सभी मनुष्यो का सत्यस्वरूप आत्मस्वरूप ही है और हम मनुष्यों के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा और कोई मानव धर्म नहीं है| एक को जानों एक को मानों अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ| जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते| 

Related Posts

WhatsApp WhatsApp us