मोहन हूँ मैं मोह-माया से तुम्हें बचाने आया हूँ भक्त नहीं मैं तुम सबको भगवान बनाने आया हूँ।

एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति भावार्थ- अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक ब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किये बिना इस संसार से मानव के लिए मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| ईश्वर एक है उसके जैसा दूसरा न कोई था, न कोई है और नहीं कभी कोई होगा इस बात को सम्पूर्ण मानव जगत के लोग समान रूप से जानते मानते है किन्तु उस दिव्य महाशक्ति का सत्यस्वरूप क्या है? मानव का अपना सत्य स्वरूप क्या है? इस बात को कर्मभूमि पर ईश्वर का कोई बिरला साधक ही जान पाता है| ज्ञात रहे हमारी कर्मभूमि को बनकर अरबों वर्ष बीत गए और कर्मभूमि पर मानव का जन्म होकर भी लाखों वर्ष बीत गए किन्तु मानव सभ्यता का वर्तमान कलेंडर आज भी मात्र 2024 वर्ष की गणना कर रहा है, और मानव जगत की अज्ञानतावश एक बार फिर से धरती पर पाप का बोझ बढ़ चूका है और  कर्मभूमि पर महाविनाश की सम्भावनाएं दिखाई दे रही है| ज्ञात रहे इस महाविनाश को सिर्फ मानव जगत के सत्कर्म ही रोक सकते है, ईश्वर नहीं| ईश्वर कर्मभूमि पर मानव जगत को सिर्फ कर्म करने का ज्ञान दे सकता है, किसी भी कर्मयोगी से निर्धारित कर्म नहीं करवा सकता|  

कर्मभूमि पर वर्तमान में तीव्र गति से होने वाले विकास इस बात का प्रमाण है कि वर्तमान समय युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय चल रहा है, आज का युग विकास और विज्ञान का युग है, आज मानव चेतना की जो मिसाल कायम हो रही है उसे देखते हुए सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को 21वी सदी में प्रवेश करने के लिए युगानुसार अपनी धार्मिक सोच को बदलना होगा| धर्म और ईश्वर के नाम पर चली आ रही सारी रुढ़िवादी परम्पराओं का त्याग करना होगा|

कर्मभूमि पर कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के ह्रदय में देवत्व व दिव्यता जागृत कर मानव-मात्र को देवी-देवता तुल्य बनाने के लिए, सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को निराकार दिव्य महाशक्ति ब्रह्म का व मानव के स्वयं का सत्यस्वरूप बताकर मानव जगत को ईश्वर व अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त करवाने के लिए,कर्मभूमि पर मानव-मात्र को सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनाकर कर्मभूमि को अविनाशी स्वर्ग के लिए, कर्मभूमि के आध्यात्मिक-खंड भारत की पावन भूमि पर वीरो की भूमि राजस्थान प्रान्त में वाग्वरांचल व लोडी काशी के नाम से विख्यात धर्म नगरी बांसवाडा शहर में नवीन वर्ष की संधिवेला 31 दिसम्बर 2016 रात्रि 12 बजे सर्वधर्म संप्रदाय के सैकड़ो गणमान्य नागरिको, हजारों धर्म-प्रेमी लोगों व कल्कि भक्तों के बीच कर्मभूमि पर आज के विज्ञान व विकास के युग में पूर्ण प्रमाण के साथ कल्कि साधक कैलाश मोहन के जीवन दर्पण में दिव्य महाशक्ति ब्रह्म का कल्कि ज्ञान सागर स्वरूप भव्य अवतरण के साथ कर्मभूमि पर नवीन विश्व धर्म कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना हो चुकी है| जिसकी प्रभावना स्थानीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर की जा रही है| 

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिभर्वति भारत,
अभ्युत्थानाम धर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम,
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम,
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामी युगे यूगे|

जब से कर्मभूमि का निर्माण होकर सुन्दर सृष्टि का सृजन हुआ, तब से अब तक कर्मभूमि पर अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान के अभाव में मानव जगत के लोग ईश्वर-अवतार व स्वयं के सत्यस्वरूप को नहीं समझ पाए और नहीं मानव धर्म की सत्य परिभाषा को समझ पाए| कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मानव जगत को ईश्वर-अवतार व मानव का सत्यस्वरूप बताकर मानव-मात्र को महामानव बना देगा, कल्कि ज्ञान सागर मानव को भक्त नहीं भगवान बनाने आया है| मुझ कल्कि साधक का सम्पूर्ण मानव जगत के नाम सन्देश – 

दर से जिसकी आया हूँ  मैं , उसी के दर पर जाऊँगा,
ना कुछ साथ लाया हूँ , ना कुछ लेकर जाऊँगा |
धर्म अहिंसा विश्व धर्म हो, सब एक मानें परमात्मा,
एक ही नाम रहे निराकार का, वो नाम तुम्हें दे जाऊँगा|
दोस्तो मैं खाली हाथ आया हूँ , खाली हाथ चला जाऊँगा |

मैं कल्कि साधक कैलाश मोहन सम्पूर्ण मानव जगत को बता देना चाहता हूँ, कर्मभूमि पर मेरा जन्म 1960 में एक छोटे से गाँव में गरीब परिवार में हुआ, मैंने जैसे ही होश संभाला तो गरीबी मेरे सामने सीना ताने खड़ी थी, जिसके कारण मुझे छोटी सी उम्र में अपनी पढाई अधूरी छोड़कर जीवन संघर्ष के पथ पर चलना पड़ा| मुझे जीवन संघर्ष में इतनी त्रासदियां सहनी पड़ी याद आने पर आज भी मेरी आँख भर आती है, प्रभु कृपा से आज मुझे किसी बात की कमी नहीं है| जीवन की अर्द्धशताब्दी में सफलता हासील करने के बाद, जब मेरे जीवन में सुख शांति से रहने का समय आया तो मेरे साथ जान लेवा घटना घटित हो गई| जब मौत मेरे करीब थी तो मुझे जैन संत आचार्य रयणसागर जी के आशीर्वाद से नया जीवन मिला| नया जीवन मिलने के बाद मै बार-बार अपने भाग्य को लेकर अपने पूर्व कर्मो के बारे में सोचने लगा और साथ ही दुनिया बनाने वाले को भी कोसने लगा की दुनिया बनाने वाले काहे को दुनिया बनाई क्या तेरे मन में समाई इस प्रकार मुझ कैलाश मोहन के जीवन दर्पण में ईश्वर का कल्कि ज्ञान सागर के रूप में प्राकट्य होता है| मेरी जीवनी को विस्तार से जानने के लिए आप मुझ कैलाश मोहन द्वारा लिखित आत्म-कथा यही है जिन्दगी पढ़ सकते है, जिसका प्रसारण इसी वेबसाइट पर कल्कि ज्ञान सागर साहित्य के साथ किया जाएगा | 

मानव जीवन कर्म प्रधान है, ईश्वर मानव को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है, किसी से निर्धारित कर्म नहीं करवा सकता, जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है, मानव कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नहीं| मानव को आज ईश्वर व धर्म के नाम पर लड़ने से ज्यादा कर्म करने के ज्ञान की जरुरत है| मानव का जीवन मानव के हाथ में होता है, मानव स्वयं ही स्वयं का भाग्य विधाता है, मानव चाहे तो सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनकर सतयुगी दुनिया का सृजन कर अपनी कर्मभूमि को अविनाशी स्वर्ग बनाकर हजारो साल तक शाश्वत सुख पा सकता है| ठीक इसके विपरीत मानव जगत चाहे तो तामसिक प्रवृति का बनकर धरती पर पाप का बोझ बढाकर महाविनाश में मानव जाति का नामो निशान भी मिटा सकता है| ईश्वर किसी को अपनी तरफ से दुःख-सुख नहीं देता, मनुष्यरूपी जीवात्मा स्वयं अपने कर्मो के अनुसार पाते है| प्रभु ने मुझ कल्कि साधक को निमित्त बनाया है तो मै अपनी अंतःप्रेरणा से मानव जगत को आध्यात्मिक ज्ञान की बातें बता रहा हूँ| ज्ञात रहे मेरे द्वारा बताई गई बातें मानने के लिए मै किसी को बाध्य नहीं कर सकता| आत्मस्वरुपता में मेरे अंतरमन की बात…….

सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र हूँ मैं।
आ गया हूँ इस धरती पर, पाप को मिटा दुंगा।
कल्कि का साधक हूँ मैं काल को मिटा दूंगा,
आ गया हूँ इस धरती पर, कलयुग को मिटा दुंगा।
राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक का संदेशा लाया हूँ ,
साईं बनकर साई का संदेशा लेकर आया हूँ।
महावीर बनकर महावीर का संदेशा लेकर आया हूँ ,
मोहम्मद हूँ मै मोहन बनकर, फिर धरती पर आया हूँ।
कुरान की बातें अब मैं, पुराण में बताने आया हूँ ।
ईसा हूँ मैं अपना वादा पूरा करने आया हूँ।
ज्ञान की गंगा ज्ञान का सागर फिर से बहाने आया हूँ।
मोहन हूँ मैं मोह माया से, तुम्हे बचाने आया हूँ।
सुट बुट में आया कन्हैया, फिर से धर्म समझाने को
आ गया हूँ इस धरती पर, सब कुछ तुम्हें बताने को
आ गया हूँ इस धरती पर, पाप को मिटा दुंगा
सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र हूँ मैं।

इस लेख के अंत में सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को मैं यह भी बता देना चाहता हूँ की आज भारत की पावन भूमि पर लाखों धार्मिक स्थल है, करोडों साधू-संत धर्म की प्रभावना कर रहे है, धर्म ग्रंथो की भी कोई कमी नही है फिर भी धरती पर पाप का बोझ निरंतर बढता जा रहा है आखिर क्यों? क्योंकि कर्मभूमि पर अधिकांश साधू-संत माया और काया प्रेमी बन बैठे है| इतना ही नहीं आज कई साधू-संत और ईश्वरीय भक्त ऐसे भी है जो भविष्यवाणियों के अनुसार स्वयं को कल्कि अवतार सिद्ध करने मे लगे है, किन्तु मैं कल्कि साधक कभी यह झूठा दावा नहीं करूंगा कि मै कल्कि अवतार हूँ क्योंकि कल्कि ज्ञान सागर के अनुसार धरती पर ईश्वर का किसी निष्काम कर्मयोगी के ह्रदय में ज्ञान ,एवं आत्मशक्ति स्वरूप अवतरण होता है जन्नम मरण नहीं इस क्रिया को परकाया प्रवेश भी कहते है| ईश्नवर उस निष्काम कर्मयोगी भीतर अपने स्वरूप को रचता है| मानव का नश्वर शरीर कभी भगवान नहीं बन सकता|

मैं कल्कि साधक आप लोगों की तरह एक साधारण और संसारी इन्सान हूँ और ईश्वरीय कार्य के लिए निमित्त मात्र हूँ| अतः मैं ईश्वरीय संदेशानुसार सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को अपनी अंतःप्रेरणानुसार ईश्वर और अवतरवाद की धारणाओं से मुक्त कराने आया हूँ, मैं तुम सबको भक्त नहीं भगवान बनाने आया हूँ| मै जब तक इस कर्मभूमि पर आप लोगों के बीच रहूँगा तब तक आप लोगों को कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान मिलता रहेगा| अरे मरकर स्वर्ग किसने देखा आओ आप और हम मिलकर अपनी कर्मभूमि को अविनाशी स्वर्ग बनाते है| आत्मज्ञानी बनों अपना मानव जीवन सार्थक बनाओं|
जय अहिंसा…….ॐ विश्व शांति……..सत्यमेव जयते | 

Related Posts

WhatsApp WhatsApp us