अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक ब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किये बिना मानव के लिए मृत्युलोक से मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| ज्ञात रहे ईश्वर एक है इस बात को सम्पूर्ण मानव जगत के लोग समान रूप से जानते-मानते है किन्तु एक ही ईश्वर के दो स्वरूप दो चरित्र है, इस बात को हरि कृपा से कोई निष्काम कर्मयोगी साधक ही जान पाता है| ज्ञात रहे जो दिव्य महाशक्ति निर्गुण स्वरूप में अनादी, अजन्मा, निष्कलंक, निराकार, परम सत्य, अजर-अमर, अविनाशी है, जो किसी की संतान नहीं है और जिसकी कोई संतान नहीं है, वही स्वयं से प्रकट हुई महामाया रूपी सगुण मायावी स्वरूप में सत-असत, अविनाशी किन्तु परिवर्तनशील है, जिसे कल्कि ज्ञान सागर में सगुण परब्रह्म माना गया है| एक सगुण परब्रह्म ने ही सृष्टि के सृजन व विस्तार के लिए सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओं, देवी-देवताओं व मानव का मायावी रूप धारण कर स्वयं ही कर्ता-भरता-हरता बना हुआ है| ज्ञात रहे एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक निर्गुण ब्रह्म के अलावा दूसरा कोई भी जीव-जीवात्मा व दिव्य महाशक्ति नहीं है सब कुछ उसी एक दिव्य महाशक्ति से प्रकट हुआ है और एक दिन उसी में लीन हो सकता है|
कर्मभूमि को बनकर अरबों वर्ष बीत गये और कर्मभूमि पर वर्तमान मानव प्रजाति का जन्म होकर भी लाखों वर्ष बीत गये, आज का विकसित मानव जगत चाँद व मंगल पर जीवन की तलाश कर रहा है, किन्तु आज का विकसित मानव जगत निर्गुण ईश्वर व सगुण मानव के सत्य स्वरूप को आज तक नहीं जान पाया क्यों ? कर्मभूमि पर लाखों वर्ष में मानव अद्भुत रहस्यमय सृष्टी सृजन के रहस्यमय खेल को नहीं समझ पाया क्यों? कर्मभूमि पर बार-बार महाविनाश होकर मानव सभ्यता का नामों निशान मिट जाता है क्यों ? कर्मभूमि पर वर्तमान मानव प्रजाति का जन्म होकर लाखो वर्ष बीत गये फिर भी मानव जगत का वर्तमान कलेंडर आज भी मात्र 2024 वर्ष की गणना कर रहा है क्यों? वर्तमान में कर्मभूमि पर विश्व युद्ध की बढती संभावनाएं, कोरोना जैसी महामारी, भुकम्भ व तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं एक बार फिर से महाविनाश के संकेत दे रहे है क्यों ? ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव जगत को विकास में हजारो वर्ष लग जाते है और महाविनाश के लिए कुछ ही पल काफी है| अतः आज के विकसित मानव जगत को इन सभी विषय पर चिंतन मनन करना चाहिए |
ज्ञात रहे मानव जीवन कर्म प्रधान है, मानव को कर्मभूमि पर उसके कर्मो के अनुसार जीवन में दुःख-सुख मिलते है| मानव स्वयं ही स्वयं का भाग्य विधाता है| ईश्वर मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है, किसी भी कर्मयोगी से निर्धारित कर्म नहीं करवा सकता, जैसी करनी वेसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है, मानव कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पानें में नहीं| ज्ञात रहे सम्पूर्ण मानव जगत के सत्कर्म ही कर्मभूमि को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना सकते है |
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार अरबों वर्ष पहले जब कहीं कुछ भी नहीं था, तब भी एक अनादी, अजन्मा निष्कलंक, निराकार, निर्गुण दिव्य महाशक्ति सूक्ष्म रूप में सूक्ष्म ब्रह्माण्ड में विधमान थी, जिसे न तो किसी ने बनाया है और नहीं उसे कोई मिटा सकता है, वो न तो किसी की संतान है नहीं उसकी कोई संतान है| कल्कि ज्ञान सागर में उस निराकार दिव्य महाशक्ति को निर्गुण परमब्रह्म माना गया है | उस निराकार निर्गुण परमब्रह्म की इच्छा-शक्ति एको अहम् बहुस्याम से विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर अनेक प्रकार के अणु-परमाणु, गृह-नक्षत्र व द्रव्य के साथ उस दिव्य महाशक्ति का मायावी सगुण अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का प्राकट्य हुआ, जिसे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार प्रभु से प्रकट हुई महामाया भी कहते है, प्रभु से प्रकट हुई महामाया को कल्कि ज्ञान सागर में सगुण परब्रह्म माना गया है| ज्ञात रहे सगुण परब्रह्म को ही मानव जगत के लोग शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदम-इव के नाम से भी जाना जाता है, सृष्टि का सृजन व विस्तार सगुण परब्रह्म से हुआ है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है| ज्ञात रहे सम्पूर्ण सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं के रूप में एक सगुण परब्रह्म ही कर्ता, भरता, हरता बना हुआ है| कर्मभूमि पर मानव जगत के कर्मो के अनुसार सृष्टि में वृष्टि होती है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव जगत के लोगों में तामसिक प्रवृतियाँ व पाप कर्म बढ़ जाने के कारण कर्मभूमि पर अकाल, प्राकृतिक आपदाएं, कोरोना महामारी जैसी विपदाएं आती है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर जब पाप का बोझ अत्यधिक बढ़ जाता है तो महाविनाश होकर सृष्टि का पुनः नवीन सृजन होता है, किन्तु महाविनाश होने से पहले कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय आता है, संगमयुग में ईश्वर कर्मभूमि पर किसी निष्काम कर्मयोगी को निमित्त बनाकर धर्म की पुनः स्थापना व प्रभावना के कार्य करवाता है|
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर वर्तमान समय युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय चल रहा है, संगमयुग एक ऐसा समय है जो मानव जगत को कलयुग से निकाल कर सतयुग में प्रवेश दिलाता है| ज़्यादातर लोग 4 युगो के बारे मे ही जानते है संगमयुग के बारे में कम लोग ही जानते है यह एक ऐसा समय है जो 5000 हजार वर्ष में एक बार आता है, इसे इस्लाम में फैसले की घड़ी कहते है| माया कलेंडर में भी कुछ इसी तरह की बात बता रखी थी| जिसे माया सभ्यता के विद्वानों ने समझने में कर दी भूल और 21 दिसम्बर 2012 को महाविनाश की घोषणा कर दी| संगमयुग में मनुष्य रूपी जीवात्माओं द्वारा 5000 हजार वर्षो में किए गए कर्मो का हिसाब होता है जो मनुष्य सत्कर्मी होते है उन्हें सतयुगी दुनिया में प्रवेश मिलता है और तामसिक प्रवृति वाले मनुष्यों को प्राकृतिक आपदाओं एवं महाविनाश में दर्द भरी मौत मिलती है इसके बाद उन मनुष्य रूपी जीवात्मा के पिछले सारे पाप कर्म माफ हो जाते है और उन्हें कर्मभूमि पर फिर से नए कर्म करने के लिए नया जन्म मिलता है|
वर्तमान में धरती पर एक से बडकर एक निरंतर होने वाले आविष्कार और तेजी से बदलती दुनिया इस बात का प्रमाण है कि कर्मभूमि पर इस समय युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय चल रहा है | ज्ञात रहे संगमयुग में निर्गुण परमब्रह्म कलयुग को सतयुग मे परिणित करने के लिए कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने के ज्ञान दे रहे है और ज्ञान के साथ ही विज्ञान के माध्यम से मानव जगत को तीव्रगति से उच्च कोटि के विकास भी प्रदान करवा रहे है जिससे कर्मभूमि पर कर्मयोगियों को स्वर्ग जैसा सुख मिल सके, कर्मभूमि अविनाशी स्वर्ग बन जाये और कर्मभूमि पर मानव का जन्म-मरण मिटकर कर्मभूमि पर ही मानव को शाश्वत सुख मिल जाये, किसी को मरकर स्वर्ग और मोक्ष नहीं जाना पड़े| प्रभु परमब्रह्म विकास के माध्यम से मानव जगत को और भी बहुत कुछ देना चाहते है किन्तु मानव को ईश्वरीय तोहफा पाने के काबिल बनना होगा |
आज के विकास के युग में ईश्वर ने विज्ञान के माध्यम से मोबाइल की एक छोटी सी सीम और उसमे भी मात्र एक सेंटी जगह में दुनिया के 7 अरब लोगो को जोड़कर वसुधेव कुटुंबकुम का रूप देकर एक विश्व मानव परिवार बना दिया है| मानव हजारो किलोमीटर दूर बैठे अपने परिजनों से मोबाइल के माध्यम से कुछ ही पल में मिल सकता है और अपने मन की बातें करते हुए उसे देख भी सकता है| ईश्वर ने कर्मभूमि पर इन्सानो के बीच की दूरियों को मिटा दिया, क्या फिर भी उस निराकार रहम दिल परम हितेषी को नहीं मानोगे? ज्ञात रहे मानव जगत के सत्कर्मो से ही मानव जगत को कर्मभूमि पर स्वर्ग सुख जैसा आनन्द मिल सकता है| धर्म ही धरती को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना सकता है|
आज के विकास के युग में भी मानव जगत की आध्यात्मिक सोच 17वी और 18वी सदी की बनी हुई है जिसे कभी किसी ने देखा ही नहीं आज पूरी दुनिया उसी के नाम पर लड़ रही है| ज्ञात रहे धर्म आपस में प्रेम सिखाता है नफरत नहीं | आज के विकास के युग में युगानुसार कलयुग को सतयुग मे परिणित करने के लिए कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को धर्म के नाम पर रूढ़िवादी परम्पराओ और हिंसा का पूर्णतया त्याग करना होगा| सत्य के साथ चलने के लिए असत्य को त्यागना होगा अतः युगानुसार मानव जगत को अपनी धार्मिक सोच को बदलना होगा | युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, मानव जगत को धर्म और ईश्वर के नाम पर बने जाति-संप्रदाय अनेक प्रकार के धर्मग्रंथ और धार्मिक स्थलो से मुक्त कराने के लिए, भारत की पावन भूमि पर सर्वधर्म संप्रदाय के सैकड़ो गणमान्य नागरिक व हजारों धर्मप्रेमी कल्कि भक्तो के बीच 31 दिसम्बर 2016 रात्री 12 बजे निष्कलंक, निराकार परमब्रह्म का कल्कि ज्ञान सागर के रूप में ज्ञानस्वरूप भव्य अवतरण हो चुका है |
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार जो निर्गुण परमब्रह्म अनादी, अजन्मा, निष्कलंक, निराकार, अजर-अमर, अविनाशी है, उस निर्गुण परमब्रह्म का मायावी सृष्टि की नश्वर कर्मभूमि पर कभी जन्म-मरण नहीं होता, किसी निष्काम कर्मयोगी के हृदय में ज्ञानस्वरूप भव्य अवतरण होता है| वर्तमान युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कर्मभूमि पर निर्गुण परमब्रह्म का पूर्ण प्रमाण के साथ कल्कि ज्ञान सागर के रूप में हो चूका है| अधिक जानकारी के लिए आप गूगल प्ले स्टोर पर जाकर कल्कि ज्ञान सागर एप डाउनलोड करे| ज्ञात रहे युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में सम्पूर्ण मानव जगत के लोग कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से सत्कर्मी, निष्काम कर्मयोगी बनकर सतयुगी दुनिया का सृजन कर सकते है और कर्मभूमि को अविनाशी स्वर्ग बनाकर कर्मभूमि पर युग परिवर्तन को रोक सकते है|
मैं कल्कि साधक कैलाश मोहन सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को ईश्वरीय संदेशानुसार अपनी अंतःप्रेरणा से दिव्य महाशक्ति का सत्यस्वरूप व मानव धर्म की सत्य परिभाषा बनाने जा रहा हूँ| आप ईश्वरीय संदेश जन जन तक पहुंचाकर ईश्वरी कार्य में सहभागी बनकर पुण्याजर्न करे व अपना मानव जीवन सार्थक बनाए|
कल्कि ज्ञान सागर का संदेश
नजरे देकर नजारे दिखाने वाला, खुद क्यों किसी को नजर नहीं आता है ?
कौन है वो रहस्यमय जादूगर, जो कर्मयोगी को मोहमाया में बांध देता है |
मोहन हूं मैं मोहमाया से, तुम्हें बचाने आया हूँ,
सूट बूट में आया कन्हैया, फिर से धर्म समझाने को |
आ गया हूं इस धरती पर, पाप को मिटा दूंगा,
सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र हूं मैं |
आध्यात्मिक ज्ञान और विज्ञान के अनुसार जब अरबो वर्ष पहले कुछ भी नहीं था तब भी एक अनादी अजर, अमर, अविनाशी, जन्म-मरण, गुण-दोष रहित, ज्ञान और शक्ति स्वरूप निराकार, दिव्य परम महाशक्ति विराट आत्मस्वरुपता में विधमान थी, जो अनादि है वो अजर-अमर, अविनाशी है और सदा रहेगी| इसी निराकार परम महाशक्ति को ही वेदो में ब्रह्म कहा गया है और विज्ञान में उर्जा माना गया है, उसी दिव्य महाशक्ति को आज के विज्ञान व विकास के युग में हिंग्सबोसॉन ईश्वरीय कण के रूप में स्वीकार किया गया है| एक निर्गुण परमब्रह्म को ही मानव जगत के लोग अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड, वाहेगुरु, सतगुरु, सद्गुरु, याहवेह जैसे अनेक नामो से जानते-मानते-पुकारते है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार अरबों वर्ष पहले जब कहीं भी कुछ भी नहीं था तब विशाल ब्रह्मांड शुन्य था, इस शून्य अवस्था में एक बार परमब्रह्म में इच्छा जागृत हुई एको अहम् बहुस्याम और स्वयं को अनेक रूप में देख सकू| परमब्रह्म की इसी इच्छा शक्ति के कारण विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति हो जाती है और इसी के साथ अणु, परमाणु, द्रव्य, तत्त्व, सूरज, चाँद, सितारो के साथ-साथ परम सत्य निराकार परमब्रह्म का सत-असत रूपी अर्द्धनारीश्वर मायावी साकार स्वरूप का प्राकट्य हो जाता है|
परमब्रह्म के अर्द्धनारीश्वर रूपी सगुण साकार स्वरूप को सत-असत इसलिए कहा गया है कि यह साकार स्वरूप परमब्रह्म की आत्मशक्ति से जीवात्मा का प्राकट्य हुआ है और जिसका प्राकट्य हुआ है वो मिट भी सकता है, इसलिए आत्मा अजर-अमर, अविनाशी है और जीवात्मा अविनाशी होकर परिवर्तनशील है, इसलिए जीवात्मा को असत व नश्वर कहा गया है| असत जीवात्मा के भीतर आत्मस्वरुपता में परम सत्य परमब्रह्म स्वयं ज्ञान और शक्ति स्वरुप विधमान रहते है| इस प्रकार निर्गुण निराकार सत है और सगुण साकार असत है| इसी सत-असत रूपी सगुण साकार अर्द्धनारीश्वर स्वरूप को वेदो में परब्रह्म कहा गया है|
इस लेख में हम सम्पूर्ण मानव जगत को एक महत्वपूर्ण बात बता देना चाहते है, जिस अनादी, अजन्में, निष्कलंक, निराकार परमब्रह्म को मानव जगत के लोग अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड, याहवेह, वाहेगुरु, सद्गुरु, सतगुरु, कबीर के रूप में पुरुष प्रधान मानते है उसका सत्यस्वरूप ना पुरुष है नहीं स्त्री वो निराकार दिव्य महाशक्ति अर्द्धनारीश्वर स्वरुप है| अतः ज्ञात रहे स्त्री और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलु है स्त्री और पुरुष में भेदभाव करना प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बहुत बड़ा महापाप है| क्योंकि आत्मस्वरूपता में दोनों एक समान है इसीलिए आध्यात्मिक ज्ञानानुसार पत्नी को अर्धांगिनी भी कहा जाता है|
कुछ समय पहले इसी बात पर ब्रिटेन में एक बहुत बड़ी बहस छिड़ी हुई है की गॉड को स्त्री कहें या पुरुष? ब्रिटेन की एक महिला पादरी पर्सी ने इस बात को बड़े जोरो शोरो से उठाया और दूसरी महिला पादरी स्टोवेल ने पर्सी की बात का समर्थन करते हुए कहा की प्रार्थना में गॉड के लिए ही की जगह सी लिखा जाये या फिर ही और सी दोनों लिखा जाये, दोस्तों उपरोक्त बहस को विस्तार से जानने के लिए आप इसी पोस्ट के साथ सलंग्न समाचार पत्र देख सकते है|
ज्ञात रहे दृष्टि ही सृष्टि है मनुष्यों में आपसी भेदभाव दृष्टिगत हो सकता है आत्मस्वरूपता में नहीं, आत्मस्वरूपता में तो सभी एक सामान है| आप इस बात की सच्चाई को जानने के लिए कुछ पल के लिए अपनी आँखे बंद करलो फिर आप अपने आप के बारे में सोचो आपका अपना सत्यस्वरूप क्या है ? इस कर्मभूमि पर आपका अपना क्या है व आपका अपना कौन है ? सारा नजारा नजरों का है दृष्टि का है दृष्टि ही मनुष्यों को मोहमाया के बंधन में बाँध देती है और दृष्टि ही मनुष्यो के मन में तेरे मेरे के भाव पैदा करती है| ज्ञात रहे इस कर्मभूमि पर आपके नश्वर भौतिक शरीर का एक पल का भी भरोसा नहीं है तो जो आपको अपनी मायावी नजरो से दिखाई दे रहा है वो सब कुछ आपका कैसे हो सकता है ? जबकि सृष्टि में तन परिवर्तन के साथ ही आपके लिए सब कुछ बदल जाता है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है| मानव के आत्मकल्याण के लिए कर्मभूमि का सृजन हुआ है| मनुष्यरूपी जीवात्मा का देवलोक से कर्मभूमि पर विदेही भाव में सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विराट आत्मस्वरुपता में मैं से मुक्त होकर निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण करने के लिए हुआ है|
कर्मभूमि पर मानव के मायावी भौतिक शरीर को भौतिक दृष्टि देकर नजारे दिखाने वाला और कोई नहीं हमारे अपने परम हितेषी परम माता-पिता परमात्मा परब्रह्म ही है, हम सभी मनुष्य एक ही परब्रह्म की संतान है जिसे मानव जगत के लोग शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदम-ईव के नाम से जानते मानते पुकारते है| जिन्होंने हम मनुष्यों के आत्मकल्याण के लिए ही सुन्दर सृष्टि का सृजन किया है| मानव मात्र कर्मभूमि पर सत्कर्म के मार्ग पर चलते हुए सुंदर सृष्टि का आनंद लेते हुए विदेही भाव में अविकारी, अकर्मी बनकर अपनी आत्मस्वरूपता को प्राप्त कर, अपना आत्मकल्याण कर सकता है|
कर्मभूमि पर मानव अज्ञानतावश अपने नश्वर भौतिक शरीर को ही अपना सत्यस्वरूप मानकर, मोहमाया से प्रभावित होकर अपने नश्वर शरीर के लिए कर्म करने लगता है| कर्मभूमि पर मानव अपना अमूल्य मानव जीवन नष्ट कर रहा है| मैं मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान प्रदान कर मोहमाया से मुक्त कराने आया हूं| ज्ञात रहे सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक नहीं दो परम महाशक्तियां है एक निर्गुण निराकार और दूसरी सगुण साकार होकर भी निराकार है| निराकार परम सत्य है और साकार सत-असत है हमारे जीवन में दोनों महाशक्तियां महत्वपूर्ण है| अगर साकार परब्रह्म हमें भौतिक शरीर प्रदान नहीं करते तो निराकार परमब्रह्म हमारी सत-असत रूपी आत्माओं को मुक्ति कैसे प्रदान करते ?
एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति ज्ञात रहे सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किये बिना मानव के लिए मृत्यु-लोक से मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| अनादी, अजन्मा, निष्कलंक, निराकार निर्गुण परमब्रह्म ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी है| सगुण परब्रह्म व सृष्टि के सभी देवी-देवता, मानव सहित सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मा निर्गुण परमब्रह्म से प्रकट हुई महामाया के अविनाशी किन्तु परिवर्तनशील मायावी रूप है, जिनमें सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण परमब्रह्म का सगुण स्वरूप है, इसलिए निर्गुण परमब्रह्म सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव के भीतर ज्ञान व आत्मशक्ति स्वरूप आत्मस्वरूपता में हृदयस्त विधमान रहते है| कर्मभूमि पर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरुपता में निष्काम कर्मयोगी मतलब मैं से मुक्त होकर अकर्मी बनने वाले कर्मयोगी को निर्गुण परमब्रह्म कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति प्रदान कराते है, जिसे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार मोक्ष कहते है|
इसी प्रकार परमब्रह्म से प्रकट हुए मायावी सत-असत रूपी सगुण परब्रह्म जो सुन्दर सृष्टि के रचियता है, वो सिर्फ देवलोक और पृथ्वीलोक के स्वामी है| जो सृष्टि में अनेक देवी-देवताओं के रूप में सभी जीव-जीवात्माओं के जन्मदाता-पालनहार, संहारक व नवग्रहों के रूप में कर्मभूमि पर कर्मयोगियों को कर्मफल देने वाले है|
देवलोक से कर्मभूमि पर अवतरित होने वाले सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्यरूपी जीवात्मा को कर्मभूमि पर सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप बनने के लिए प्रकृति के पंचतत्वों से बना भौतिक शरीर प्रदान कराते है| ज्ञात रहे हम मनुष्यों के परम माता-पिता परमात्मा परब्रह्म ने हम मनुष्यों को आत्मकल्याण के लिए सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनाया है और हम मनुष्यों को सत्कर्म और निष्काम कर्म के बदले पृथ्वीलोक और देवलोक में स्वर्ग सुख प्रदान कराते है और पाप कर्म करने वाले तामसिक प्रवृति के लोगों को उनके कर्मो के अनुसार कठोर से कठोर सजा भी देते है|
मानव को निष्कलंक, निराकार निर्गुण परमब्रह्म की साधना करने से पहले अपने दिव्य जन्मदाता-पालनहार परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म को नमन करना चाहिए| वरना मानव द्वारा परमब्रह्म स्वरूप बनने के लिए की गई साधना निष्फल हो जाती है| ज्ञात रहे यहाँ हम मानव जगत को एक बात और बता देना चाहते है, कर्मभूमि पर कर्मयोगी के रूप में अवतरित होने वाले, कर्मभूमि पर प्रकृति के पंचतत्वों से बना मानव तन धारण करने वाले सभी मनुष्यरूपी जीवात्मा देवी-देवताओ से भी श्रेष्ठ माने गये है| यह अलग बात है कि मनुष्यरूपी जीवात्मा कर्मभूमि पर अवतरित होने के बाद अपनी श्रेष्ठता भूल जाते है| मानव देवी-देवताओ से भी श्रेष्ठ इसलिए है कि मनुष्य रूपी जीवात्मा कर्मभूमि से अकर्मी बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकते है और आत्मस्वरूपता में सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी बनकर ब्रह्मांड में निवास कर सकते है| इस प्रक्रिया को कहते है जीवात्मा से आत्मा बन जाना मतलब नदी का सागर में समाहित हो जाना, इसीलिए देवी-देवता भी कर्मभूमि पर जन्म लेने के लिए तरसते है|
दोस्तों हमारा और हमारी संस्था अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान का मकसद किसी भी जाति, धर्म, पंत, संत, संप्रदाय, का अपमान करना या किसी धर्म संप्रदाय के लोगों के दिल को ठेस पहुँचाना नहीं है| हम सभी धर्म संप्रदाय व सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों की धार्मिक आस्था का, सभी धर्म गुरुओं का ह्रदय से सम्मान करते है, हमारा मकसद है वसुधैवकुटुंकुम सम्पूर्ण मानव जगत के लोग कल्कि ज्ञान सागर से ईश्वरीय ज्ञान ग्रहण कर अपना और अपनों का जीवन मंगलमय बनाते हुए अपना आत्मकल्याण करे अपना अमूल्य मानव जीवन सार्थक बनायें | जय अहिंसा , ॐ विश्व शांति ,सत्यमेव जयते |