मानव हमारी जाति है मानवता है धर्म हमारा, हम सब एक है, सबका स्वामी एक, सबकी सेवा सबसे प्यार, जिओ और जीने दो की भावना रखना ही मानव के लिए सुखी जीवन का आधार स्तम्भ है|
सृष्टि के किसी भी जीव-जीवात्मा के प्रति अपने ह्रदय में दुर्भावना रखना धर्म के नाम पर जाति सम्प्रदाय बनाकर आपस में भेदभाव करना, मानव होकर मानव से नफरत करना, आपस में लड़ना व खूनखराबा करना सबसे बड़ा पाप है|
मानव के कर्तव्य को आध्यात्मिक ज्ञानानुसार मानव-धर्म कहा गया है| सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों का कर्तव्य है दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार करे जैसा स्वयं के लिए दूसरों से चाहते है| कर्मभूमि पर सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव-धर्म नहीं है, मानव-मात्र को सृष्टि के सभी जीवो के प्रति दया, प्रेम की भावना रखते हुए यथाशक्ति सभी जीव-जीवात्माओ की सेवा भी करना चाहिए| मानव-मात्र का कर्तव्य है वो कर्मभूमि पर असहाय कर्मयोगियों की, सृष्टि के सभी जीवो की यथाशक्ति सेवा करे| सृष्टि के किसी भी जीव की बेवजह हिंसा न करे| जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है, अतः कर्मभूमि पर कर्मयोगी ऐसा कोई कर्म न करे जिसके कारण उसका जीवन त्रासदीयों से भर जाये| आत्मज्ञानी, सत्कर्मी, निष्काम कर्मयोगी बनकर, कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|