मानव स्वयं ही स्वयं के कर्मो द्वारा स्वयं का रक्षक व भक्षक बनता है सत्कर्मी मनुष्य को सुखी जीवन और तामसिक कर्म से त्रासदियां मिलती है….

||कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश||

                      मानव स्वयं ही स्वयं के कर्मो द्वारा स्वयं का रक्षक और स्वयं का भक्षक बनता है                        सत्कर्मी मनुष्य को सुखी जीवन मिलता है और तामसिक कर्म से त्रासदियां मिलती है|

जाति, पंत, संप्रदायवाद का, तुम कब तक साथ निभाओगे ?
तुम धर्म के नाम पर अधर्मी बने तो, मिट्टी में  मिल जाओगे |
कलयुग की करनी को छोड़ोगे, तो तुम सतयुग में जा पाओगे,
अरे मरकर स्वर्ग किसने देखा ? कर्मो से बचकर कहाँ जाओगे ?

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार कर्मभूमि पर कर्मयोगी का जीवन कर्म प्रधान है, ईश्वर कर्मभूमि पर कर्मयोगी को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है किसी भी कर्मयोगी से निर्धारित कर्म नही करवा सकता| कर्मभूमि पर कर्मयोगी स्वयं ही स्वयं का भाग्य विधाता है, वो स्वयं ही स्वयं के कर्मो द्वारा स्वयं का भाग्य लिखता है| कर्मभूमि पर कर्मयोगी कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नही, जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिधांत है| कर्मयोगी स्वयं ही कर्ता-भरता-हरता व स्वयं का तारणहार है, उसके लिए स्वयं के अलावा दूसरा कोई तारणहार नहीं है| कर्मभूमि पर ईश्वर किसी को जन्म-मरण से मुक्ति प्रदान नही करा सकता, मानव के सत्कर्म निष्काम कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है| कर्मयोगी को कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति पाने के लिए सत्कर्मी विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी मतलब अकर्मी बनना होता है, तभी उसे कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति मिल सकती है|

कर्मभूमि पर कर्मयोगी निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है कर्मभूमि के कर्मयोगी को देवलोक के देवी-देवताओ से भी श्रेष्ठ माना गया है| ज्ञात रहे अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सृष्टि के रहस्यमय खेल में सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव सगुण परमात्मा परब्रह्म के मायावी स्वरूप है उनका सृष्टि में अलग से कोई अस्तित्व नही है क्योकि सभी देवी-देवताओ व मानव में ईश्वर स्वयं निर्गुण आत्मस्वरूप व सगुण जीवात्मस्वरूप में विद्यमान रहता है| मानव स्वयं ही अपने भीतर आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप व जीवात्मस्वरुपता में सगुण परब्रह्म स्वरूप है| मानव जगत द्वारा दिए गये अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड जैसे नामों से प्रथक और कोई भी परम महाशक्ति नहीं है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड की निष्कलंक निराकार परम दिव्य महाशक्ति है वो सृष्टि के सभी देवी देवता व मानव के भीतर निर्गुण आत्मस्वरूपता व सगुण जीवात्मस्वरुपता में  विद्यमान है| कर्मभूमि पर हर कर्मयोगी सगुण जीवात्मस्वरूप में सगुण परमात्मा परब्रह्म का अवतार है, कर्मभूमि पर जो कर्मयोगी अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में विराट आत्मास्वरूप निष्काम कर्मयोगी बन जाता है उसे जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है|

कर्मभूमि पर सृष्टि की महामाया के मोहमाया का जो अद्भुत खेल चल रहा है उसमे मानव को जो भी कुछ दिखाई दे रहा है वो सब कुछ उसके लिए नश्वर है, क्योंकि नश्वर मानव तन की एक पल की गारंटी नही है कभी भी तन परिवर्तन हो सकता है| दृष्टि ही सृष्टि है मानव को भौतिक दृष्टि से जो भी कुछ दिखाई दे रहा है उसे देखकर तेरे मेरे के भाव जागृत हो जाते है और जैसे ही आंखे बंद हो गई तो फिर क्या तेरा है ? क्या मेरा है ? ज्ञात रहे ईश्वर से ईश्वर तक जिंदगी एक सफर है जिंदगी के इस सफर में ईश्वर ही हम सफर है| जिसने अपने सत्यस्वरूप अपने विराट आत्मस्वरूप को जाना उसने सब कुछ जान लिया|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मनुष्य रूपी जीवात्मा के लिए प्रकृति के पंचतत्वों से बना मनुष्य रूपी भौतिक शरीर एक सवारी यानी रथ के समान है, मनुष्य रूपी जीवात्मा उस भौतिक शरीर का रथी बनकर सवार होता है जिसके माध्यम से वो कर्मभूमि पर भ्रमण करता है इस रथ की लगाम मायावी मनुष्य रूपी जीवात्मा के हाथ में होती है| मनुष्य रूपी जीवात्मा का नश्वर भौतिक शरीर अपनी सारी क्रियाएं अपने सारे कर्म अपने भीतर के जीवात्मा के आदेशानुसार ही करता है| अतः अच्छे बुरे कर्म मनुष्य का भौतिक शरीर नहीं भीतर का जीवात्मा करता है गंगा में शरीर को धोने से जीवात्मा पवित्र नहीं हो सकता तो गंगा नहाने से क्या फायदा ? याद रहे सिर्फ योग द्वारा ही जीवात्मा का मिलन हृदयस्त प्रभु से हो सकता है और हृदयस्त प्रभु से जीवात्मा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर कर्म करने का ज्ञान प्राप्त कर पवित्र होकर अपना आत्मकल्याण कर सकता है, धर्म के नाम पर अपने प्रकार के देवी देवताओ की पूजा करने से रूढ़िवादी परम्पराओ से और कर्मकांड से कदापि नहीं | अतः कर्मभूमि पर कर्मयोगी अपने रथ की लगाम निर्गुण आत्मा के स्वामी निर्गुण परमब्रह्म के हाथो में देकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकता है| कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बना सकता है|

मानव का जीवन मानव के हाथ में ही होता है, मानव चाहे तो सत्कर्मी बनकर सतयुगी दुनिया का सृजन कर अपनी धरती को स्वर्ग बनाकर हजारो साल तक सुखी जीवन जी सकता है और मानव चाहे तो धरती पर पाप का बोझ बढ़कर महाविनाश भी ला सकता है और महाविनाश में मानव का नामो निशान भी मिट सकता है| भगवान किसी को अपनी तरफ से कुछ नहीं देता मनुष्य रूपी जीवात्मा स्वयं अपने-अपने कर्मो के अनुसार पाते है| जैसे हम गाड़ी चलाते है तो गाड़ी कभी उसकी मर्जी से नहीं चलती कहाँ जाना है किधर जाना है कहाँ रुकना है ये सब काम गाड़ी पर बैठे चालक के हाथों में रहता है चालक की इच्छानुसार ही गाड़ी को चलना पड़ता है| इसी प्रकार मनुष्य के भौतिक शरीर को भी मनुष्य रूपी जीवात्मा की इच्छानुसार ही चलना पड़ता है मनुष्य रूपी जीवात्मा जैसे-जैसे कर्म करेगा वैसा ही फल पाएगा मनुष्य रूपी जीवात्म का भला बुरा करने वाला और कोई नहीं है मनुष्य रूपी जीवात्मा गलती करेगा तो सजा भी वही पाएगा जैसे कोई इंसान चलती गाड़ी के सामने जाता है तो उसे कोई भगवान बचाने नहीं आता स्वयं को सचेत होकर उसे बचना पड़ेगा अगर सचेत नहीं हुआ तो उसे अपने क्षति ग्रस्त भौतिक शरीर को त्यागना पड़ेगा इस शरीर परिवर्तन की क्रिया को हम मौत कहते है| भगवान करता है इस प्रकार की गलत धारणाए मानव के दिमाग की एक उपज है सच तो यह है की मनुष्य स्वयं ही भगवान का स्वरूप है |

ज्ञात रहे जब कोई मनुष्य रूपी जीवात्मा अपने भौतिक शरीर को त्यागकर शरीर से अलग हो जाता है फिर उस बेजान शरीर को खूब मारो काटो पीटो क्या उसे दर्द होगा ? मतलब दर्द शरीर को नहीं जीवात्मा को होता है| लोग कहते है भगवान ने ये कर दिया भगवान ने वो कर दिया भगवान ने उसे बहुत दे दिया भगवान ने उसका सब कुछ छिन लिया ऐसी बातें करने वाले मूढ़ बुद्धि के लोग है| मानव स्वयं ही भगवान है मानव स्वयं ही कर्ता, भरता, हरता है| मानव अपने आपको अपने कर्मो द्वारा सब कुछ देता है अगर भगवान अलग से होते और वो मनुष्यों के लिए सब कुछ कर सकते तो फिर मनुष्यों को कर्म करने की जरूरत ही क्या थी फिर तो मनुष्यों को सब कुछ आसानी से मिल जाता | दोस्तो जिसने अपनी हृदयस्त आत्मशक्ति को जाना उसने सब कुछ जान लिया| मानव सम्पूर्ण ब्रह्मांड में भ्रमण कर सकता है, चाँद और मंगल पर पहुँच सकता है, ब्रह्मांड में आपकी दुनिया बसाने की कल्पना कर सकता है, तो वो अपने लिए क्या कुछ नहीं कर सकता? मनुष्य जिस परम महाशक्ति को बाहर ढूंढ रहा है वो परम दिव्य महाशक्ति मानव के भीतर ही विद्यमान है और वो दिव्य शक्ति मानव स्वयं ही है और कोई नहीं|

ज्ञात रहे मनुष्य की रक्षा अल्लाह ईश्वर नहीं मनुष्य के अपने सत्कर्म ही कर सकते है इसी प्रकार धरती को महाविनाश से अल्लाह ईश्वर नहीं मनुष्यों के सत्कर्म ही बचा सकते है| कर्मभूमि पर जो भी कर्मयोगी  ईश्वरीय संदेशानुसार सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का पालन करते हुये अपना जीवनयापन करता है वो कर्मयोगी कर्मभूमि पर सदा निरोगी सुखी जीवन व लम्बी उम्र पाता है| ठीक इसके विपरीत कोई भी कर्मयोगी तामसिक प्रवृति का बनकर औरों को कष्ट पहुंचाएगा तो उस कर्मयोगी को उसकी करनी के अनुसार वो सौ गुना ज्यादा त्रासदियां पाता है| अतः कर्मभूमि पर कर्मयोगी सत्कर्म ओर सेवा रूपी मानव धर्म का पालन कर स्वयं ही स्वयं के सुखी जीवन का आधार स्तम्भ व स्वयं का रक्षक बन जाता है| उस कर्मयोगी को कर्मभूमि पर कभी कोई कष्ट सहन नही करना पड़ता | ठीक इसके विपरीत तामसिक प्रवृति वाला मनुष्य स्वयं ही स्वयं का भक्षक बन जाता है क्योंकि वो दूसरों को त्रासदी देकर स्वयं ही स्वयं के जीवन के लिए त्रासदियां ही त्रासदियां पैदा कर लेता है| अतः कर्मभूमि पर सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का पालन करो और सदा सुखी रहो| जय अहिंसा ॐ विश्व शांति सत्यमेव जयते |

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