|| कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश ||
हम और हमारी संस्था अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान मानव जगत के सभी धर्म, पंत, संत, संप्रदाय, का हृदय से सम्मान करते है, इसी के साथ हम सम्पूर्ण मानव जगत की ईश्वरीय आस्था धार्मिक मान्यताओं और आध्यात्मिक भावनाओं का भी सम्मान करते है| हम सम्पूर्ण मानव जगत को अपनी अंतः प्रेरणानुसार ही सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का सत्य मार्ग बताने जा रहे है| हमारा मकसद किसी भी धर्म, पंत, संत, संप्रदाय की निंदा करना या किसी इंसान की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाना नहीं है, बल्कि सदियो पहले धर्म और ईश्वर के नाम पर धर्म के ठेकेदारो द्वारा थोपी गई मन मानी मान्यताओं की बेड़ियों से हम सम्पूर्ण मानव जगत को मुक्त कराना चाहते है| धरती पर धर्म के प्रति ग्लानि को मिटाकर हम सतयुगी दुनिया का सृजन करना है हम अपनी धरती को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बनाना चाहते है|
कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, अपनी धरती माता को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बनाने के लिए कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से हम ईश्वरी संदेशो द्वारा सम्पूर्ण मानव जगत के लोगो को आत्मस्वरूप बनाना चाहते है| ईश्वरीय संदेशानुसार ही हमने अपनी अंतःप्रेरणा से धरती पर 31 दिसंबर 2016 रात्रि 12 बजे जाति, पंत, संत, संप्रदाय, धार्मिक स्थल और धर्म ग्रंथ रहित सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना की है| हम सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म को विश्व धर्म बनाकर धरती पर बार-बार धर्म के प्रति होने वाली ग्लानि को हमेशा हमेशा के लिए मिटा देना चाहते है| हम धरती पर बार बार होने वाले युग परिवर्तन को भी रोक देना चाहते है, हम धरती पर सतयुगी दुनिया का सर्जन कर अपनी धरती माता को महाविनाश से बचाकर हमेशा हमेशा के लिए अविनाशी स्वर्ग बनाना चाहते है| किन्तु ज्ञात रहे ईश्वर मानव को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है, किसी भी मनुष्य से निर्धारित कर्म नहीं करा सकता| अतः सम्पूर्ण मानव जगत के लोगो से हमारा करबद्ध निवेदन है आप सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म को अपनाकर सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बने और युग परिवर्तन के लिए ईश्वरीय कार्य में सहभागी बनकर पुण्याजर्न कर, अपना मानव जीवन सफल बनाए| मुझ कल्कि साधक कैलाश मोहन के ह्रदय के भाव…..
दर से उसकी आया हूँ मैं, उसी के दर पर जाऊँगा,
ना कुछ साथ लाया हूँ, ना कुछ लेकर जाऊँगा |
धर्म अहिंसा विश्व धर्म हो, सब एक माने परमात्मा,
एक ही नाम रहे निराकार का, वो नाम तुम्हें दे जाऊँगा |
दोस्तो मैं खाली हाथ आया हूँ, खाली हाथ चला जाऊँगा ||
संम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक निर्गुण परमब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किए बिना मनुष्यों के लिए इस संसार से मुक्त्ति का और कोई उपाय नहीं है| ज्ञात रहे एक अजन्मे निराकार अजर-अमर अविनाशी ज्ञान और शक्ति स्वरूप परम पवित्र विराट आत्मस्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्मांड की परम दिव्य महाशक्ति निर्गुण परमब्रह्म की इच्छाशक्ति से ही विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर उन्ही का अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का सत-असत साकार सगुण परब्रह्म के रूप में प्राकट्य होता है| जिसे प्रभु से प्रकट हुई महामाया भी कहते है| ज्ञात रहे निष्कलंक निराकार निर्गुण आत्मा से ही साकार सगुण जीवात्मा का प्राकट्य हुआ है, जिसे लोग आध्यात्मिक ज्ञानानुसार शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदम-ईव कहते है| इसी सगुणपरब्रह्म के निमित्त से सुंदर सृष्टि का सृजन होकर, सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओं के साथ अनेक प्रकार के देवी-देवताओं और मानव की उत्पत्ति हुई है| ज्ञात रहे सम्पूर्ण सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मा एक ही सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है, सृष्टि में सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण मायावी स्वरूप है| ज्ञात रहे सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव का सृष्टि में अलग से कोई अस्तित्त्व नही है|
मानव को सगुण परमात्मा परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है, क्योकि मानव कर्मभूमि पर अपनी मायावी सगुण स्वरूप को त्यागकर निर्गुण विराट आत्मस्वरूप बन सकता है, इसलिए सृष्टि में देवी-देवताओं के लिए देवलोक और मानव के आत्मकल्याण के लिए कर्मभूमि का सृजन हुआ है| देवलोक और कर्मभूमि एक ही सिक्के के दो पहलू है| निर्गुण आत्मस्वरूपता ही सभी देवी-देवताओ व मानव का सत्य स्वरूप है| सत-असत की दुनिया में असत का कोई अस्तित्व नहीं है और सत्य का किसी भी काल में अभाव नहीं है| ज्ञात रहे सत्य पर धूल जम सकती है किन्तु सत्य कभी मिट नहीं सकता| सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है, जिसे मानव जगत के लोग अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड, वाहेगुरु, सदगुरु, सतगुरु, याहवेह जैसे अनेक नामो से जानते मानते पुकारते है वो अनेक नामो वाला होकर भी एक ही है और अजन्मा, अनामी है| अतः कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से परम गुरुवर परमब्रह्म का सम्पूर्ण मानव जगत के नाम संदेश है….
मैं ही अल्लाह मैं ही ईश्वर, मैं ही राम रहीम हूँ,
मैं ही ईसा मैं ही मोहम्मद, मैं ही कृष्ण कबीर हूँ |
मैं ही बुद्ध हूँ मैं ही महावीर, मैं ही सदगुरु गोविंद हूँ,
मैं ही हूँ हर दिल की धड़कन, मैं ही सभी में आत्मस्वरूप हूँ |
सम्पूर्ण ब्रह्मांड की एक ही परम दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म को सम्पूर्ण मानव जगत के लोग अनेक नामो से पूकारते है, वो परम महाशक्ति कोई और नहीं मानव स्वयं ही है, क्योंकि वो परम दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगियों के हृदय में आत्मस्वरूप विधमान है| मानव कर्मभूमि पर अपने सत-असत सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप बन सकता है| मानव को कर्मभूमि पर ईश्वर को ढूढने की नही स्वयं के सत्यस्वरूप को जानने की जरुरत है, स्वयं के भीतर विद्यमान ईश्वरीय वैभव को जानने की जरुरत है| मानव को ईश्वर के दर्शन करने है तो स्वयं आईने के सामने खड़ा हो जाये और साधक बनना है तो स्वयं के बनो, जानना है तो स्वयं को जानो, अपने विराट आत्मस्वरूप को पहचानो आपका मानव जीवन सार्थक हो जायेगा|
ज्ञात रहे मनुष्य रूपी जीवात्मा जैसे ही कर्मभूमि पर प्रकृति के पंचतत्वों से बने भौतिक शरीर के भीतर अवतरित होती है, मानव के रूप में कर्मभूमि पर जन्म लेती है तो मोहमाया रूपी सृष्टि उसे अपनी माया में कैद कर लेती है और मनुष्य की बुद्धि पर महामाया का पर्दा गिर जाता है| इसी महामाया के कारण मनुष्य रूपी जीवात्मा अपने सत्य विराट आत्मस्वरूप को भूलकर नश्वर भौतिक शरीर को ही अपना सत्यस्वरूप मान लेता है| जिस के कारण मनुष्य जीवन भर अपने नश्वर भौतिक शरीर के लिए ही कर्म करता रहता है, जिसके कारण वो अज्ञानतावश अपना अमूल्य मानव जीवन व्यर्थ में नष्ट कर देता है| इसलिए उस मनुष्यरूपी जीवात्मा का उसके कर्मो के अनुसार कर्मभूमि पर निरंतर जन्म-मरण के रूप में तन परिवर्तन होता रहता है| कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मानव जगत को उनका सत्य स्वरूप बताने आया है ज्ञात रहे जिसने कर्मभूमि पर अपने भीतर आत्मा व जीवात्मा के भेद को जान लिया, जिसने अपने भीतर सत-असत के बीच चल रही जंग को जान लिया, उसका कर्मभूमि पर मानव जीवन सार्थक हो गया| स्वयं के सत्यस्वरूप को जान लोगे तो कर्मभूमि पर नदी की तरह बहते-बहते एक दिन सागर में लीन होकर सागर बन जाओगे, खुद को पहंचान लोगे तो खुदा में लिन हो जाओगे| हमारे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की दिव्य परम महाशक्ति परम गुरुवर परमब्रह्म का कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जगत के नाम संदेश…..
अल्लाह ईश्वर कहते हो मुझको, और कहते हो खुदा, गॉड, प्रभु, परमात्मा |
तुममें मुझमें बस फर्क है इतना, तुम जीवात्मस्वरूप हो मेरा, मैं हूँ तुम्हारी आत्मा ||
ज्ञात रहे कल्कि ज्ञान सागर की कुछ बाते कड़वी हो सकती है, किन्तु ये बातें मानव जगत के लिए परम हितेषी है, क्योंकि सच हमेशा कड़वा होता है किन्तु कड़वी दवाएं मरीज के लिए फायदेमंद होती है मरीज को फायदा करती है नुक्सान नहीं| हम मानव जगत को बताना चाहेंगे हमारी धरती को बनकर आज अरबों वर्ष बीत चुके है किन्तु हमारा वर्तमान कलेंडर आज भी 2023 वर्ष की गणना कर रहा है| पता नहीं आज तक इन अरबों वर्षो में हमारी धरती पर कितनी बार महाविनाश हुए होंगे? पता नहीं हमारी धरती पर इन अरबों वर्षो में ऐसे कितने तथाकथित साधू संत धर्म गुरु हुए होंगे जिन्होंने अपने निजी स्वार्थ के लिए धर्म और ईश्वर के नाम पर मानव जगत के भोले भाले लोगो को भ्रमित करने का काम किया| तथा कथित साधू संतो व धर्म गुरुओ ने ईश्वर और धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्म ग्रंथ, जाति, पंत, संत, संप्रदाय बनाकर मानव जगत को बांटने का काम किया|
वर्तमान समय कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय चल रहा है| आज हमारी कर्मभूमि पर लाखो धार्मिक स्थल है, करोड़ों साधू-संत भी धर्म की प्रभावना के लिए भ्रमण कर रहे है और धर्म ग्रंथो की भी कोई कमी नही है, फिर भी धरती पर धर्म के प्रति ग्लानी दिन प्रतिदिन बढती जा रही है| हम देख रहे है कालदोष के कारण कई बड़े-बड़े नामी साधू, संत, महात्मा भक्तो के पैसो से बड़े-बड़े आश्रम बनाकर एशों आराम कर रहे है| कुछ साधू संत तो कामवासनाओं में लिप्त होने के कारण जेलो में अपने अपराधों की सजा भी भुगत रहे है| ज्ञात रहे अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार कामवासना प्राकृतिक है मन को मारकर कोई भी मनुष्य विजय नहीं हो सकता क्योंकि मन एक भयंकर देवता है इसे पराजित नहीं किया जा सकता मन को संयम द्वारा साधा जा सकता है| ईश्वरीय ज्ञान की प्रभावना करने के लिए मानव को नियम में बंधना जरूरी नहीं है संयम की जरूरत होती है ब्रह्मचर्य का मतलब कामवासना का त्याग करना नहीं है बल्कि संसार में रहकर भी आत्मस्वरुपता में जीना है|
ज्ञात रहे कोई भी निष्काम कर्मयोगी राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक, बोद्ध, महावीर, मोहम्मद, कृष्ण, कबीर की तरह अपने घर-परिवार में रहते हुए ईश्वर का साधक बनकर अपनी अंतःप्रेरणा से कर्मभूमि पर ईश्वरीय ज्ञान की प्रभावना करते हुए मानव सेवा के कार्य कर सकता है| किसी भी कर्मयोगी को अपना घर-परिवार छोड़कर साधू-संत बनना जरूरी नहीं है| वर्तमान में ब्रह्माकुमारी संस्थान के धर्म प्रेमी लोग संत महात्मा नहीं संयमधारी ईश्वरीय साधक बनकर मानव जगत के बीच ईश्वरीय ज्ञान की प्रभावना कर रहे है, किन्तु सदियो से कई पाखंडी लोग तथाकथित संतो का रूप धारण करके ईश्वर और धर्म के नाम पर मानव जगत के भोले-भाले लोगो को ठगते आए है उनका मकसद धर्म की प्रभावना करना नहीं बल्कि धर्म के नाम पर धन कमाना होता है| इसलिए धरती पर बार-बार धर्म के प्रति ग्लानि बढ़कर धर्म की हानी होने लगती है जिसके कारण अरबों वर्षो से हमारी धरती पर बार-बार महाविनाश होते आए है |
ज्ञात रहे हमारी धरती पर आज लाखो धार्मिक स्थल है और करोड़ो साधू-संत भी भ्रमण कर रहे है साथ ही धरती पर धर्मग्रंथो की भी कोई कमी नही है, फिर भी वर्तमान में धरती पर धर्म के प्रति ग्लानि दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है आखिर क्यों ? क्योंकि धर्म के ठेकेदार और तथाकथित कई साधू-संत धर्म गुरु बनकर अपनी-अपनी दुकाने चलाने में लगे है| तथाकथित साधू-संत ज्ञान मार्ग को त्यागकर मानव जगत के लोगों को भक्ति मार्ग में उलझा देते है, कई साधू-संत महात्मा धार्मिक संस्थाओं से कथाओं के माध्यम से लाखो रुपया कमाने लगे है| वो मानव जगत के बीच ईश्वरीय ज्ञान को बेचने का काम कर रहे है| ज्ञात रहे धर्म और ईश्वर के नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्म ग्रंथ, जाति, पंत, संत, संप्रदाय तथा कथित साधू संतो की देन है संसारी मनुष्यों की नहीं| धर्म और ईश्वर सभी मनुष्यों के भीतर हृदयस्त विधमान है वो बाहर कहीं नहीं मिल सकता अतः कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से प्रभु परमेश्वर परम गुरुवर परमब्रह्म का सम्पूर्ण मानव जगत के नाम संदेश…
न मंदिर में न मस्जिद में, नहीं गिरजा गुरुद्वारे में ,
न तीर्थों में न मठो में, नहीं कमल न काबे में |
न पत्थर में न पानी में, नहीं धरती के कण कण में ,
आत्मस्वरूप तुम बन जाओ, देख लो मुझको जन-जन में |
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत का कल्याण करने के लिए सच्चे हृदय से जग कल्याण की भावना रखने वाला सिर्फ एक ही निष्काम कर्मयोगी साधक काफी है वो अपने गृहस्थ जीवन में रहते हुए पूरी कर्मभूमि को अविनाशी स्वर्ग बना सकता है क्योंकि साधक की साधना से ही युग परिवर्तन होता है जब जग कल्याण के लिए उस साधक का हृदय अनुराग से पूरित हो जाता है गद-गद गिरा नयन बह नीरा ऐसी परिस्थिति में ईश्वर स्वयं अनुरागी के हृदय में अपने स्वरूप को रचते है और धरती पर पाप के बोझ को हरते है| वर्तमान समय युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय चल रहा है, कर्मभूमि पर कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए निष्कलंक निराकार परम गुरुवर परमब्रह्म का कर्मभूमि पर कल्कि ज्ञान सागर के रूप में निष्कलंक निराकार ज्ञानस्वरूप भव्य अवतरण हो चुका है| यह ईश्वरीय अवतरण किसी ऋषि, मुनी, साधू, संत, महात्मा, ज्ञानी, महंत के हृदय में नहीं बल्कि एक गृहस्थ जीवन वाले साधारण इंसान के हृदय में पूर्ण प्रमाण के साथ हो चूका है, पूर्व में भी राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक, कृष्ण, कबीर, मोहम्मद, महावीर जैसे सभी महापुरुष भी घर गृहस्थी वाले ही इंसान थे|
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव-मात्र निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, मानव जीवात्मस्वरूप में सगुण परमात्मा परब्रह्म स्वरूप है और आत्मस्वरुपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप है| मानव जीवात्मस्वरूप में भिन्न-भिन्न हो सकते है आत्मस्वरूपता में सभी एक समान है| अतः सभी मनुष्यों को एक दूसरे के प्रति आत्मस्वरूपता में संमभाव रखते हुए सभी का आदर सम्मान करना चाहिए सबकी सेवा सबसे प्यार ही मानव धर्म है| जिस अल्लाह ईश्वर को मानव जगत के लोग बाहर ढूंढ रहे है वो तो हर मनुष्य के हृदय में विधमान है धरती का हर मनुष्य चलता फिरता तीर्थ है हर मनुष्य चलता फिरता भगवान है मनुष्यों के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है| कल्कि ज्ञान सागर में परम गुरुवर परमब्रह्म का सम्पूर्ण मानव जगत के नाम संदेश…..
नहीं आसमान में है घर बार मेरा, नहीं कभी जमीन पर उतरता हूँ |
रूह बनकर समागया मैं तुम्हारे भीतर तुम्हारा ये जिस्म ही है निवास मेरा ||
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर युगानुसार ईश्वरीय अवतरण अनेक निष्काम कर्मयोगी साधक के हृदय में हो सकता है, किन्तु ज्ञान देने वाला गुरुओं का भी गुरु परम गुरुवर एक परमब्रह्म ही है| अतः मनुष्यों को कभी भी किसी भी धर्म, पंत, संत, संप्रदाय, धर्म ग्रंथ और धार्मिक स्थल का अपमान नहीं करना चाहिए, जिस धर्म ग्रंथ की जो बात ठीक लगे उसी को ग्रहण करे जो हृदय को ठीक नहीं लगे उसे छोड़ दे| सभी धर्म पंत सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का संदेश देते आये है, कोई भी धर्म पंत लड़ना और नफरत करना नहीं सिखाता| ज्ञात रहे युगानुसार समय समय पर किसी ना किसी निष्काम कर्मयोगी साधक के माध्यम से परम गुरुवर परम ब्रह्म ही मानव जगत को कर्मभूमि पर जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विराट परम सत्य आत्मस्वरूप बनने का ज्ञान देते आए है और देते रहेंगे| अतः एक को जानो एक को मानो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ| जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते |