अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है, इसके अलावा मानव को भौतिक दृष्टि से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जड़ और चेतन के रूप में जो भी कुछ दिखाई दे रहा है, वो सब निर्गुण परमब्रह्म से प्रकट हुई सगुण महामाया है, जिसे असत और नश्वर कहा जा सकता है|
सम्पूर्ण सृष्टि में मानव ही एक ऐसा प्राणी है, जिसके भीतर सत-असत रूपी रहस्यमय खेल चल रहा है| मानव के भीतर ईश्वर निर्गुण आत्मस्वरूप व सगुण जीवात्मस्वरूप दोनों रूप में विधमान रहता है| इसलिए मानव को परम सत्य निर्गुण ईश्वर का सगुण सत-असत स्वरूप कह सकते है| कर्मभूमि पर मानव सत-असत रूपी सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में मै से मुक्त होकर विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी निर्गुण आत्मस्वरूप बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकता है| कर्मभूमि पर मै से मुक्त होने की क्रिया को ही जन्म-मरण से मुक्ति कहा गया है|
मानव तन तीन लोको का संगम स्थल है, इसलिए मानव के तीन स्वरूप भी है प्रथम प्रकृति के पंचतत्वों से बना मायावी नश्वर भौतिक शरीर दूसरा देवलोक से कर्मभूमि पर अवतरित होने वाला मनुष्य रूपी सगुण जीवात्मस्वरूप जो अविनाशी किन्तु परिवर्तनशील है| कर्मभूमि पर मानव सृष्टि के मायावी सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विराट आत्मस्वरूप बन सकता है| मानव का तीसरा स्वरूप परम सत्य है, जिसे विराट आत्मस्वरुपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप कह सकते है|
मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है सृष्टि के इस रहस्यमय खेल में मानव को मायावी जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में यानि देहभाव को त्यागकर निर्गुण विराट आत्मस्वरूप बनकर सतलोक जाना होता है, जहाँ पर बिना कोई कर्म किये आत्मा को शाश्वत सुख मिलता है| किन्तु सभी कर्मयोगियों की गाड़ी कर्मभूमि पर आकर भटक जाती है, अपनी मंजिल तक कोई बिरला निष्काम कर्मयोगी आत्मज्ञानी ही पहुँच पाता है| आत्मज्ञानी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|