मानव का सत्य-स्वरूप नश्वर भौतिक शरीर नहीं अजर-अमर, अविनाशी विराट आत्मस्वरूप है…

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव को परमात्मा परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है| मानव तन तीन लोक का संगम स्थल है| प्रकृति के पंचतत्वों से बना मानव का भौतिक शरीर पृथ्वीलोक वासी है| कर्मभूमि पर प्रकृति के पंचतत्वों से बने मानव तन को धारण करने वाला सगुण परब्रह्म स्वरूप मनुष्य रूपी जीवात्मा देवलोक वासी है| मनुष्य रूपी जीवात्मा के भीतर विधमान निर्गुण पवित्र आत्मा का परम धाम अकर्मी सतलोक है, जहाँ पर अकर्मी पवित्र आत्मा बिना कोई कर्म किये शाश्वत सुख पाती है|

अकर्मी पवित्र आत्मा मनुष्य रूपी जीवात्मा की परम हितेषी है जो मनुष्यरूपी जीवात्मा को मुक्ति प्रदान कराने के लिए,  मनुष्यरूपी जीवात्मा की परम गुरुवर, परम मित्र, हमसफ़र बनकर तब तक साथ रहती है जब तक मनुष्य रूपी जीवात्मा कर्मभूमि पर सृष्टि की महामाया को पराजित कर, नश्वर देह के प्रति मोह को त्यागकर, अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर, विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर, अपना आत्मकल्याण नही कर लेता|

ईश्वर एक है उसके दो स्वरूप दो चरित्र है निर्गुण आत्मस्वरुप व सगुण जीवात्मस्वरुप| कर्मभूमि पर निर्गुण आत्मस्वरूप ईश्वर व सगुण जीवात्मस्वरूप कर्मयोगी के लिए, मानव तन एक रथ के सामान है| आत्मस्वरुप गुरुवर को हम कृष्ण और जीवात्मस्वरूप कर्मयोगी को अर्जुन कह सकते है| आत्मा मानव तन रूपी रथ की सारथी बनकर कर्मयोगी जीवात्मा को कर्म करने का ज्ञान देती है| मानव अगर अपने तन रूपी रथ की लगाम अपनी आत्मा के हाथो में दे दे तो उसे कर्मभूमि पर सत्कर्म के बदले स्वर्ग सुख व सतलोक में बिना कर्म किये शाश्वत सुख बिना मांगे मिल जायेगा|आत्मज्ञानी बनो अपना आत्मकल्याण कर कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओं|  

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