मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, सगुण जीवात्मस्वरूप में मानव भिन्न-भिन्न हो सकते है, निर्गुण आत्मस्वरूपता में सभी एक समान है |

अद्धभूत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार जब कुछ भी नहीं था तब भी अनादी काल से एक निराकार, अजर-अमर, अविनाशी, जन्म-मरण, गुण-दोष रहित विराट आत्मस्वरूपता में अर्द्धनारीश्वर स्वरूप एक परम दिव्य महाशक्ति विधमान थी, जिसे विज्ञान ने उर्जा माना, वेदों में ब्रह्म माना गया उसे कल्कि ज्ञान सागर में निर्गुण परमब्रह्म माना गया है| एक बार निर्गुण परमब्रह्म के मन में इच्छा-शक्ति जागृत हो गई एको अहम बहुस्याम यानि मै एक से अनेक हो जाऊँ और अपने आपको अनेक रूप में देख सकु| निर्गुण परमब्रह्म की इच्छा शक्ति से विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर ब्रह्माण्ड में सूरज, चाँद, सितारे, द्रव्य, अणु, परमाणु के साथ ही परम सत्य निर्गुण परमब्रह्म का सत-असत धारी सगुण जीवात्मस्वरूप अर्द्धनारीश्वर के रूप में स्थापित हो गया जिसको आध्यात्मिक ज्ञानानुसार सगुण परब्रह्म कहा गया उसे प्रभु से प्रकट हुई महामाया भी कहा जाता है|

सगुण परब्रह्म द्वारा सृष्टि का सृजन होने के बाद सृष्टि के विस्तार के लिए सगुण परब्रह्म ही सृष्टि में अनेक प्रकार के देवी-देवता व जीव-जीवात्माओं का मायावी रूप धारण करते है| सत-असत से पुनः परम सत्य बनने के लिए कर्मभूमि पर स्वयं कर्मयोगी  मनुष्य रूपी जीवात्मा के रूप में प्रकृति के पंचतत्वों से बना भौतिक शरीर धारण करते है| अतः मानव मात्र के भीतर ईश्वरीय वैभव विधमान है, मानव मात्र के भीतर सत-असत के बीच  जंग चल रही है| कर्मभूमि पर सगुण परब्रह्म स्वरूप मानव को सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर निर्गुण आत्मस्वरूप बनना होता है| इसी क्रिया को जन्म-मरण से मुक्ति और मोक्ष कहा गया है|  ज्ञात रहे निराकार परम सत्य निर्गुण परमब्रह्म और साकार सत-असत धारी सगुण परब्रह्म एक ही सिक्के के दो पहलू है और सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का ही सगुण स्वरूप है|  ईश्वर निर्गुण है व सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण अवतार है, कर्मभूमि पर मानव को अपने सत्य स्वरूप को जानने की जरुरत है एक निर्गुण परमब्रह्म के आलावा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में दूसरा कोई हे ही नहीं| इसलिए कहा गया है एको ब्रह्म द्वित्यो नास्ति किन्तु इस बात को मानव जगत के लोग ठीक से समझ नहीं पाया| 

मन की ईच्छा शक्ति ने, निर्गुण निराकार को भी, सगुण साकार बना दिया,
एक परम सत्य परमब्रह्म को भी, सत्-असत् बना दिया।
सत्-असत् के इस रहस्यमय खेल में, खुद ही खुद से हो गए जूदा,
सत्-असत् से पुनः सत् बनने के लिए, खुद ने खुद को खुद का खुदा बना दिया।

विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बाद सगुण परब्रह्म जब अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में होते है तो उनके मन में भी इच्छा जागृत हो जाती है की मैं अपने अर्द्धनारीश्वर  स्वरूप को अलग-अलग रूप मे देख सकु परब्रह्म की इसी इच्छा शक्ति से पुरुष और प्रकृति के रूप में स्त्री और पुरुष अलग-अलग प्रकट हो जाते है तब परब्रह्म अपने आपको दो भागो मे विभाजित कर सृष्टि के विस्तार के लिए स्वयं को स्त्री और पुरुष के रूप में सृष्टि में स्थापित करते है | ज्ञात रहे निराकार निर्गुण परमब्रह्म का अर्द्धनारीश्वर साकार स्वरूप परम सत्य, विकार रहित है जिसे सदा शिव कहा गया है, किन्तु जब परब्रह्म अपने अर्द्धनारीश्वर स्वरूप को अलग-अलग प्रकृति और पुरुष के रूप मे योनि और लिंग के रूप मे स्त्री और पुरुष के रूप में नर और नारी के रूप में  प्रकट करते है तब सृष्टि में  सत-असत से पुनः परम सत्य बनने का रहस्यमय खेल शुरू हो जाता है| | ज्ञात रहे  जिस प्रकार ब्रह्मांड में परमब्रह्म परब्रह्म एक ही सिक्के के दो पहलू है ठीक उसी प्रकार सृष्टि में भी देवी-देवता  व  नरनारी एक ही सिक्के के दो पहलू है| मानव को ईश्वर को खोजने की नहीं बल्कि स्वयं के सत्य स्वरुप को जानने की जरुरत है, मानव-मात्र को चिंतन करने की जरुरत है कि वो कौन है ? कर्मभूमि पर वो कहाँ से और क्यों आया है? उसके जीवन का मकसद क्या है ?

कहाँ से तुम आए हो, कहाँ तुमको जाना है जी,
पता नहीं कब, किस जगह मर जाना है |
अरे जिसने बनाया तुम्हें, उसको तो जाना नहीं,
धर्म कर्म की बातों को, तुमने कहाँ जाना है ?
 इतना तो मान लेना, यह है प्रभु का कहना,
खाली हाथ आए हो जी, खाली हाथ जाना है |
अरे माटी के पुतले हो तुम तो, माटी मे मिल जाना है तो,
बतलाओ जग से क्या साथ लेकर जाना है ?

ज्ञात रहे अद्धभूत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार निराकार से साकार प्रकट हुए और साकार में विकार प्रकट होने से सृष्टि का सृजन हुआ है और इसी के साथ पुनः विकार रहित बनकर पुनः अपने सत्य स्वरूप को पाने के लिए मनुष्य रूपी जीवात्माओं के आत्मकल्याण के लिए कर्मभूमि का सृजन हुआ है यही से  सत-असत के बीच जंग छिड़ जाती है, इसी को सृष्टि का चक्रव्युह कह सकते है | आज हमारी धरती को बनकर अरबों वर्ष बीत चुके है, मानव जाति का जन्म होकर भी लाखों वर्ष बीत चुके है किन्तु वर्तमान मानव सभ्यता का वर्तमान कलेंडर आज भी वर्ष 2024 की गणना कर रहा है और धरती पर फिर से महाविनाश की संभावनाएं नजर आने लगी है| क्योंकि कर्मभूमि के सृजन के बाद आज तक कोई कर्मयोगी  अद्धभूत रहस्यमय सृष्टि सृजन के अद्भुत रहस्य को समझ नहीं पाया| मानव जगत की अज्ञानतावश धरती पर बार-बार धर्म के प्रति ग्लानी  बढ़ती रही,  धरती पर पाप का बोझ  बढने के कारण बार-बार महाविनाश होते रहे| ज्ञात रहे धरती पर महाविनाश को ईश्वर नहीं मानव जगत के सत्कर्म ही रोक सकते है, मानव जगत के सत्कर्म ही कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन कर बार-बार होने वाले युग परिवर्तन को रोक कर कर्मभूमि को अविनाशी स्वर्ग बना सकते है| 

कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को भक्त नहीं भगवन बनाने आया है| कल्कि ज्ञान सागर कर्मभूमि पर मानव-मात्र के ह्रदय में देवत्व- व दिव्यता जागृत कर मानव- मात्र को ईश्वर व अवतारवाद की धर्नाओ से मुक्त करवा देगा| कल्कि ज्ञान सागर मानव-मात्र को देह अभिमान से मुक्त कराकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरुपता में देवी-देवताओं से भी श्रेष्ठ बना देगा|  इसके बाद कर्मभूमि पर अविनाशी सतयुगी दुनिया का सर्जन होगा| कर्मभूमि पर कभी युग परिवर्तन नहीं होंगे और नहीं कालदोष लगेगा|  क्योंकि कल्कि ज्ञान सागर के रूप में कर्मभूमि पर ईश्वर का आखरी अवतरण है इस के बाद धरती पर ईश्वर को कभी अवतरित होने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, क्योंकि अब धरती पर पापी और पाप मिटेंगे धरती पर धर्म सदा कायम रहेगा अब धर्म के प्रति कभी ग्लानि नहीं होगी| कल्कि ज्ञान सागर के संदेशानुसार हम सब एक है सबका मालिक एक फिर भी परब्रह्म रूपी जीवात्मा के रूप में मनुष्यों के रूप अनेक हो सकते किन्तु आत्मस्वरुपता में सभी देवी-देवता व मनुष्य एक समान है| सत्कर्म और सेवा से बड़ा और कोई मानव धर्म नहीं है| सेवा करनी है तो जड़ की नहीं जीव-जीवात्माओं की करो सेवा परमोधर्म हमारा नारा प्रेम भाई चारा हम सब एक है सबका स्वामी एक| सबकी सी सबसे प्यार जय अहिंसा , ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते |

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