पाप कर्म मनुष्य का भौतिक शरीर नहीं भीतर का जीवात्मा करता है तो गंगा में जिस्म धोने से क्या फायदा ?

||कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश||

पाप कर्म जिस्म नहीं, भीतर का जीवात्मा करता है|
जीवात्मा के हुक्म पर, जिस्म को चलना पड़ता है |
जब गंगा में नहाने से जीवात्मा, पवित्र हो नहीं सकता |
तो गंगा में जिस्म धोने से क्या फायदा ?
अगर पवित्र करना है, अपने कर्मयोगी जीवात्मा को |
इस के लिए आत्मज्ञान द्वारा मन के मेल को धोना पड़ता है|

मैं कल्कि साधक कैलाश मोहन सम्पूर्ण मानव जगत को बता देना चाहता हूँ कि कल्कि ज्ञान सागर ईश्वरीय संदेश है जो मुझे अपनी अंतःप्रेरणा से, आत्मचिंतन से आध्यात्मिक ज्ञान मिलता है उसे मैं कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से मानव जगत के बीच पहुँचाने का प्रयास करता हूँ| अतः कल्कि ज्ञान सागर का मकसद कर्मभूमि पर किसी भी धर्म, पंत, संत, संप्रदाय, धर्म ग्रंथ और धार्मिक स्थल का अपमान करना या किसी कर्मयोगी के दिल को ठेस पहुंचाना नहीं है| कल्कि ज्ञान सागर का मकसद सम्पूर्ण मानव जगत को धर्म और ईश्वर के नाम पर बने अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्म ग्रंथ, जाति, पंत, संत, संप्रदाय और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त करवाना है| सत्कर्म और सेवा रूपी कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म को विश्व धर्म बनाकर कल्कि ज्ञान सागर द्वारा धरती पर कलयुग का नाश कर, सतयुगी दुनिया का सृ करना है| हम सब को मिलकर अपनी धरती माता को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बनाना है|

धर्म के नाम पर अगर कोई कर्मयोगी हमारे घर में इन्सानो की बहुत सारी लाशे लाकर डाल दे और जली हुई लाशों की हड्डीया व राख लाकर डाल दे तो हमे कैसा लगेगा? स्वाभाविक है हमे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगेगा| फिर ये सब गंगा माता को कैसे अच्छा लग सकता है ? कालदोष के कारण कुछ मूढ़ बुद्धि के लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए धर्म के नाम पर अनेक प्रकार की रुढ़िवादी परंपराएं चलाकर पवित्र गंगा माता को अपवित्र बना दिया है| जिस गंगा माता को शिवजी ने अपने मस्तक पर धारण करके धरती पर उतारा, उस पवित्र गंगा माता को आज के मनुष्य अपने कदमो तले रौन्द रहे है, उसमे अपने शरीर का मेल धो रहे है और तो और ऊपर से लाशे और हड्डीया भी बहती गंगा में डालकर गंगा माता को अपवित्र कर रहे है| इसी प्रकार भगवन गणेश व दुर्गा माता की मूर्तियों को पानी में विसर्जन कर तामसिक प्रवृति का बंधन करना, धर्म के नाम पर अधर्म के मार्ग पर चलना, पैसो के साथ ही अमूल्य पानी की बर्बादी करना भला धर्म का मार्ग कैसे हो सकता है| 

ज्ञात रहे धर्म के नाम पर पानी में बहाई गई गणेश व माता दुर्गा की मूर्तियों की दुर्दशा धर्म के नाम पर देवी देवताओ का अपमान हो रहा है| इसी प्रकार गंगा में बहाई गई सारी लाशे गंगा के पानी मे सड़-गल कर जब किनारे लगती है तब कुत्ते, कौवे और गीदड़ इन लाशों को नोच-नोच कर खाते है| इन लाशों की सारी गंदगी बहती गंगा में मिल जाती है, इसी बहती अपवित्र गंगा मे लोग पवित्र होने के लिए अपने जिस्म को धोते है और खुद को पवित्र करने के लिए गंगा के इस अपवित्र पानी को पीते भी है और बोतलों में भरकर अपने घर भी ले जाते है| क्या ये सारी क्रियाएं मनुष्यो को धर्म के नाम पर अधर्मी नहीं बना रही है? क्या मनुष्य इतना अंध भक्ति मे डूब गया है की अपने माता-पिता या पूर्वज का विधि-विधान से दाह संस्कार किए बिना उन्हें कुत्ते, कौवे और गीदड़ को खिलाने के लिए गंगा मे बहा देता है| होना तो यह चाहिए गंगा माता के प्रति आस्था रखने वाले सभी लोगों को इन सारी अधर्मी रुढ़िवादी परम्पराओं को रोक कर अपने मानव धर्म का पालन करना चाहिए| सभी गंगा भक्तो को गंगा माता के दर्शन करने के बाद बहती गंगा का कुछ जल कलश मे भरकर अपने ऊपर छिड़क देना चाहिए तब मनुष्य को गंगा मे नहाने से भी ज्यादा पुण्य गंगा माता को सम्मान देने का मिलेगा| मानव के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है| रुढ़िवादियो को छोड़ो अपने धर्म, धरती और जल की रक्षा करो|  जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते | 

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