निराकार कभी साकार प्रकट नहीं होता, कर्मभूमि पर निराकार का मानव के ह्रदय में अवतरण होता है जन्म-मरण नहीं…

युग परिवर्तन की संधिवेला में कलयुग को सतयुग मे परिणित करने के लिए,
कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से, निराकार परम गुरुवर परम ब्रह्म के संदेश

|| सत्यमेव  जयते || 

दोस्तों हमारा और हमारी संस्था अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान का मकसद सम्पूर्ण मानव जगत को सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का सदमार्ग बताकर मानव-मात्र को ईश्वर और अवतरवाद कि धारणाओं से मुक्त कराना है| हमारा मकसद कर्मभूमि पर मनुष्यों को धर्म और ईश्वर के नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्म ग्रंथ, जाति, पंत, संत, संप्रदायवाद से मुक्त कराना है|  ज्ञात रहे कर्मभूमि पर सिर्फ मानव ही नहीं सृष्टि का जीव-मात्र सगुण परब्रह्म का मायावी स्वरूप है, जिसमें मानव ही एक ऐसा प्राणी है जिसे परमात्मा सगुण परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है| ज्ञात रहे मानव स्वयं निर्गुण आत्मस्वरूप में ईश्वर स्वरूप सगुण जीवात्मस्वरूप में अवतार स्वरूप है| कर्मभूमि पर कोई भी कर्मयोगी आत्मज्ञानी बनकर राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक, बोद्ध, कृष्ण, कबीर, महावीर, मोहम्मद की तरह धरती पर धर्म की प्रभावना करते हुए अपना आत्मकल्याण कर सकता है, कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बना सकता है| 

कर्मभूमि पर वर्तमान समय युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय चल रहा है, कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए हमे कर्मभूमि पर एक विश्व मानव परिवार का सृजन करना है, हमे मानव-मात्र के मस्तिष्क में तामसिक प्रवर्तियों का नाश कर आपकी कर्मभूमि को अविनाशी स्वर्ग बनाना है| हमारा मकसद किसी धर्म, पंत, संत, संप्रदाय के लोगो का अपमान करना या किसी का दिल दुखाना नहीं बल्कि हर इंसान का जीवन मंगलमय बनाना है| हम सभी धर्म, पंत, संत, संप्रदाय का तहेदिल सम्मान करते है हमारा नारा – प्रेम भाईचारा, हम सब एक है सबका स्वामी एक, जियो और दूसरों को भी जीने में मदद करो|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है उसे विदित किए बिना इस संसार से मनुष्यों के लिए मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है, किन्तु ज्ञात रहे एक ही परमब्रह्म के दो स्वरूप दो चरित्र है| जो प्रथम निर्गुण विराट आत्मस्वरूप में एक होकर परम सत्य, अनादी, अजर-अमर, अविनाशी है,  जिसे किसी ने बनाया नहीं, जिसको कोई मिटा नहीं सकता, जो किसी की संतान नहीं है, जिसकी कोई संतान नहीं है, जो गुण-दोष रहित सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी होकर भी अजन्मा, निष्कलंक, निराकार है| एक परमब्रह्म ही सभी पवित्र आत्माओं के स्वामी है, इसलिए कर्मभूमि पर सभी मनुष्य आत्मस्वरुपता में एक समान है| एक परमब्रह्म ही गुरुओं के भी गुरु परम गुरुवर है, वही निराकार आत्मस्वरूपता में मानव-मात्र के भीतर ज्ञान-विज्ञान और आत्मशक्ति स्वरूप विधमान रहते है| इसी परमब्रह्म की इच्छा-शक्ति के कारण ही विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर उन्हीं का सत-असत रूपी सगुण परब्रह्म स्वरूप का प्राकट्य हुआ, जिसे प्रभु से प्रकट हुई महामाया भी कहते है| इसी सत-असत रूपी परब्रह्म के निमित्त से सुंदर सृष्टि का सृजन होकर सृष्टि के विस्तार के लिए एक सगुण परब्रह्म ही सृष्टि में अनेक प्रकार के देवी-देवता और जीवों के साथ-साथ कर्मभूमि पर सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव का मायावी रूप धारण करते है| अतः सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मा एक सगुण परब्रह्म के ही अनेक भिन्न-भिन्न मायावी रूप है, इसलिए जो मानव आत्मस्वरूपता में एक समान है वही जीवात्मस्वरूप में भिन्न-भिन्न है|

ज्ञात रहे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म मानव मात्र के भीतर अपने दोनों स्वरूप में निर्गुण आत्मा और सगुण जीवात्मा के रूप में विधमान रहते है| मानव-मात्र आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप है और जीवात्मस्वरुपता में सगुण परब्रह्म स्वरूप है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मनुष्य रूपी जीवात्मा के भीतर पवित्र आत्मा विधमान रहती है अतः मनुष्य आत्मस्वरूपता में परमब्रह्म यानि ईश्वर स्वरूप है और परब्रह्म रूपी जीवात्मस्वरुपता में मानव-मात्र कर्मभूमि पर सगुण परब्रह्म का अवतार है| कर्मभूमि पर कोई भी कर्मयोगी जब निष्काम कर्मयोगी बन जाता है तो उस मनुष्य रूपी जीवात्मा के भीतर सगुण परमात्मा परब्रह्म का अवतार स्वरूप प्राकट्य हो जाता है, इसके बाद उस निष्काम कर्मयोगी की पवित्र आत्मा में निर्गुण परमब्रह्म का ज्ञान और आत्मशक्ति स्वरूप अवतरण हो जाता है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव-मात्र के भीतर सत-असत के बीच जंग चल रही है| कर्मभूमि पर जिसने जीवात्मा और आत्मा के भेद को जाना उसने सब कुछ जान लिया, कर्मभूमि पर सभी मनुष्य परम सत्य आत्मा के अंशज और सत-असत रूपी जीवात्मा के वंशज है, मानव कर्मभूमि पर अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विराट आत्मस्वरूप बन सकता है, इसी क्रिया को कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति और मोक्ष कहा गया है|

दोस्तों युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग मे परिणित करने के लिए परम गुरुवर परमब्रह्म ने कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से अपने संदेश सम्पूर्ण मानव जगत तक पहूंचाने के लिए मुझ जैसे एक गृहस्थ जीवन वाले साधारण इंसान को निमित्त बनाया है| मुझ कल्कि साधक कैलाश मोहन का अपने विश्व मानव परिवार से करबद्ध निवेदन है कि आप कर्मभूमि पर सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का पालन करते हुए, कर्मभूमि पर अपने मंगलमय जीवन के साथ स्वर्ग सुख का आननंद लेते हुए, अपना आत्मकल्याण करे |

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक नहीं दो परम महाशक्तियां है प्रथम आत्माओं के स्वामी निर्गुण परमब्रह्म है और दूसरे जीवात्माओं के स्वामी सगुण परब्रह्म है| दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु है| सुंदर सृष्टि के स्वामी हमारे परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म रूपी जीवात्मा का कर्मभूमि पर प्रकृति के पंचतत्वों से बने भौतिक शरीर में कर्मयोगी मानव के रूप में अवतार स्वरूप अवतरण होता है और मनुष्य रूपी जीवात्मा के आत्मकल्याण हेतु कर्म करने का ज्ञान देने के लिए सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी परमब्रह्म का मनुष्य रूपी जीवात्मा की आत्मा में ज्ञानस्वरूप भव्य अवतरण होता है| कर्मभूमि पर जिसने आत्मा व जीवात्मा के भेद को जाना, उसने सब कुछ जान लिया| एक को मानो एक को जानों कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|  

ज्ञात रहे हमारी धरती को बनकर अरबों वर्ष बीत चुके है, किन्तु  हमारा वर्तमान कलेंडर आज भी वर्ष 2023 कि गणना कर रहा है और वर्तमान में धरती पर धर्म के प्रति ग्लानि अत्यधिक बढ़ जाने के कारण फिर से महाविनाश कि संभावनाएं नजर आने लगी है| बार बार कर्मभूमि पर महाविनाश होने का सबसे बड़ा कारण कर्मभूमि पर अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान को, रहस्यमय सृष्टि में रहस्यमय महामाया के खेल को आज तक कोई समझ नहीं पाया और नहीं मानव अपने सत्यस्वरूप को, अपने स्वयं के भीतर चल रही दो महाशक्तियों के बीच की जंग को समझ पाया| सच तो यह है सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म के अलावा दूसरा कोई है ही नहीं परमब्रह्म और परब्रह्म, स्त्री और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलू है और एक के अलावा दूसरा कोई है ही नहीं|

कर्मभूमि पर आप अपने भौतिक स्वरूप को, अपनी भौतिक दृष्टि को त्यागकर अपना  सत्यस्वरूप जानने के लिए, अपनी दोनों आंखे बंद करलों तो आप को सृष्टि कि महामाया समझ में आजाएगी, क्योंकि दृष्टि ही सृष्टि है सब नजरों का धोखा है जो दिख रहा है वो असत्य नश्वर है और जो सत्य है अजर-अमर, अविनाशी है वो कभी भी दिखाई नहीं देता| क्या आप हाथ लगाकर बता सकते हो यह हिन्दू है, यह मुसलमान है, यह मेरी पत्नी है, यह मेरे बच्चे है, नही बंद आँखो से आप पैसो की गिनती कर सकते है| अतः स्वयं के भीतर विधमान निराकार आत्मा व जीवात्मा के भेद को जिसने जाना उसने सब कुछ जान लिया, अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मनुष्य का भौतिक शरीर दो भागो में विभाजित है एक भाग परम सत्य परमब्रह्म का प्रतीक माना जाता है तो दूसरा भाग सत-असत रूपी परब्रह्म का प्रतीक माना जाता है जिसे लोग शुभ-अशुभ,  नेकी-बदी  के रूप में भी मानते है| अतः मनुष्यों को असत्य और बुराइयों का त्याग कर सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए जिससे मनुष्य अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण करते हुए कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बना सके|  जय अहिंसा – ॐ विश्व शांति – सत्यमेव जयते | 

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