नश्वर मानव तन कभी भगवान नही बन सकता, तो नश्वरता की पूजा करना कैसे सार्थक हो सकता है?

जिसे कभी किसी ने देखा नहीं, जिसके सत्यस्वरूप को किसी ने जाना नहीं, आज सम्पूर्ण मानव जगत के लोग उस दिव्य महाशक्ति के नाम पर, मानव धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के जाति-संप्रदाय, धार्मिक स्थल, धर्म ग्रन्थ बनाकर आपस में लड़ रहे है| मानव जगत के लोगो ने अपनी-अपनी भाषा, जाति संप्रदाय के अनुसार उस निराकार दिव्य महाशक्ति को अनेक नाम देकर धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के धर्म ग्रन्थ लिख दिये, जिसके कारण आज की युवापीढ़ी भ्रमित होने लगी है कि सत्य क्या है किसे माने और किसे छोड़े ?

अद्भुत रहस्मय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार ईश्वर और मानव धर्म का प्राकट्य मानव के भीतर ह्रदय देश में होता है, इन दोनों तक पहुचने का रास्ताभी मानव के भीतर ही है, ये दोनों अमूल्य निधि बाहर कही नही मिल सकती| कर्मभूमि पर कोई भी इन्सान आत्मज्ञानी बनकर अपना मानव जीवन सार्थक बना सकता है|

मानव का भौतिक शरीर नश्वर और परिवर्तनशील है, मानव को इस संसार में जो भी दिखाई दे रहा है वो सबकुछ उसके लिए नश्वर है| अतः अपने उस विराट आत्मस्वरूप को जानों जो निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप है| मानव-मात्र के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है और मानव धर्म की सत्कर्म और सेवा के अलावा और कोई परिभाषा नहीं है| ईश्वर अनादी, अजर-अमर, अविनाशी, अजन्मा है, साधक को उसकी प्राप्ति अपने भीतर से हो सकती है बाहर से कही नहीं| जिसने अपने भीतर के वैभव को जाना उसका मानव जीवन सार्थक हो गया, वो कर्मभूमि पर मानव जगत के लोगो के लिए भगवान बन गया| आत्मज्ञानी, सत्यवादी, सत्कर्मी, निष्काम कर्मयोगी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|

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