सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अनेकांत जैसे नियमों का पालन करना मानव मात्र का धर्म है, मानव के लिए सुखी जीवन का आधार स्तम्भ है| अगर आप दूसरों से अपना मन सम्मान चाहते हो तो ओरों के साथ ऐसा व्यवहार करो जैसा आप दूसरों से अपने लिए चाहते है| अपने जीवन में सदैव सत्य बोलना, किसी भी जीव की हिंसा नहीं करना, जरुरत से ज्यादा संग्रह नहीं करना, लोभ नहीं करना, किसी की वस्तु को नहीं चुराना, विदेही भाव में आत्मस्वरुपता में जीवन जीना, दूसरों की भावना का सम्मान करना, ऐसे धर्म प्रेमी महामानव ही कर्मभूमि पर कलयुग को सतयुग में परिणित कर सतयुगी दुनिया का सृजन कर सकते है|
‘सत्यमेव जयते’ जहाँ सत्य है वहाँ विजय है, सत्य से ही सतयुगी दुनिया का सृजन होकर धरती अविनाशी स्वर्ग बन जाती है| सत्य के अभाव में असत्य के कारण धरती पर पाप का बोझ निरंतर बढता जा रहा है, पाप के कारण कर्मभूमि पर कभी भी महाविनाश हो सकता है| अतः सम्पूर्ण मानव जगत के लोगो को सत्य का साथ देने के लिए, सत्यवादी बनने के लिए धर्म के नाम पर चली आ रही असत्य रुढ़िवादी एवं हिंसक परम्पराओं का त्याग करना होगा, तभी हमारी कर्मभूमि पर असत्य की पराजय होकर सत्यमेव जयते का डंका बज सकता है| सत्यवादी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|