धर्मात्मा बनना है तो अपने हृदय की अपनी अंतरआत्मा की सुनो धर्म के ठेकेदारों की नहीं…

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार ईश्वर एक है उसके दो स्वरूप दो चरित्र है, जो दिव्य महाशक्ति निर्गुण स्वरूप में निष्कलंक, निराकार, अजन्मा, गुण-दोष, जन्म-मरण रहित, अजर-अमर, अविनाशी है| वो न तो किसी की संतान है और नही उसकी कोई संतान है, न तो उसे किसी ने बनाया है, नही उसे कोई मिटा सकता है| उस परम सत्य दिव्य महाशक्ति जैसा न कोई था, न कोई है और नहीं कभी कोई होगा| किन्तु वही दिव्य महाशक्ति सत-असत सगुण स्वरूप में एक होकर भी सृष्टि में अनेक जीव-जीवात्माओ का रूप धारण कर स्वयं कर्ता-भरता-हरता बना हुआ है|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सृष्टि रूपी महामाया का प्राकटय दिव्य महाशक्ति से हुआ है इस सृष्टि में एक ऐसा रहस्यमय मायावी खेल रचा गया है, जिसमे एक दिव्य महाशक्ति के अलावा दूसरा और कोई भी नही है| सारा मायावी खेल उस दिव्य महाशक्ति के सगुण व निर्गुण स्वरूप के बीच चल रहा है| इस भूल-भुलैया के खेल में निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप मनुष्यरूपी जीवात्मा पुनः निर्गुण बनने के लिए देवलोक से कर्मभूमि पर अवतरित होता है| इस प्रकार निर्गुण परमब्रह्म स्वयं ही सगुण परब्रह्म जीवात्मस्वरूप में कर्मभूमि पर मानव के रूप में कर्मयोगी बना हुआ है|

मन की ईच्छा शक्ति ने, निर्गुण निराकार को भी, सगुण साकार बना दिया,
एक परम सत्य परमब्रह्म को भी, सत्-असत् बना दिया।
सत्-असत् के इस रहस्यमय खेल में, खुद ही खुद से हो गए जूदा,
सत्-असत से पुनः सत् बनने के लिए, खुद ने खुद को खुद का खुदा बना दिया।
स्वयं ही स्वयं से प्रकट भये, स्वयं ही भये स्वयं की संतान।
स्वयं ही पालनहार स्वयं के, स्वयं ही स्वयं के तारणहार।
स्वयं से प्रकट भयी महामाया, मोहिनी को मनाने मोहन भये,
स्वयं ही स्वयं के साधक भये, स्वयं ही भये स्वयं के भगवान।

कर्मभूमि पर मानव कर्मयोगी के रूप में निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है| मानव जो बनना चाहे, जैसा बनना चाहे, जो करना चाहे कर सकता है, क्योंकि मानव जीवन कर्म प्रधान है, मानव कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नहीं| जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है, कर्मभूमि पर मानव स्वयं ही कर्ता, भरता, हरता है| ईश्वर मानव को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है, किसी भी इंसान से निर्धारित कर्म नहीं करवा सकता| सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनो अपना मानव जीवन सार्थक बनाओं|

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