अदभुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति यह बात सम्पूर्ण मानव जगत के लोग, सभी धर्म सम्प्रदाय के लोग समान रूप से जानते मानते है, किन्तु इस बात से अनजान है कि एक ही ब्रह्म के दो स्वरूप, दो चरित्र है, सृष्टि सृजन के इस रहस्यमय ज्ञान को कर्मभूमि पर कोई बिरला कर्मयोगी ही जान सकता है। जिसने कर्मभूमि पर ब्रह्म के निर्गुण व सगुण स्वरूप को जाना, जिसने अपने भीतर निर्गुण आत्मा व सगुण जीवात्मा के भेद को जाना, जिसने अपने विराट आत्मस्वरूप को जाना, उसने स्वयं व ईश्वर के सत्यस्वरूप को जान लिया, कर्मभूमि पर जो कर्मयोगी विराट आत्मस्वरूपता में निष्काम कर्मयोगी बन गया, उसका मानव जीवन सार्थक हो गया।
कर्मभूमि पर मानव-मात्र के भीतर ईश्वर निर्गुण व सगुण दोनों स्वरुप में विधमान है, मानव निर्गुण आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरुप है और सगुण जीवात्मस्वरूप में सगुण परब्रह्म स्वरुप है| कर्मभूमि पर मानव-मात्र को अदभुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान को, सृष्टि सृजन के रहस्यमय खेल को जानना जरूरी है। मानव के लिए ईश्वर से ज्यादा ईश्वर द्वारा दिये गए कर्म करने के ज्ञान की जरूरत है। मानव को आज के विकास के युग में ईश्वर एवं स्वयं के सत्यस्वरूप को जानने की जरूरत है। मानव का जीवन कर्म प्रधान है मानव स्वयं ही स्वयं का भाग्य विधाता है।
सृष्टि में मानव को मायावी भौतिक दृष्टि से जो दिखाई दे रहा है वो सब-कुछ नश्वर है। इस नश्वर संसार में इंसान कुछ पल के लिए अपनी आंखें बंद कर ले तो उसे मायावी सृष्टि का राज पता चल जायेगा| कोई भी इन्सान हाथ लगाकर नहीं बता सकता कि उसकी पत्नी, उसकी संतान, उसके माता-पिता कौन है? यह जान पाना उसके लिए मुश्किल हो जायेगा? मानव के नश्वर शरीर की एक पल की गारंटी नहीं है, तो भला नश्वर शरीर की मायावी भौतिक दृष्टि से दिखने वाला धन, दौलत, मकान, माता-पिता, पति-पत्नी, संतान, जाति सम्प्रदाय उसके अपने कैसे हो सकते है?
अदभुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव जीवन कर्म प्रधान है उसके कर्मो के अनुसार कर्मभूमि पर आवागमन के लिए उसका तन परिवर्तन होता रहता है| मानव न तो कुछ साथ ला सकता है और नहीं ले जा सकता है| कर्मभूमि एक धर्मशाला है, कर्मयोगी एक मुसाफिर है उसकी मंजिल कर्मभूमि नहीं सतलोक है| अतः मानव को बिना कोई कर्म किये अकर्मी सतलोक में शाश्वत सुख पाने के लिए, कर्मभूमि पर अपने सगुण जीवात्मस्वरुप को त्यागकर विदेही भाव में निर्गुण विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण कर अपना मानव जीवन सार्थक बनाना चाहिए| अधिक जानकारी के लिए आप गूगल प्ले से एप डाउनलोड करे – KALKI GYAN SAGAR