एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक ब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किये बिना इस संसार से मानव के लिए मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| किन्तु एक ही ब्रह्म के दो स्वरूप दो चरित्र है| जो निर्गुण स्वरूप में अजर-अमर, अविनाशी, परम सत्य है, वही सत-असत सगुण स्वरूप में एक होकर भी उसके मायावी रूप अनेक है| सम्पूर्ण सृष्टि में एक सगुण परब्रह्म के अलावा दूसरा कोई भी जीव-जीवात्मा नहीं है| निर्गुण आत्मस्वरूप और सगुण जीवात्मस्वरूप दोनों रूप में ईश्वर निराकार है| मानव को भक्तिमार्ग में ईश्वर के सगुण स्वरूप के प्रतिक शिवलिंग की पूजा व निर्गुण स्वरूप की साधना करना चाहिए|
धरती पर धर्म की स्थापना व प्रभावना करने वाले ईश्वर के प्रतिनिधियों को मानव जगत के लोग ईश्वर का अवतार, सन्देश वाहक, पैगाम्बर कहते है, णमोकार महामंत्र में उन्हें सर्व प्रथम नमन किया जाता है, इसके बाद ईश्वर के निर्गुण स्वरूप को नमन किया जाता है, इसी के साथ धरती पर धर्म की प्रभावना करने वाले आचार्य, उपाध्याय व सभी संत महात्माओं को नमन किया जाता है, किन्तु किसी भी धर्म गुरु के नश्वर भौतिक शरीर का नाम नहीं लिया जाता|
मानव तन के भीतर निर्गुण ईश्वर का आत्मस्वरूप में और सगुण ईश्वर का जीवात्मस्वरूप में अवतरण होता है, आत्मा व जीवात्मा दोनों निराकार है जिनका एकाकार मानव तन के भीतर होता है| अतः कर्ता मानव तन नहीं आत्मा व जीवात्मा होते है| उनके लिए मानव तन एक रथ के समान होता है, इसलिए उनके नश्वर तन का नाम नहीं लिया जाता उन्हें नमन किया जाता है| इस प्रकार णमोकार महामंत्र सभी धर्म सम्प्रदाय का आधार स्तम्भ है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि के रहस्यमय ज्ञान को जानो, कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|