ज्ञान मार्ग में ईश्वर के निर्गुण स्वरूप की साधना व भक्ति मार्ग में सगुण स्वरूप के प्रतिक शिवलिंग की पूजा करे…

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार माना गया है, एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति भावार्थ – सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक ब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किये बिना मानव के लिए इस संसार से मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| किन्तु मेरी अंतःप्रेरणानुसार यह भी परम सत्य है की सम्पूर्ण ब्रह्मांड में, सम्पूर्ण सृष्टि में भी एक ब्रह्म के अलावा दूसरा कोई भी जीव-जीवात्मा नहीं है| जो ब्रह्म निर्गुण स्वरूप में एक है वही सगुण स्वरूप में अनेक मायावी रूप धारण किये हुए है|

सम्पूर्ण सृष्टि में एक सगुण परब्रह्म ही अनेक मायावी रूप धारण करके स्वयं कर्ता, भरता, हरता बना हुआ है| स्वयं ही स्वयं की रहस्यमय माया में कैद होकर स्वयं ही स्वयं का मार्ग दर्शक बना हुआ है| सारा रहस्यमय खेल एक ही ब्रह्म के निर्गुण व सगुण स्वरूप के बीच चल रहा है| इस रहस्यमय खेल में सृष्टि में अनेक प्रकार के देवी-देवता, नर-नारी व सभी जीवो की भूमिका निभाने वाला पात्र एक सगुण परब्रह्म ही है| कर्मभूमि पर जिसने अपने ही भीतर निर्गुण आत्मा व सगुण जीवात्मा के भेद को जाना, उसका मानव जीवन सार्थक हो गया| मायावी सृष्टि के इस रहस्यमय खेल की रहस्यमय लीला को मैं अपनी अंतःप्रेरणानुसार चार लाईन में बताने का प्रयास करूँगा…..

निष्कलंक  निराकार की इच्छा शक्ति ने, निराकार को भी साकार बना दिया|
 एक अजन्मे परम सत्य परम महाशक्ति को भी, निर्गुण से सगुण बना दिया|
निर्गुण-सगुण के इस रहस्यमय खेल में, खुद ही खुद से हो गए जुदा|
सगुण से पुनः निर्गुण बनने के लिए, खुद ने खुद को, खुद का खुदा बना दिया |

मैं ही अल्लाह मैं ही ईश्वर, मैं ही राम रहीम हूं,
मैं ही ईसा मैं ही मोहम्मद, मैं ही कृष्ण कबीर हूं |
मैं ही हूं बुद्ध मैं ही महावीर, मैं ही सतगुरू गोविन्द हूं,
मैं ही हूं हर दिल की धड़कन, मैं ही सभी में आत्मस्वरूप हूँ |

ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना हीं गिरजा गुरुद्वारे में ,
    ना तीर्थों में ना मठो में, ना हीं कमल ना काबे में |
   ना पत्थर में ना पानी में, ना हीं धरती के कण कण में ,
   आत्मस्वरूप तुम बन जाओ, देख लो मुझको, जन जन में | 

नहीं आसमान में है घर बार मेरानहीं कभी जमीन पर उतरता हूँ |
रूह बनकर समागया मैं तुम्हारे भीतर, तुम्हारा ये जिस्म ही है निवास मेरा |

सृष्टि के इस संसार में कभी ख़ुशी कभी गम,
नहीं कोई हमारा है नहीं किसी के हम|
स्वयं से स्वयं तक जिन्दगी एक सफ़र है,
जिन्दगी के इस सफ़र में स्वयं ही स्वयं के हम सफ़र है|

कर्मभूमि पर स्वयं आत्मज्ञानी बनो स्वयं के विराट आत्मस्वरूप को जानो, अपना आत्मकल्याण कर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|

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