कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, मानव परमात्मा स्वरूप नहीं परमात्मा का ही रूप है| कर्मभूमि पर जिस कर्मयोगी ने अपने सत्यस्वरूप को, आत्मा-जीवात्मा के भेद को, निर्गुण- सगुण के भेद को जान लिया उसका मानव जीवन सार्थक हो गया| कर्मभूमि पर जो कर्मयोगी मैं से मुक्त होकर निष्काम कर्मयोगी बन जाता है, ऐसे कर्मयोगी के ह्रदय में ही ईश्वर का ज्ञान एवं आत्मशक्ति स्वरूप प्राकट्य हो जाता है, इस क्रिया को ईश्वर द्वारा परकाय भी कहते है| ईश्वर उस कर्मयोगी के ह्रदय में अपने स्वरूप को रचता है और वो निष्काम कर्मयोगी जग कल्याण के कार्य करते हुए कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति पा लेते है|
कर्मभूमि पर ईश्वर का जन्म-मरण नहीं परकाय प्रवेश होता है, किसी निष्काम कर्मयोगी के ह्रदय में प्राकट्य होता है, इस तरह कर्मभूमि पर होने वाले ईश्वरीय अवतरण को भौतिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता| कर्मभूमि पर निराकार ईश्वर का अवतरण मानव तन के भीतर ह्रदय में होता है, तो भला किसी मानव का नश्वर तन अवतार व ईश्वर कैसे बन सकता है? आज के विकास के युग में भी कुछ लोग स्वयं कल्कि अवतार होने का दावा कर रहे है, इसी बीच कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत को ईश्वर और अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त कराने के लिए, युगानुसार कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए ईश्वरीय अवतरण पूर्ण प्रमाण के साथ हो चुका है| सत्य के सामने विज्ञान भी होगा नतमस्तक|
दोस्तो हमारा और हमारी संस्था अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान का मकसद किसी भी धर्म, पंत, संत, संप्रदाय का अपमान करना या किसी इंसान की ईश्वरीय आस्था को, आध्यात्मिक भावना को ठेस पहूंचाना नहीं है, हम कर्मभूमि पर सभी धर्म-संप्रदाय का तहे दिल सम्मान करते है, साथ ही ईश्वर के प्रति आस्था रखने वाले सभी महात्माओं को तहेदिल नमन करते हुए अपने विश्व मानव परिवार के लिए मंगलमय जीवन की कामना करते है|
भावना दिन रात मेरी, सब सुखी संसार हो,
सत्य सयंम, शील का, व्यवहार घर घर बार हो|
धर्म का प्रचार हो, और देश का उधार हो,
और ये बिगड़ा हुआ, भारत चमन गुलजार हो|
दोस्तो कर्मभूमि पर इस समय युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय चल रहा है| युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए सम्पूर्ण मानव जगत के परम हितेषी परमब्रह्म ने सतयुगी मानव धर्म के संदेश जन-जन तक पहूंचाने के लिए मुझ जैसे एक साधारण गृहस्थ इंसान को निमित्त बनाया है| अतः ज्ञात रहे इस आध्यात्मिक कार्य में मेरे नश्वर भौतिक शरीर का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि कर्मभूमि पर मेरा नश्वर भौतिक शरीर कर्मो के अधीन है और इंद्रियों के कारण कलंकित होना स्वभाविक है, मगर मेरे इस अपवित्र नश्वर भौतिक शरीर के भीतर परम पवित्र आत्माओं के स्वामी सोलह कला सम्पन्न निष्कलंक निराकार ज्ञान के दातार मेरे परम गुरुवर परमब्रह्म हृदयस्त विधमान है| सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान मेरा नश्वर भौतिक शरीर नहीं, शरीर के भीतर विद्यमान सम्पूर्ण मानव जगत के परम गुरुवर परमब्रह्म दे रहे है|
कर्मभूमि पर मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान परम गुरुवर परमब्रह्म दे रहे है, इस कार्य में मुझ कल्कि साधक कैलाश मोहन का भौतिक शरीर एक रथ के समान है, इस रथ पर कर्म करने वाले सगुण परब्रह्म मनुष्य रूपी जीवात्मस्वरूप में और कर्म करने का ज्ञान देने वाले परम गुरुवर निर्गुण परमब्रह्म आत्मस्वरूप में विधमान है| ज्ञात रहे सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है जो कर्मभूमि पर हर इंसान के हृदय में आत्मस्वरूपता में विधमान रहते है, मैंने उन्हें जान लिया है और मेरी तरह हर इंसान उसे जानकर अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण कर सकता है| सम्पूर्ण मानव जगत के नाम ईश्वरीय संदेश…
नहीं आसमान में है, घर बार मेरा,
और नहीं कभी जमीन पर, उतरता हूँ,
ज्ञान स्वरूप विधमान हूँ, हर इंसान के हृदय में,
हर इंसान का हृदय ही है, निवास मेरा |
दोस्तों आज सम्पूर्ण मानव जगत देख रहा है, सोशल मीडिया पर आए दिन कुछ लोग अपने आपको कल्कि अवतार बताने लगे है, अगर कोई इंसान या संत-महात्मा स्वयं को ईश्वर का अवतार बताने लगे तो भला उसे कौन रोक सकता है? वैसे भी कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगी निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, मानव-मात्र ईश्वर का अवतार है| मानव जीवात्मस्वरूप में सगुण परब्रह्म स्वरूप एवं आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप है| कालदोष के कारण कर्मभूमि पर कर्मयोगी अपने सत्यस्वरूप को नहीं जानकर अज्ञानतावश तामसिक प्रवृति के बनते जा रहे है, जिसके कारण धरती पर पाप का बोझ बढ़कर धरती नरक स्वरूप बनती जा रही है|
बाइबल, गीता समेत अनेक धर्म ग्रंथो एवं विश्व विख्यात भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस व मावजी महाराज समेत अनेक भविष्यवक्ताओ की भविष्यवाणी के अनुसार, कर्मभूमि पर ईश्वरीय अवतरण कल्कि ज्ञान सागर के रूप में पूर्ण प्रमाण के साथ हो चूका है, जिसके सामने विज्ञानं भी नतमस्तक होगा|
आज के विकास के युग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, सम्पूर्ण मानव जगत को ईश्वर और अवतारवाद की धारणओं से मुक्त कराने के लिए भारत की पावन भूमि पर वीरो की भूमि राजस्थान प्रांत में लोढ़ी काशी के नाम से विश्व विख्यात धर्म नगरी बांसवाड़ा शहर में सर्वधर्म संप्रदाय के हजारो धर्म प्रेमी लोगो के बीच 31 दिसंबर 2016 रात्रि 12 बजे कर्मभूमि पर कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना हो चुकी है| सम्पूर्ण जानकारी यूट्यूब चैनल KALKI GYAN SAGAR एवं वेबसाईट www.kalkigyansagar.com पर मिल सकती है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किए बिना इस संसार से मनुष्यों के लिए मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| क्योकि एक परमब्रह्म के निमित से विशाल ब्रह्मांड के साथ सृष्टि का सृजन होकर अनेक प्रकार के जीवो की उत्पत्ति हुई है| सृष्टि की 84 लाख योनियों के जीवो में सिर्फ मानव ही एक ऐसा प्राणी है जिसे परमात्मा स्वरूप कहा जाता है| अतः कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया के सृजन के लिए सभी मनुष्यों को अपने आपको निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप मानकर विराट आत्मस्वरूपता में सभी मनुष्यों को अपना ही स्वरूप मानना चाहिए| एक निर्गुण ईश्वर ही सगुण जीवात्मस्वरूप में स्वयं निराकार रहकर प्रकृति के पंचतत्वों से बने भौतिक शरीर के माध्यम से अनेक रूप में कर्मभूमि पर भ्रमण कर रहा है|
ज्ञात रहे मानव जगत के लोग अज्ञानतावश अपने नश्वर भौतिक शरीर को ही अपना सत्यस्वरूप मानते है, जबकी मनुष्य का सत्यस्वरूप मनुष्य के भीतर विधमान निराकार जीवात्मा है जिसने अपने आत्मकल्याण के लिए कर्मभूमि पर प्रकृति के पंचतत्वो से बना भौतिक शरीर धारण किया है यह भौतिक शरीर मनुष्य रूपी जीवात्मा के लिए एक रथ के समान है| इसी मनुष्य रूपी जीवात्मा के भीतर पवित्र आत्मा विधमान रहती है अतः कर्मभूमि पर जिसने अपने जीवात्मा और आत्मा को जाना उसने सब कुछ जान लिया, क्योकि सृष्टि का सारा खेल इन दो पात्रो के बीच ही चल रहा है बाकी सब कुछ नजरों का धोखा है जिसे सृष्टि की महामाया कह सकते है|
कर्मभूमि पर आप अपने सत्यस्वरूप को जानना चाहते हो तो आसानी से इसी वक्त जान सकते हो, आप कुछ पल के लिए अपनी दोनों आंखे बंद कर लो फिर आप अपने मन में अपने बारे में चिंतन करो आप कौन है? आपका सत्यस्वरूप क्या है? आप इस कर्मभूमि पर कहाँ से आए है? आपको यहाँ से कहाँ जाना है? इस कर्मभूमि पर आपका अपना कौन है? इस कर्मभूमि पर किस वस्तु पर आपका मालिकाना हक है? दोस्तो आपके सवालो के सारे जवाब आपके ही भीतर हृदयस्त परम गुरुवर परमब्रह्म से मिल जाएंगे| परमब्रह्म आपको अपना स्वयं का विराट आत्मस्वरूप याद दिला रहे है….
कहाँ से तुम आए हो, कहाँ तुमको जाना है जी,
पता नहीं, कब किस जगह मर जाना है|
अरे जिसने बनाया तुम्हें, उसको तो जाना नहीं ,
धर्म कर्म की बातो को, तुमने कहाँ जाना है?
अरे इतना तो मान लेना, यह है प्रभु का कहना,
खाली हाथ आए हो जी, खाली हाथ जाना है|
अरे माटी के पुतले हो तुम तो, माटी में मिल जाना है तो,
बतलाओ जग से, क्या साथ लेकर जाना है?
बतलाओ जग से, क्या साथ लेकर जाना है?
ज्ञात रहे हमारी धरती को बनकर आज अरबों वर्ष बीत चुके है किन्तु हमारा वर्तमान कलेंडर आज भी 2023 वर्ष की गणना कर रहा है, क्योंकि आज तक कर्मभूमि पर सृष्टि सृजन के रहस्यमय उस परम सत्य ईश्वरीय ज्ञान की प्रभावना ही नहीं हुई जिससे मनुष्य भौतिक शरीर में रहते हुए अपने सूक्ष्म शरीर को ही अपना सत्यस्वरूप मानकर, कर्मभूमि पर विराट आत्मस्वरूपता में निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना जीवन यापन करते हुए, अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण कर सके|
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मनुष्य रूपी जीवात्मा दो महाशक्तियों के अधीन है एक निर्गुण परम सत्य है और दूसरी सगुण सत-असत है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार कर्मभूमि पर सभी मनुष्य रूपी जीवात्मा सूक्ष्म शरीर के रूप में सुंदर सृष्टि के रचियता अपने परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म की संतान है, जो हमे सत्कर्म के बदले स्वर्ग सुख प्रदान कराते है| इसी प्रकार सभी मनुष्य विराट आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप है, वो मनुष्य रूपी जीवात्मा को विराट आत्मस्वरूपता में निष्काम कर्मयोगी मतलब अकर्मी बनाकर कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति प्रदान कर सतलोक में आत्मा को शाश्वत सुख प्रदान कराते है|
ज्ञात रहे रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार कर्मभूमि पर मानव को न सिर्फ एक को पूजना है और नहीं अनेक को| सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव को सर्वप्रथम सुन्दर सृष्टि के रचियता, अपने जन्मदाता पालनहार मनुष्य रूपी जीवात्मा के परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म को नमन करना चाहिए और इसके बाद पवित्र आत्माओं के स्वामी अपने हृदयस्त विधमान परम गुरुवर परमब्रह्म की साधना करना चाहिए| सगुण परब्रह्म सृष्टि में जीवन दातार है और निर्गुण परमब्रह्म मानव को मायावी सृष्टि से मुक्ति प्रदान कराने वाले मुक्ति दातार है| अतः मानव कर्मभूमि पर सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी सगुण परब्रह्म और सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी निर्गुण परमब्रह्म दोनों महाशक्तियों के प्रति समभाव रखकर ही अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण कर सकता है| एक को जानो, एक को मानो अपना मानव जीवन सार्थक बना| जय अहिंसा – ॐ विश्व शांति – सत्यमेव जयते|